रिसर्च से पता चला है कि चींटियां की मौजूदगी इन पहाड़ों पर पक्षियों की विविधता को प्रभावित कर रही है; फोटो: आईस्टॉक 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

क्या भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में पक्षियों को अधिक ऊंचाई पर धकेल रही है चींटियों की मौजूदगी

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से एक दिलचस्प बात पता चली है कि ओकोफिला चींटियों की मौजदगी पर्वतों के मध्य हिस्सों में रहने वाले पक्षियों की विविधता को प्रभावित कर रही है

Lalit Maurya

धरती पर पहाड़ केवल 25 फीसदी हिस्से को कवर करते हैं, लेकिन इसके बावजूद वो दुनिया के 85 फीसदी उभयचरों, पक्षी और स्तनधारी जीवों का घर हैं। मतलब, ये पहाड़ जैवविविधता की अमूल्य धरोहर को संजोए हुए हैं, जिन्हें बचाए रखने की आवश्यकता है।

इन पहाड़ों पर मौसम, ऊंचाई जैसे कई कारक हैं जो प्रजातियों की मौजूदगी को प्रभावित करते हैं। इसका मतलब है कि पहाड़ों पर जलवायु परिस्थितियों और ऊंचाई के साथ प्रजातियों की संख्या में बदलाव हो सकता है।

लेकिन एक नए अध्ययन में पर्वतों के मध्य हिस्सों में रहने वाले पक्षियों के बारे में एक दिलचस्प बात पता चली है कि ओकोफिला वंश से संबंध रखने वाली चींटियां की मौजूदगी इन पक्षियों की विविधता को प्रभावित कर रही है। यह अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र (सीईएस) से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल इकोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।

एक प्रेस विज्ञप्ति में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और प्रोफेसर कार्तिक शंकर के हवाले से कहा गया है कि "पहाड़ों में, आप अक्सर प्रजातियों की विविधता का एक पैटर्न देखते हैं, जहां मध्य क्षेत्रों में अधिक प्रजातियां होती हैं। लोगों को लंबे समय से इस बात पर आश्चर्य होता रहा है कि ऐसा क्यों है। इसका एक कारण यह है कि वे इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते कि जीवित जीव कैसे परस्पर क्रिया और प्रतिस्पर्धा करते हैं।"

ओकोफिला चींटियां, जो अपने आक्रामक और प्रभावशाली व्यवहार के लिए जानी जाती हैं। यह अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया जैसे क्षेत्रों में पहाड़ों की तलहटी में कीटों की बेहद आक्रामक शिकारी होती हैं। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात की ही जांच की है कि कैसे यह चीटियां विशेष तौर पर पहाड़ों के निचले हिस्सों में कीटों को खाने वाले पक्षियों की संख्या को प्रभावित करती हैं।

इससे पहले शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ट्रेवर डी प्राइस द्वारा किए अन्य अध्ययन से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में ओकोफिला चींटियों की मौजूदगी ने कीटों की संख्या कम कर दी, जिसका असर इन कीटों पर निर्भर रहने वाले पक्षियों की मौजूदगी पर पड़ सकता है। ऐसे में इस नए अध्ययन में शोधकर्ता यह समझना चाहते थे कि क्या यही पैटर्न अन्य प्रकार के कीट-भक्षी पक्षियों के साथ भी होता है।

क्या कुछ निकलकर आया है इस अध्ययन में सामने

इस अध्ययन में सीईएस से जुड़े प्रोफेसर उमेश श्रीनिवासन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने विभिन्न पर्वत श्रृंखलाओं में अलग-अलग ऊंचाई पर पाई जाने वाली पक्षी प्रजातियों के मौजूदा आंकड़ों का उपयोग किया। उन्होंने पक्षियों को उनके आहार के आधार पर वर्गीकृत किया, जैसे कि कीटभक्षी और सर्वाहारी जो पौधों के साथ दूसरे कीटों को भी खाते हैं।

श्रीनिवासन ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा कि, "हमने इस बात का अध्ययन किया कि ये पक्षी कहां रहते हैं। इनमें प्रत्येक समूह की कौन सी पक्षी प्रजातियां 100 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती हैं, फिर 200, 300 मीटर की ऊंचाई और उसके आगे भी कौन से प्रजातियां रहती हैं। हमने इस आधार पर उन पहाड़ों में पक्षियों की भी तुलना की है जहां ओकोफिला चींटियों मौजूद हैं और जहां इनकी मौजूदगी नहीं है।

अध्ययन से पता चला है कि ओकोफिला चींटियां पहाड़ों ने निचले हिस्सों में भोजन के लिए कीट-भक्षी पक्षियों से प्रतिस्पर्धा करती हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसने पक्षियों को ऊंचाई पर रहने  प्रेरित किया, जहां पक्षियों की करीब 960 मीटर की ऊंचाई पर विविधता सबसे अधिक थी।

वहीं अन्य पक्षी जो फूलों के पराग, और फलों पर निर्भर थे, ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ उनकी प्रजातियों की विविधता में कमी दर्ज की गई। गौरतलब है कि यह पक्षियों की वो प्रजातियां हैं जो इन चींटियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करती हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि पहाड़ों के आधार पर ओकोफिला चींटियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति इस बात को समझने में मददगार हो सकती है कि क्यों पहाड़ों के मध्य भागों में कीट-भक्षी पक्षियों की संख्या सबसे अधिक होती है।

श्रीनिवासन के मुताबिक, यदि जलवायु परिवर्तन के चलते यह चींटियां ऊंचे स्थानों पर चली जाती हैं, तो इससे वहां रहने वाली पक्षी प्रजातियां भी प्रभावित हो सकती हैं।

यह अध्ययन इस बात का सबूत है कि कैसे जीवों के बीच का परस्पर संबंध पर्वतीय क्षेत्रों में जैव विविधता के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। इन बदलावों को समझना यह जानने के लिए भी जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र में कैसे बदलाव कर सकता है और विभिन्न प्रजातियों के जीवित रहने की रणनीतियों को कैसे प्रभावित कर सकता है।