वर्तमान में जिन क्षेत्रों में 2015 से 2070 में उच्च मानव-वन्यजीव ओवरलैप होने का अनुमान है, वे ऐसे क्षेत्रों पर आधारित हैं जहां जनसंख्या घनत्व पहले से ही अधिक है, जिसमें चीन और भारत शामिल हैं।  फोटो साभार : आईयूसीएन
वन्य जीव एवं जैव विविधता

धरती के आधे से अधिक हिस्से पर मानव-वन्यजीव संघर्ष के 57 फीसदी बढ़ने के आसार

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के अनुसार, जैसे-जैसे मानव आबादी बढ़ती जाएगी, 2070 तक पृथ्वी के आधे से अधिक हिस्सों पर, यहां तक की जानवरों के रहने वाले इलाकों पर लोगों का कब्जा होगा।

मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि लोगों के द्वारा वन्यजीवों के रहने वाले हिस्सों तक फैलने से लोगों और जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ेगा। लेकिन यह समझना जरूरी है कि जानवरों के रहने वाले हिस्सों पर कब्जा या ओवरलैप कहां-कहां हो सकता है। कौन से जानवर विशेष इलाकों में लोगों के करीब आ सकते हैं, यह शहरी योजनाकारों, संरक्षणवादियों और उन देशों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी होगी जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रतिबद्धताओं का संकल्प लिया है।

अध्ययन में पाया गया कि मानव और वन्यजीवों की आबादी के बीच ओवरलैप दुनिया भर में भूमि के लगभग 57 फीसदी हिस्से में बढ़ेगा, लेकिन इस तरह की घटनाएं वैश्विक भूमि के केवल 12 फीसदी हिस्से में होगी। अध्ययन में यह भी पाया गया कि खेती और जंगली इलाकों में भविष्य में ओवरलैप में भारी वृद्धि होने के आसार हैं।

साइंस एडवांस में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि मानव-वन्यजीव ओवरलैप जलवायु परिवर्तन के बजाय जनसंख्या वृद्धि के कारण होगा। यानी, पहले से अविकसित क्षेत्रों में बसने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि जलवायु परिवर्तन के बजाय बढ़ती आबादी के कारण होगा, जिससे जानवर अपने रहने की जगहों को बदल देंगे।

भविष्य में लोगों के द्वारा वन्यजीवों के रहने वाली जगहों पर कब्जा करने की गणना करने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक सूचकांक बनाया, जिसमें उन अनुमानों को शामिल किया गया था, जहां लोग बस सकते हैं, साथ ही स्थलीय उभयचरों, पक्षियों, स्तनधारियों और सरीसृपों की 22,374 प्रजातियों के स्थानीय वितरण भी शामिल थे।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, हमने जो सूचकांक बनाया है, उससे पता चलता है कि वैश्विक भूमि के अधिकांश हिस्सों में मानव-वन्यजीव ओवरलैप में वृद्धि होगी और यह बढ़ता ओवरलैप जलवायु परिवर्तन के कारण प्रजातियों के वितरण में होने वाले बदलावों की तुलना में मानव आबादी के बढ़ने के कारण होगा।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वर्तमान में जिन क्षेत्रों में 2015 से 2070 में उच्च मानव-वन्यजीव ओवरलैप होने का अनुमान है, वे ऐसे क्षेत्रों पर आधारित हैं जहां जनसंख्या घनत्व पहले से ही अधिक है, जिसमें चीन और भारत शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के जंगल, जहां भविष्य में ओवरलैप में बड़ी वृद्धि होने के आसार हैं। उन क्षेत्रों में बहुत अधिक जैव विविधता है जो भविष्य में अधिक दबाव का अनुभव करेगी।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि औसत प्रजाति समृद्धि - किसी दिए गए क्षेत्र में प्रजातियों की विविधता, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अधिकतर जंगलों में घटने का अनुमान है। दक्षिण अमेरिका में, स्तनपायी समृद्धि में 33 फीसदी, उभयचर समृद्धि में 45 फीसदी, सरीसृप समृद्धि में 40 फीसदी और पक्षी समृद्धि में 37 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है। अफ्रीका में, स्तनपायी समृद्धि में 21 फीसदी और पक्षी समृद्धि में 26 फीसदी की गिरावट का अनुमान है।

