शोध में एक नए वन्यजीव फोरेंसिक पद्धति का पता चला है, यह उन्नत आनुवंशिक उपकरणों व स्थानीय डीएनए डेटाबेस का उपयोग करके कई प्रजातियों से जुड़े जटिल पर्यावरणीय अपराधों को सुलझाने में मदद करती है।
जहर दिए गए गिद्धों और अवैध तरीके से शिकार किए गए हिरन के वास्तविक मामलों का विश्लेषण करके, यह शोध आधे-अधूरे या सही सबूत न होने पर भी प्रजातियों की पहचान करने, उनकी उत्पत्ति का पता लगाने में मदद कर सकता है। साथ ही आपराधिक गतिविधि की पुष्टि करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
यह बहुत जरूरी है क्योंकि वन्यजीव अपराध दुनिया भर में जैव विविधता के नुकसान का एक मुख्य कारण है। इन मामलों की प्रभावी ढंग से जांच और मुकदमा करने की क्षमता लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण कानूनों को लागू करने के लिए आवश्यक है।
जहर के कारण मरे गिद्धों से लेकर शिकार किए गए हिरन तक, वन्यजीव अपराध स्थल शायद ही कभी टीवी पर दिखाए जाते हैं। लेकिन हिब्रू विश्वविद्यालय के कोरेट स्कूल ऑफ वेटरनरी मेडिसिन के शोध की बदौलत, पर्यावरण के अपराधियों को पकड़ने की संभावनाएं और भी बेहतर हो गई हैं।
इस अध्ययन में, शोधकर्ता ने वन्यजीव फोरेंसिक के लिए एक नया नजरिया पेश किया है। उनका काम दिखता है कि कैसे उन्नत आनुवंशिक उपकरणों को स्थानीय डेटाबेस के साथ जोड़कर संरक्षण अधिकारियों को जंगली और घरेलू दोनों तरह की कई प्रजातियों से जुड़े सबसे जटिल पर्यावरणीय अपराधों को सुलझाने में मदद मिल सकती है।
वन्यजीव अपराध कोई मामूली मुद्दा नहीं है। दुनिया भर में शीर्ष पांच अवैध व्यापारों में शुमार, यह जैव विविधता के नुकसान और पहले से ही संकटग्रस्त प्रजातियों के पतन में सीधे तौर पर जिम्मेवार है। इजराइल में, इसमें गंभीर रूप से संकटग्रस्त यूरेशियन ग्रिफॉन गिद्ध और पहाड़ी गजेल शामिल हैं, जो अध्ययन में जांचे गए फोरेंसिक मामलों के केंद्र में थे।
फ्रंटियर्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जब किसी गिद्ध को जहर दिया जाता है या किसी गजेल को मार दिया जाता है, तो आप केवल एक संदिग्ध की तलाश नहीं कर रहे होते हैं, आप आधे-अधूरे सबूतों से निपट रहे होते हैं, जिनमें कई प्रजातियां शामिल हो सकती हैं। इसकी गुत्थी सुलझाने का एकमात्र तरीका सटीक, अलग-अलग स्तरों पर विश्लेषण करना है।
अध्ययन अवैध तरीके से जहर दिए जाने और अवैध शिकार से जुड़े तीन वास्तविक मामलों को दर्शाता है। प्रत्येक मामले में आणविक आनुवंशिक विश्लेषण की आवश्यकता थी, जिसमें प्रजातियों की पहचान, आबादी का निर्धारण और हर एक के नमूनों का वैश्विक और स्थानीय डीएनए डेटाबेस से मिलान करना शामिल था। जिसका उद्देश्य न केवल प्रजातियों की पहचान करना, बल्कि यह साबित करना कि वन्यजीवों के विरुद्ध कोई अपराध किया गया था।
यह पद्धति जब्त किए गए नमूने में जंगली और पालतू जानवरों के बीच अंतर कर सकती है, किसी प्रजाति की भौगोलिक उत्पत्ति का पता लगा सकती है और यह भी पुष्टि कर सकती है कि क्या कई अवशेष एक ही प्रजाति के थे या नहीं।
आज दुनिया भर में प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे तेज, किफायती उपकरणों की जरूरत है जिन पर वे भरोसा कर सकें। शोध में तरीके सटीक और व्यावहारिक होने के लिए डिजाइन किए गए हैं, क्योंकि किसी प्रजाति को बचाना अक्सर फोरेंसिक मामलों को सुलझाने पर निर्भर करता है।
यह अध्ययन वन्यजीव फोरेंसिक विज्ञान के बढ़ते क्षेत्र को मजबूत करता है और प्रवर्तन अधिकारियों, पार्क रेंजरों से लेकर सीमा शुल्क एजेंटों तक को पर्यावरणीय अपराध के खिलाफ मुकाबले में एक नया उपकरण प्रदान करता है।