दिल्ली सरकार ने एनजीटी को भूजल के अवैध दोहन पर रिपोर्ट सौंपी है।
रिपोर्ट में सभी जिलों को अवैध बोरवेल पर तुरंत कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। दिल्ली जल बोर्ड ने अधिकारियों को एक महीने के भीतर बोरवेल सील करने का आदेश दिया है।
टैंकरों पर जीपीएस लगाना अनिवार्य होगा और पानी की गुणवत्ता की जांच भारतीय मानकों के अनुसार की जाएगी।
दिल्ली में भूजल के अवैध दोहन के मामले में दिल्ली सरकार ने अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दाखिल कर दी है। यह रिपोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा 28 मई 2025 को दिए आदेश पर अदालत में पेश की गई है।
रिपोर्ट में बताया गया कि सभी राजस्व जिलों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी अवैध बोरवेल की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की जाए। दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने अपने सभी अधिकारियों को आदेश दिया है कि शिकायत मिलने के एक महीने के भीतर बोरवेल की पहचान कर उसे सील किया जाए। देरी या लापरवाही करने वाले अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेवार माना जाएगा।
जल बोर्ड ने यह भी जानकारी दी है कि दिल्ली में अब केवल जीपीएस से लैस टैंकर ही पानी की सप्लाई करेंगे। राजस्व विभाग ने 12 सितंबर 2025 को आदेश जारी कर कहा है कि सभी पानी के टैंकरों का पंजीकरण दिल्ली जल बोर्ड या नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) के साथ अनिवार्य होगा।
इन टैंकरों पर जीपीएस लगाना और उनकी नियमित निगरानी करना जरूरी होगा। साथ ही, पानी की गुणवत्ता की जांच भारतीय मानकों (IS:10500:2012) के अनुसार की जाएगी और टैंकर मालिकों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क भी तय किए जाएंगे। उनकी आवाजाही केवल निर्धारित अनुमति और समय के लिए ही मान्य होगी।
सरकार ने बोरिंग मशीनों और रिग्स पर भी सख्ती दिखाई है। आदेश में कहा गया है कि इन मशीनों का पंजीकरण राजस्व विभाग के डिविजनल कमिश्नर/उप आयुक्त के कार्यालय में करना अनिवार्य होगा। उनकी आवाजाही केवल निर्धारित अनुमति और समय के लिए ही मान्य होगी।
साथ ही राजस्व, परिवहन विभाग और उप आयुक्तों को निर्देश दिए गए हैं कि बिना पंजीकरण वाले टैंकरों और ड्रिलिंग मशीनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और नियमों का सख्ती से पालन कराया जाए।
पश्चिम बर्दवान में अवैध ईंट भट्ठों पर एनजीटी सख्त, सीपीसीबी और राज्य एजेंसियों से मांगी रिपोर्ट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी पीठ ने पश्चिम बर्दवान जिले के बाराबनी में चल रहे अवैध ईंट भट्ठों पर गंभीर रुख अपनाते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है।
इसके साथ ही पश्चिम बंगाल राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण, पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बाराबनी के जिला मजिस्ट्रेट को भी रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
यह याचिका बाराबनी इलाके में अवैध और नियमों का पालन न करने वाले ईंट भट्ठों को तुरंत बंद कराने की मांग को लेकर दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डब्ल्यूबीपीसीबी) से इन अवैध इकाइयों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति लगाने और जिला मजिस्ट्रेट व बीडीओ, बराबनी को भट्ठों के संचालन में पर्यावरणीय मानकों का पालन सुनिश्चित करने के निर्देश देने की अपील की थी।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि बाराबनी क्षेत्र में ईंट भट्ठे बिना पर्यावरणीय मंजूरी और पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के चल रहे हैं। इनसे वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, लोगों को सांस संबंधी गंभीर बीमारियां हो रही हैं। इतना ही नहीं इनकी वजह से भूजल और मिट्टी दूषित हो रहे हैं और उपजाऊ मिट्टी का अवैध रूप से उपयोग किया जा रहा है।
बाढ़ से खेतों में जमा रेत हटाने पर विवाद, एनजीटी में यूपी सरकार ने रखा पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जानकारी दी है कि यदि खेतों में बाढ़ से जमा रेत हटाने के लिए दिए जाने वाले अल्पकालिक परमिट रोके गए तो राज्य को राजस्व का नुकसान हो सकता है। इस मामले में 16 सितंबर 2025 को सुनवाई हुई थी।
गौरतलब है कि एनजीटी इस बात की जांच कर रहा है कि क्या मानसून के बाद खेतों में जमा रेत हटाने के नाम पर निजी किसानों को वाणिज्यिक खनन की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।
इस मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर 2025 को होगी।