रात में कृत्रिम प्रकाश से जगमगाता जोधपुर; फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कैसे रातों में बढ़ते कृत्रिम प्रकाश से धरती पर बिगड़ रहा कार्बन संतुलन

स्टडी से पता चला है रातों में जगमगाते कृत्रिम प्रकाश से पौधों और जानवरों द्वारा छोड़ा जाने वाला कार्बन बढ़ रहा है। दूसरी तरफ उनके कार्बन सोखने की क्षमता नहीं बढ़ रही। इसकी वजह से इकोसिस्टम में कार्बन जमा होने की क्षमता घट रही है

Lalit Maurya

  • रातों में बढ़ते कृत्रिम प्रकाश से वैश्विक कार्बन संतुलन बिगड़ रहा है।

  • अध्ययन से पता चला है कि यह प्रकाश पौधों और जानवरों की गतिविधियों को बढ़ाकर कार्बन उत्सर्जन बढ़ा रहा है, जबकि अवशोषण नहीं हो रहा।

  • वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु मॉडल के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।

  • रिसर्च में सामने आया है कि रात में कृत्रिम प्रकाश से पौधों, सूक्ष्मजीवों और जानवरों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ जाता है, लेकिन इसका प्रकाश संश्लेषण पर कोई असर नहीं पड़ता। यानी रात्रि का यह कृत्रिम प्रकाश केवल उत्सर्जन बढ़ा रहा है, अवशोषण नहीं।

रात में बढ़ती चकाचौंध अब दुनिया को अंधेरे भविष्य की तरफ धकेल रही है। कृत्रिम प्रकाश, जिसे अक्सर आधुनिकता की पहचान माना जाता है, अब वैश्विक कार्बन संतुलन को बिगाड़ रहा है।

इस बारे में किए एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि रातों में जगमगाते कृत्रिम प्रकाश से पौधों और जानवरों द्वारा छोड़ा जाने वाला कार्बन बढ़ रहा है। लेकिन दूसरी तरफ उनके कार्बन सोखने की क्षमता नहीं बढ़ रही। इसका सीधा असर यह हो रहा है कि इकोसिस्टम में कार्बन जमा होने की क्षमता घट रही है।

चिंता की बात है कि यह बदलाव स्थानीय स्तर पर नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर हो रहा है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यह स्थिति क्लाइमेट मॉडल और वैश्विक कार्बन बजट के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।

कृत्रिम प्रकाश बदल रहा पूरे पारिस्थितिक तंत्र का कार्बन संतुलन

क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं। यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि कैसे रातों में बढ़ता कृत्रिम प्रकाश दबे पांव महाद्वीपों के पारिस्थितिकी तंत्र में कार्बन संतुलन को बदल रहा है।

रिसर्च में सामने आया है कि रात में कृत्रिम प्रकाश से पौधों, सूक्ष्मजीवों और जानवरों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ जाता है, लेकिन इसका प्रकाश संश्लेषण पर कोई असर नहीं पड़ता। यानी रात्रि का यह कृत्रिम प्रकाश केवल उत्सर्जन बढ़ा रहा है, अवशोषण नहीं।

उत्तरी अमेरिका और यूरोप के 86 कार्बन मॉनिटरिंग स्टेशनों और सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि रात की इस कृत्रिम रोशनी के प्रभाव इतने बड़े हैं कि वे पूरे महाद्वीपों में कार्बन के निकलने और अवशोषण के पैटर्न को बदल रहे हैं। नतीजन इसका पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ता है।

स्रोत: नेचर जर्नल में जून 2023 में प्रकाशित अनिक्का के जगरब्रांड और कैमियल स्पोइलस्ट्रा का अध्ययन “इफेक्ट ऑफ एंथ्रोपोसीन लाइट ऑन स्पीसीज एंड ईकोसिस्टम्स”

क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉक्टरों ऐलिस जॉनस्टन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, प्रकाश प्रदूषण मानव द्वारा किए सबसे दिखने वाले बदलावों में से एक है, लेकिन इसके प्रभाव अक्सर दिखाई नहीं देते।"

उनके मुताबिक यह एक व्यापक समस्या है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के काम करने के तौर तरीकों को बदल रही है, जो ऊर्जा के प्रवाह, जानवरों के व्यवहार, उनके आवास और प्राकृतिक चक्रों को प्रभावित कर रही है। सरल शब्दों में कहें तो रातें जितनी ज्यादा रोशन होंगी, उतना ही ज्यादा कार्बन वातावरण में मुक्त होगा, जो हमारी पृथ्वी के लिए बुरी खबर है।

प्रकाश प्रदूषण को जलवायु मॉडल में शामिल करने की मांग

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर जिम हैरिस के मुताबिक, अब पृथ्वी की करीब एक चौथाई जमीन रात में किसी न किसी स्तर पर कृत्रिम रोशनी से प्रभावित है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि इसे अनदेखा किया गया तो यह तेजी से बढ़ता दायरा वैश्विक कार्बन संतुलन को धीरे-धीरे लेकिन खतरनाक रूप से बदल सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक कृत्रिम प्रकाश दुनिया में प्रदूषण की सबसे तेजी से बढ़ती समस्याओं में से एक है। हर साल इसकी तीव्रता और दायरा करीब दो फीसदी बढ़ रहा है। इसके बावजूद, बड़े जलवायु मॉडलों और वैश्विक आकलनों इसे में शामिल नहीं किया जाता।

ऐसे में वैज्ञानिकों की मांग है कि अब कृत्रिम प्रकाश को भूमि उपयोग और अन्य जलवायु कारकों की तरह ही कार्बन चक्र को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।

अच्छी खबर: उतना मुश्किल नहीं प्रकाश प्रदूषण से निपटना

विशेषज्ञों के मुताबिक, यह समस्या उतनी कठिन नहीं है जितनी बाकी जलवायु समस्याएं हैं। डॉक्टर जॉनस्टन का कहना है, “जलवायु परिवर्तन के विपरीत अगर हम लाइटिंग के बेहतर डिजाइन अपनाएं तो प्रकाश प्रदूषण को रातों-रात कम किया जा सकता है।"

वे कहती हैं, “डिम की जा सकने वाली, दिशा-नियंत्रित और सही स्पेक्ट्रम वाली लाइटें तुरंत फर्क डाल सकती हैं।“

शोधकर्ताओं के मुताबिक चूंकि दुनिया में बिजली की करीब 15 फीसदी खपत लाइटिंग में होती है, और बढ़ते प्रमाण दर्शाते हैं कि रात में ज्यादा रोशनी मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। ऐसे में प्रकाश प्रदूषण को कम करना पर्यावरण, ऊर्जा बचत और लोगों की सेहत तीनों के लिए फायदेमंद कदम है।