आंध्र प्रदेश के पेरीकलापुडी गांव में बलाराजू तालाब को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वित्तीय सहायता दे कर बहाल किया गया था फोटो: प्रदीप कुमार मिश्रा / सीएसई
जल

आवरण कथा: पेरीकलापुडी, गुंटूर जिला : खोया खजाना पाया वापस

एक सदी पुराने तालाब के पुनरुद्धार से मछुआरे अपनी पारंपरिक आजीविका में लौट पा रहे हैं

Sushmita Sengupta, Swati Bhatia, Pradeep Kumar Mishra, Vivek Kumar Sah, Mehak Puri

पीढ़ियों तक बलाराजू तालाब आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के पेरीकलापुडी गांव का प्राथमिक जल स्रोत बना रहा। 2.4 हेक्टेयर में फैला यह तालाब सिंचाई में सहूलियत देता था, मछुआरा समुदाय को आजीविका में मदद करता था, लोगों की पानी संबंधी घरेलू जरूरतों को पूरा करता था और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर था। हालांकि, अत्यधिक इस्तेमाल के कारण तालाब अपने मूल आकार से आधा रह गया और इसकी जल भंडारण की क्षमता 60 प्रतिशत तक कम हो गई। जैसे-जैसे तालाब लुप्त होता गया, लोग अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर हो गए। 2000 के दशक तक, पानी का दशकों से चल रहे कुप्रबंधन के कारण भूजल स्तर में भी तेजी से गिरावट आई।

अप्रैल 2022 में पानी की गंभीर कमी का सामना करते हुए समुदाय के लोग देश के प्रत्येक जिले में 75 जल निकायों को बहाल करने के लक्ष्य वाली केंद्र की अमृत सरोवर योजना के तहत तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए चुक्कापल्ली वारी पालेम ग्राम पंचायत के पास पहुंचे। पेरीकलापुड़ी इसी पंचायत के अंतर्गत है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से तालाब से गाद निकाली गई और इस गाद का उपयोग इसके चारों ओर बांध बनाने के लिए किया गया। इसे एक तरफ से खुला छोड़ा गया ताकि जलभराव वाले क्षेत्र से पानी तालाब में जा सके।

5.40 लाख रुपए की लागत वाले इस जीर्णोद्धार से तालाब की भंडारण क्षमता 7 मिलियन लीटर से बढ़कर 12 मिलियन लीटर हो गई। इसकी वजह से 140 मजदूरों को प्रति व्यक्ति 700 दिनों का रोजगार भी मिला, जिन्हें तेलुगु में नव वसंतम या “नया वसंत” कहा गया।

प्रमुख प्रभाव
झील के फिर से चालू होने से अतिरिक्त 4 हेक्टेयर भूमि सिंचाई के दायरे में आ गई है और भूजल स्तर में सुधार हुआ है

पुनर्स्थापना के बाद लोगों ने तालाब की देखभाल और निगरानी के लिए बलराजू आंबेडकर समूह नाम का एक जल-उपयोगकर्ता समूह गठित किया है, जिसमें 20 सदस्य हैं। इनमें से अधिकतर लोगों के खेत तालाब के पास हैं या फिर वे मछुआरा समुदाय से हैं। उनकी सिफारिशों के आधार पर ग्राम पंचायत तालाब की मरम्मत और रखरखाव करती है, जैसे कि बरसात के मौसम में उगने वाली खरपतवार को हटाना या तालाब के तटबंध पर पड़ने वाली दरारें ठीक करना।

चुक्कापल्ली वारी पालम ग्राम पंचायत के 53 वर्षीय निवासी शिवनागेश्वर राव कहते हैं, “तालाब के पुनरुद्धार होने से हमें अपना पुराना खजाना मिल गया है जो वर्षों तक गांव के काम आता रहा था, लेकिन अतिक्रमण के कारण यह खतरे में पड़ गया था। इस कायाकल्प के बाद तालाब से सटे 10 किसान-परिवारों को 4 हेक्टेयर के लिए सिंचाई का पानी मिलने लगा है। तालाब के आसपास बच्चों के लिए मनोरंजक सुविधाएं भी प्रदान की गई हैं, जो उनके शारीरिक विकास में मदद करेंगी।”

तालाब के खत्म होने का सबसे ज्यादा असर मछुआरों पर पड़ा था। अब वे मछली पालन और बिक्री से सालाना 5-7 लाख रुपए कमाते हैं। पेरीकलापुड़ी की सफलता से प्रेरित होकर पड़ोसी गांव भी तालाबों के जीर्णोद्धार के लिए इसी तरह की योजना बना रहे हैं।