जैव विविधता से होगा फायदा

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से सुझाव देते हुए कहा कि इन ओवरलैप वाले क्षेत्रों में जैव विविधता को संरक्षित करने से फायदा हो सकता है। मानव-वन्यजीव के संपर्क के ऐसे मामले हैं जिनके अच्छे और बुरे दोनों नतीजे हैं, लेकिन इनके और अधिक बढ़ने के आसार हैं। उदाहरण के लिए, कोविड-19 लोगों के जंगली जानवरों के साथ संपर्क होने से फैला था और इस बात की चिंता है कि लोगों और कुछ वन्यजीव प्रजातियों के बीच अधिक मुठभेड़ों से नई बीमारियां उभरेंगी। लेकिन ऐसी प्रजातियां भी हैं जो लोगों को फायदे पहुंचाती हैं, जैसे कीटों की बढ़ती आबादी को कम करना आदि।

शोध में आंकड़ों के विश्लेषण का एक हिस्सा खेती में कीटों को खाने वाले पक्षियों पर था, जिसमें इस बात की जांच की गई कि जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षी कहां जाएंगे। जिसमें पाया गया कि 2070 तक दो तिहाई से अधिक खेती की जमीन में मानव-वन्यजीव ओवरलैप में वृद्धि होगी, उसमें पक्षी की प्रजातियों में गिरावट देखी जाएगी जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का शिकार कर उनकी आबादी को कम करने में मदद कर सकती हैं।

गिद्ध और लकड़बग्घे जैसे सफाई करने वाले जानवर भी शहरी क्षेत्रों और अन्य परिदृश्यों से कचरा साफ करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कचरा साफ करके, मैला ढोने वाले रेबीज, एंथ्रेक्स और गोजातीय तपेदिक जैसी कुछ बीमारियों के फैलने को कम कर सकते हैं।

संरक्षण कार्यक्रमों को सही तरह से लागू करना

शोधकर्ताओं के अनुसार, भविष्य में संरक्षण रणनीतियों को विकसित करना होगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पहले बहुत अधिक मानव बस्तियां नहीं देखी गई हैं। अतीत में, एक मुख्य संरक्षण रणनीति संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करना था जहां लोगों का जाना प्रतिबंधित है। इसे लागू करना कठिन होता जा रहा है क्योंकि ऐसे स्थान कम बचे हैं।

अध्ययन के मुताबिक, दुनिया के ज्यादातर इलाकों पर लोगों और वन्यजीवों का कब्जा होने के आसार हैं, इसलिए संरक्षण योजना को अधिक रचनात्मक और समावेशी बनाना होगा।

संरक्षणवादियों को स्थानीय समुदायों को शामिल करके संरक्षण प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए रुचि पैदा करनी होगी। इस प्रक्रिया में मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों को संभावित नए क्षेत्रों से जोड़ने के लिए आवास गलियारे स्थापित करना या वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण अवधियों, जैसे प्रजनन अवधि, के दौरान अस्थायी संरक्षित क्षेत्र बनाना और साथ ही अन्य तरह के संरक्षण शामिल हो सकते हैं।

इस बारे में सोचा जाना चाहिए कि कौन से क्षेत्र बाघों जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों की आबादी के लिए उचित हो सकते हैं और लोग इन प्रजातियों के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित करते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि कुछ जगहों पर एक साथ सब कुछ करना वाकई मुश्किल होगा, फसल उगाना और शहरी क्षेत्र बनाना और इन प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा करना। लेकिन अगर हम अभी से योजना बनाना शुरू कर दें, तो हमारे पास टिकाऊ साथ में जीवन जीने को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए बहुत सारे उपकरण होंगे।