मंगल, जिसे लाल ग्रह भी कहा जाता है, हमारे सौरमंडल का ऐसा ग्रह है जहां का मौसम बेहद विचित्र है; फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मंगल पर कैसे बनता, बदलता है मौसम? भारतीय वैज्ञानिकों ने सुलझाई गुत्थी

20 वर्षों के आंकड़ों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से पता चला है कि कैसे धूल भरे बवंडर, आंधियां और बर्फीले बादल मंगल के मौसम और जलवायु तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं

Lalit Maurya

मंगल पर उठते धूल के बवंडरों, आंधियों और बर्फीले बादलों के बीच छिपे मौसम के रहस्य की परतें अब खुलने लगे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने पहली बार यह बताया है कि कैसे ये अद्भुत प्राकृतिक घटनाएं मंगल के वातावरण को बदल रही हैं।

यह अध्ययन राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त अरब अमीरात विश्वविद्यालय और चीन के सुन यात-सेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है। इसमें वैज्ञानिकों ने मंगल के वातावरण का गहराई से अध्ययन किया है।

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि मंगल पर बदलते मौसम के साथ धूल और बादल कैसे बनते हैं? कैसे धूल भरी आंधियां, बवंडर और बर्फ एक-दूसरे के साथ मिलकर मंगल के मौसम और जलवायु को प्रभावित करती हैं।

गौरतलब है कि मंगल के मौसम और इन प्रक्रियाओं को समझना न केवल भविष्य में मंगल पर भेजे जाने वाले मानव मिशनों की तैयारी में मदद करेगा। इससे मंगल के मौसम को समझने से लेकर अंतरिक्ष यानों की सुरक्षा में मदद मिलेगी। साथ ही अध्ययन यह जानने में भी सहायक होगा कि क्या कभी मंगल पर जीवन था।

यह अध्ययन भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन सहित कई मंगल मिशनों से 20 वर्षों में जुटाए आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। अध्ययन एनआईटी राउरकेला के प्रोफेसर जगबन्धु पांडा और उनके शोधार्थी अनिर्बान मंडल द्वारा किया गया है। इसमें उनका साथ यूएई यूनिवर्सिटी के डॉक्टर बिजय कुमार गुहा, डॉक्टर क्लाउस गेबहार्ड और चीन की सुन यात-सेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉक्टर झाओपेंग वू ने दिया है।

अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल न्यू एस्ट्रोनॉमी रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं।

मंगल के बदलते मौसम की कहानी

मंगल, जिसे लाल ग्रह भी कहा जाता है, हमारे सौरमंडल का ऐसा ग्रह है जहां का मौसम बेहद विचित्र है। यहां चलने वाली धूल भरी आंधियां और बवंडर बहुत दूर तक फैल सकती हैं और बड़े हिस्से को अपने आगोश में ले लेती हैं। इसकी वजह से हवा की दिशा बदल जाती है। कई बार इनकी वजह से तापमान में बड़ा बदलाव आ जाता है, जिसका असर मंगल के वातावरण पर भी पड़ता है।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में मंगल के मौसम से जुड़े तीन प्रमुख पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। इनमें धूल भरे बवंडर, धूल भरी आंधियां और बर्फीले बादल शामिल हैं। 

यह धूल भरे बवंडर, हवा के छोटे-छोटे घूमते तूफान होते हैं, जो खासतौर पर गर्मियों के दौरान उत्तरी गोलार्ध में अधिक दिखाई देते हैं। आमतौर पर ये आंधियों से छोटे होते हैं, लेकिन वातावरण में धूल को लंबे समय तक बनाए रखते हैं। इससे सतह की संरचना में बदलाव आ सकते हैं।

इन बवंडरों की तरह ही मंगल पर कई बार ऐसी धूल भरी आंधियां चलती हैं, जो पूरे ग्रह को ढक सकती हैं। सूरज की रोशनी धूल को गर्म करती है, जिससे वातावरण गर्म होने लगता है, हवा तेजी से चलती है और ज्यादा धूल उठने लगती है।

वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में मंगल पर मौजूद बर्फीले बादलों पर भी ध्यान दिया है। यह बादल बेहद महीन और हल्के होते हैं, जो जमी पानी की बूंदों से बनते हैं। ये बादल कुछ खास मौसमों में मुख्य रूप से विषुवत रेखा, ऊंचे ज्वालामुखी जैसे ओलंपस मॉन्स, मंगल के बीच वाले हिस्से, ऊंचे पहाड़ों और ध्रुवों के पास दिखाई देते हैं।

अध्ययन से पता चला है कि ये बादल दो प्रकार के होते हैं, जो अलग-अलग मौसमों में बनते हैं। इनमें "एफीलियन क्लाउड बेल्ट" गर्मियों में बनती है, जब मंगल सूरज से सबसे दूर होता है। वहीं "पोलर हुड क्लाउड" सर्दियों में ध्रुवों के पास बनते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन बादलों का बनना मौसम और वातावरण में मौजूद धूल की मात्रा पर निर्भर करता है।

शोध के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर जगबन्धु पांडा ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "मंगल पर मौसम की सही जानकारी हासिल करना केवल एक वैज्ञानिक लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह भविष्य के मिशनों की सफलता के लिए भी बेहद जरूरी है। इससे हम यह भी समझ पाएंगे कि क्या कभी वहां जीवन संभव था या आगे हो सकता है।"

यह अध्ययन मंगल के जलवायु तंत्र को बेहतर ढंग से समझने में अहम योगदान देता है। इसमें दिखाया है कि वहां धूल, बादल और मौसम कैसे बदलते हैं। यह जानकारी भविष्य में वहां के मौसम का अनुमान लगाने में मददगार साबित हो सकती है।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जैसे-जैसे और ज्यादा मिशन मंगल की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे अध्ययन वहां के रहस्यमय मौसम को जानने और भविष्य की योजनाएं बनाने में बेहद उपयोगी साबित होंगे।