भारत के उत्तर पूर्व से लेकर बांग्लादेश और उससे आगे तक, बांस के फूलने के बाद लगभग हमेशा प्लेग या अकाल पड़ता है जो स्थानीय आबादी को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, जोई इतो
वन्य जीव एवं जैव विविधता

हर 50 साल में खिलने वाला फूल भारत के एक राज्य में अकाल के लिए है जिम्मेवार, पर कैसे?

आंकड़ों से पता चलता है कि मिजोरम राज्य ने भी उसी समय अकाल का सामना किया जब बांस फूला। मिजोरम में पहली बार 1911 में अकाल पड़ा था, फिर 1959 में और उसके बाद 2007 में।

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में बांस से बनने वाली चीजों का बाजार भाव 1,249 मिलियन डॉलर से अधिक है और 2026 के अंत तक इसके 1,549 डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। हाल के सालों में बांस से बनने वाली फर्श पर ज्यादा गौर किया जा रहा है, विशेष रूप से पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ निर्माण सामग्री की तलाश करने वालों में यह बढ़ रहा है।

वहीं एक नई रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत में अकाल के लिए बांस के पौधों के फूलने को जिम्मेदार माना गया है। मिजोरम सरकार ने 1815 से शुरू होकर दो शताब्दियों से अधिक समय से राज्य में लगभग 50 सालों के अंतराल पर अकाल पड़ने का रिकॉर्ड रखा है। आंकड़ों से पता चलता है कि मिजोरम राज्य ने भी उसी समय अकाल का सामना किया जब बांस फूला। मिजोरम में पहली बार 1911 में अकाल पड़ा था। फिर 1959 में और उसके बाद 2007 में।

स्थानीय लोग बांस के पौधे के फूलने की इस चक्रीय घटना को "मौतम" कहते हैं, यह नाम बांस की एक प्रजाति से लिया गया है। जब भी यह खिलता है राज्य में अकाल की बुरी खबर आती है।

फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बांस की प्रजातियां तीन से 150 साल के बीच कभी भी, कहीं भी फूल सकती हैं। जब खिलने का चरण आता है तो सभी बांस के फूल एक साथ खिल जाते हैं।

इससे चूहों की आबादी में भारी बढ़ोतरी शुरू हो जाती है, एक ऐसी घटना जो हांगकांग और दक्षिण अमेरिका के कई इलाकों में देखी गई है। इसके चलते फसलें तबाह हो जाती हैं, जिससे अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है।

बांस में शायद ही कभी बड़े पैमाने पर फूल खिलते हैं और उनका चक्र 40 से 120 साल तक चल सकता है। मिजोरम में मेलोकाना बैक्सीफेरा बांस की एक बड़ी प्रजाति है जिसे स्थानीय रूप से "मौतुक" के रूप में जाना जाता है। यह हर 48 से 50 साल में एक बार फूलता है और इस समय लाखों बांस के पौधे भारी मात्रा में बीज पैदा करते हैं।

इस क्षेत्र के काले चूहों की आबादी इन पोषक तत्वों से भरपूर बीजों की ओर आकर्षित होती है और उनकी आबादी में अचानक वृद्धि देखी जाती है। वे सभी बीज खा जाते हैं लेकिन बड़ी आबादी को और भी अधिक भोजन की जरूरत पड़ती है। इसलिए वे लोगों की बस्तियों की ओर भागते हैं जहां वे धान, मक्का और अन्य जरूरी फसलों के खेतों पर हमला करते हैं। भूखे चूहे फसलों को नष्ट कर देते हैं, जिससे कृषि संकट पैदा होता है और प्रभावित क्षेत्रों में अकाल की स्थिति पैदा होती है।

मिजोरम में इसके कारण दोहरी मार देखने को मिलती है, क्योंकि "मौतुक" के साथ-साथ राज्य में "थिंगटम" नामक एक अन्य चीज भी है। यह एक अन्य बांस की प्रजाति के कारण है - बम्बुसा तुलदा। इसका अपना अलग फूल चक्र है, जो लगभग हर 30 साल में खिलता है।

बांस के फूलों के कारण चूहों की मानों बाढ़ जैसी आ जाती है, जो चूहों के औसत प्रकोप से कहीं अधिक होती है। दुनिया के दूसरे हिस्सों से भी इस तरह की घटना दर्ज किए जाने की खबर है। इथियोपिया में अरुंडिनरिया अल्पीना और जापान में बम्बुसा टुल्डा बांस की ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके फूल आने के बाद चूहों का प्रकोप और भोजन की कमी हो जाती है।

बांस के फूल किस कीमत पर

ऐतिहासिक आंकड़े और स्थानीय कहावतें बांस के दुर्लभ फूल के घातक परिणामों की गवाही देती हैं। पूर्वोत्तर भारत के मिजो लोग, जिन्होंने पीढ़ियों से इस घटना को सहन किया है, एक कहावत है- "जब बांस फूलता है, तो मृत्यु और विनाश उसके पीछे-पीछे आता है।"

भारत के उत्तर पूर्व से लेकर बांग्लादेश और उससे आगे तक, बांस के फूलने के बाद लगभग हमेशा प्लेग या अकाल पड़ता है जो स्थानीय आबादी को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 1959 में मिजोरम में फूल के खिलने के कारण स्थानीय विद्रोह भी हुआ था।

एशिया और उसके बाहर के अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही आपदाएं देखी गई हैं। हांगकांग में, जहां हर 50 साल में बैम्बुसा फ्लेक्सुओसा और बैम्बुसा चुनी फूलते हैं, 1800 के दशक के अंत में फूल खिलने की घटनाएं ब्यूबोनिक प्लेग के मामलों में वृद्धि के साथ मेल खाती थीं। पर्यवेक्षकों ने चूहों की आबादी में समानांतर वृद्धि देखी, जिससे पता चलता है कि बांस के खिलने ने अप्रत्यक्ष रूप से बीमारी को फैलाने में अहम भूमिका निभाई।