भारी बारिश के चलते उत्तर भारत और पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश के कारण भूस्खलन, अचानक बाढ़ और सड़क धंसने जैसी घटनाओं की आशंका है। फोटो साभार: आईस्टॉक
मौसम

सितंबर में भी चलेगा भारी बारिश का दौर, पहाड़ी राज्यों के लिए खतरे की घंटी: मौसम विभाग

मौसम विभाग ने सितंबर में देश के अधिकतर इलाकों में मासिक औसत बारिश के सामान्य से 109 फीसदी से अधिक होने का पूर्वानुमान लगाया है।

Dayanidhi

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने मासिक आउटलुक में चेतावनी दी है कि मानसून के आखिरी चरण यानी सितंबर महीने में देश में सामान्य से अधिक बारिश होगी। सितंबर 2025 में पूरे देश में मासिक औसत बारिश के सामान्य से अधिक (लंबे समय के औसत (एलपीए) का 109 फीसदी से अधिक) होने की संभावना है।

विशेषकर उत्तर भारत और पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश के कारण भूस्खलन, अचानक बाढ़ और सड़क धंसने जैसी घटनाओं की आशंका है। अगस्त महीने में पहले ही हिमालयी राज्यों में भारी तबाही देखने को मिली है, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई और कई इलाकों में सड़कें, पुल और घर बह गए।

अगस्त की बरसात ने तोड़े रिकॉर्ड

मौसम विभाग की मासिक रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2025 उत्तर-पश्चिम भारत के लिए 2001 के बाद का सबसे ज्यादा बरसाती महीना रहा। केवल उत्तर-पश्चिम भारत में ही 265 मिमी बारिश हुई, जो 1901 के बाद से 13वां सबसे अधिक है। दक्षिणी प्रायद्वीप में भी 2001 के बाद अगस्त में तीसरी सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई।

कई जगहों पर तो असाधारण बारिश देखी गई। जम्मू के उधमपुर जिले में 630 मिमी, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में 440 मिमी, मध्य महाराष्ट्र के घाट क्षेत्रों में 570 मिमी बारिश केवल एक दिन में दर्ज की गई।

भूस्खलन और अचानक बाढ़ का बढ़ता खतरा

भारी बारिश सबसे गंभीर असर पहाड़ी राज्यों - जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में देखा गया। लगातार बारिश के कारण कई जगहों पर भूस्खलन हुआ, सड़कें धंस गई और गांव-शहर पानी में डूब गए। उत्तराखंड के धराली गांव में बाढ़ ने तबाही मचाई, जबकि जम्मू और हिमाचल में बादल फटने और अचानक बाढ़ जैसी घटनाएं सामने आई।

प्रेस वार्ता के दौरान मौसम विभाग के महानिदेशक ड़ॉ मृत्युंजय महापात्रा ने चेतावनी दी है कि सितंबर में होने वाली अतिरिक्त बारिश पहाड़ी इलाकों में और तबाही ला सकती है। उन्होंने कहा कि भारी बारिश का मतलब है नदियों में उफान और इससे निचले इलाकों में भीषण बाढ़ के खतरे का बढ़ जाना।

देशभर में बारिश का वितरण

एक जून से अब तक पूरे देश में औसतन 743.1 मिमी वर्षा हो चुकी है, जो लंबे समय के औसत (एलपीए का 700.7 मिमी) से 6.1 फीसदी अधिक है। हालांकि क्षेत्रवार स्थिति अलग-अलग है:

उत्तर-पश्चिम भारत में 26.7 फीसदी अधिक बारिश हुई। मध्य भारत में 8.6 फीसदी अधिक बरसे बादल। वहीं दक्षिण भारत में 9.3 फीसदी अधिक बारिश हुई।

लेकिन पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में 17.8 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। इस असमान वितरण से साफ है कि कुछ क्षेत्रों में फसल और जल संसाधनों को फायदा पहुंचा, लेकिन कहीं-कहीं लोगों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा।

बदलता मानसून और लंबा खिंचता मौसम

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, 1980 के बाद से सितंबर में होने वाली बारिश में बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले पांच सालों में यह रुझान और तेज हुआ है। पहले मानसून की वापसी राजस्थान से एक सितंबर से मानी जाती थी, लेकिन अब यह तिथि बढ़कर 17 सितंबर हो गई है। इसका मतलब है कि मानसून की सक्रियता अब ज्यादा लंबी चल रही है।

महापात्रा का कहना है कि सितंबर एक संक्रमण का महीना होता है। इस दौरान पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की हवा के टकराव से असामान्य बारिश होती है। यही वजह है कि इस महीने में बादलों के फटने और भूस्खलन जैसी घटनाएं ज्यादा होती हैं।

🌡️ कैसा रहेगा तापमान?

सितंबर में तापमान की स्थिति भी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रहेगी। दिन का तापमान उत्तर-पश्चिम, पश्चिम-मध्य और दक्षिण भारत में सामान्य या कम रहेगा, जबकि पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा पश्चिमी तटीय इलाकों में यह सामान्य से अधिक होगा। रात का तापमान ज्यादातर क्षेत्रों में सामान्य से ऊपर रहेगा, केवल उत्तर-पश्चिम और दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में यह कम हो सकता है।

जलवायु पैटर्न और वैश्विक कारण

मौसम विभाग ने बताया कि इस समय प्रशांत महासागर में अल-नीनो-सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) की स्थिति तटस्थ है। यानी मानसून पर कोई बड़ा दबाव नहीं है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच कमजोर ला-नीना बनने की संभावना है, जिससे बारिश में बढ़ोतरी हो सकती है।

वहीं, हिंद महासागर डिपोल (आईओडी) फिलहाल तटस्थ स्थिति में है, लेकिन मौसम के अंत तक इसके कमजोर नकारात्मक चरण में जाने की संभावना है। आमतौर पर एल-नीनो मानसून को कमजोर करता है जबकि ला-नीना बारिश को बढ़ावा देता है।

फायदे और खतरे

अधिक बारिश का फायदा खेती और जल संसाधनों को जरूर होगा, लेकिन इसके साथ ही बाढ़, भूस्खलन, यातायात में बाधा, स्वास्थ्य संकट और पर्यावरणीय नुकसान का बड़ा खतरा भी रहेगा।

मौसम विभाग का कहना है कि इन खतरों से निपटने के लिए जरूरी है कि संवेदनशील क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाए। अर्ली वार्निंग सिस्टम का अधिकतम उपयोग हो। निगरानी और बचाव दल को हर समय तैयार रखा जाए। पारिस्थितिकी संरक्षण और जल प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए।

सितंबर में होने वाली भारी बारिश किसानों और जलाशयों के लिए तो राहत की खबर ला सकती है, लेकिन पहाड़ी और नदी किनारे बसे इलाकों में यह विनाशकारी भी साबित हो सकती है।

पिछले अगस्त में हुई तबाही ने यह साफ कर दिया है कि मौसम की चरम घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। ऐसे में प्रशासन और समाज दोनों को आपदा प्रबंधन और सतर्कता पर अधिक जोर देना होगा, ताकि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला नुकसान कम किया जा सके।