तिलापिया डेकेरटी मछली, अफ्रीका के कैमरून में पाई जाने वाली एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय मछली प्रजाति फोटो साभार: आईस्टॉक
वन्य जीव एवं जैव विविधता

मछलियों की पांच गुना से अधिक प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर: शोध

Dayanidhi

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि समुद्री टेलोस्ट मछली की 12.7 फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे में हैं, जो कि प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) के 2.5 फीसदी के पिछले अनुमान से पांच गुना अधिक है।

शोध रिपोर्ट में लगभग 5,000 प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिन्हें जरूरी आंकड़ों के अभाव के कारण आईयूसीएन संरक्षण का दर्जा नहीं मिल पाया।

आईयूसीएन की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में 150,000 से अधिक प्रजातियों पर नजर रखी जाती है, ताकि दुनिया भर में सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए संरक्षण के प्रयास किए जा सके।

शोध में कहा गया है कि 38 फीसदी तक समुद्री मछली प्रजातियों के आंकड़ों का अभाव है, जिसके कारण उन्हें आधिकारिक संरक्षण का दर्जा या सुरक्षा नहीं मिल पा रही है।

संरक्षण प्रयासों को उन प्रजातियों पर और बेहतर ढंग से लागू किया जाना चाहिए, जिन्हें इसकी जरूरत है। शोधकर्ताओं ने उन प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरों का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक मशीन लर्निंग मॉडल को एक कृत्रिम नेटवर्क के साथ जोड़ा।

मॉडल को 13,195 प्रजातियों के आंकड़ों, जैविक लक्षण, वर्गीकरण और मानव उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया।

उन्होंने 4,992 प्रजातियों में से 78.5 फीसदी को बिना-संकटग्रस्त या संकटग्रस्त (जिसमें गंभीर रूप से संकटग्रस्त और कमजोर आईयूसीएन श्रेणियां शामिल हैं) के रूप में वर्गीकृत किया। पूर्वानुमानित संकटग्रस्त प्रजातियों में पांच गुना वृद्धि हुई (334 से 1,671 तक) और पूर्वानुमानित बिना-संकटग्रस्त प्रजातियों में एक तिहाई की वृद्धि हुई, जो कि 7,869 से 10,451 तक है।

ओपन-एक्सेस जर्नल प्लोस बायोलॉजी में प्रकाशित शोध के मुताबिक, पूर्वानुमानित संकटग्रस्त प्रजातियों का भौगोलिक दायरा छोटा था, शरीर का आकार बड़ा था और विकास दर कम थी। विलुप्त होने का खतरा सतही आवासों वाले जीवों में सबसे अधिक पाई गई।

दक्षिण चीन सागर, फिलीपीन और सेलेब्स सागर तथा ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पूर्वानुमानित संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में सामने आए हैं। शोधकर्ताओं ने इन क्षेत्रों में शोध और संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने की सिफारिश की है।

शोधकर्ताओं ने प्रजातियों के आईयूसीएन के पूर्वानुमानों के बाद संरक्षण प्राथमिकता रैंकिंग में भारी बदलाव देखा और सिफारिश की कि प्रशांत द्वीप समूह और दक्षिणी गोलार्ध के ध्रुवीय और उपध्रुवीय क्षेत्रों को उभरती हुई खतरे वाली प्रजातियों के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

आंकड़ों की कमी से जूझ रही कई प्रजातियां कोरल ट्राएंगल में पाई जाती हैं, जो दर्शाता है कि वहां अतिरिक्त शोध की जरूरत है।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर गौर किया कि मॉडल खतरे में पड़ी प्रजातियों के प्रत्यक्ष मूल्यांकन की जगह नहीं ले सकते हैं, लेकिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरों का तेजी से, व्यापक और किफायती मूल्यांकन प्रदान करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) उन प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरों का विश्वसनीय आकलन करने में सक्षम है जिनका मूल्यांकन अभी तक अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा नहीं किया गया है। 13,195 समुद्री मछली प्रजातियों के विश्लेषण से पता चलता है कि विलुप्त होने का खतरा आईयूसीएन के शुरुआती अनुमानों से काफी अधिक है, जो 2.5 फीसदी से बढ़कर 12.7 फीसदी हो गया है।

प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरों के पूर्वानुमान में हाल की प्रगति को 'पूर्वानुमानित आईयूसीएन स्थिति' नामक एक नए सूचकांक में शामिल करने का प्रस्ताव करते हैं। यह सूचकांक वर्तमान 'मापी गई आईयूसीएन स्थिति' के लिए एक अहम बदलाव के रूप में काम कर सकता है।