भू-वैज्ञानिकों ने पहली बार इस बात का पता लगाया है कि पूर्वी एशिया में तटीय पर्वत कैसे बने, जिसकी वजह से 10 करोड़ साल से भी पहले महाद्वीप की जलवायु में भारी बदलव हुए। अब तक इस समय के दौरान एशियाई जलवायु को लेकर कई सवाल थे, जिसे आमतौर पर क्रेटेशियस काल के रूप में जाना जाता है।
नए शोध से पता चलता है कि लगभग 12 करोड़ साल पहले महाद्वीप के नीचे जोड़ने वाली टेक्टोनिक प्लेटों की गति में अचानक बदलाव आने से चीन के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी तट पर पृथ्वी की ऊपरी परत मोटी हो गई, जिससे समुद्र तल से 2,500 मीटर ऊपर की पर्वत श्रृंखलाएं बन गई।
साइंस एडवांस में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, मोनाश विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ अर्थ, एटमॉस्फेयर एंड एनवायरनमेंट के शोधकर्ताओं ने क्रेटेशियस काल के दौरान पौधों और वन्यजीवों के विकास पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आगे के शोध के लिए एक नजरिया विकसित किया।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है, पर्वत श्रृंखलाओं के निर्माण का अध्ययन करने से जो सीख पाए हैं, वह यह है कि इसने दुनिया भर के वायुमंडलीय प्रसार के पैटर्न को बदल दिया और क्षेत्र में बारिश में वृद्धि हुई।
इस तरह के बदलाव धरती को भारी तौर पर प्रभावित कर सकते हैं और इस मामले में समुद्री इलाकों से दूर शुष्कता में लगभग 15 फीसदी की वृद्धि हुई, जिससे रेगिस्तान का पूर्व की ओर विस्तार हुआ।
यह शोध उस समय पृथ्वी की एक संपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करता है, जिसे बाद में पौधों और जानवरों के जीवन के विभिन्न पहलुओं और उसके बाद लोगों पर लागू किया जा सकता है, ताकि विकास पर असर देखा जा सके।
यह शोध उस समय पृथ्वी की एक और पूरी तस्वीर को भी सामने लाता है, जो इस अवधि के दौरान जलवायु की हमारी मौजूदा समझ में कमी को पूरा करता है, इस बात के सुराग प्रदान करता है कि पौधे, जानवर और बाद में मानव जीवन कैसे विकसित हुआ।
शोध में कहा गया है कि ये निष्कर्ष क्षेत्र के सैकड़ों ग्रेनाइट चट्टानों के विश्लेषण से आया है, जिनकी आयु 16 से आठ करोड़ वर्ष के बीच है, जो उस समय क्षेत्र की स्थितियों का प्रमाण प्रदान कर सकते हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह सैकड़ों हजारों वर्ग किलोमीटर ग्रेनाइट चट्टान की एक विशाल पट्टी है, जिसमें पृथ्वी की ऊपरी परत की मोटाई से संबंधित तत्वों का अनुपात है। हम न केवल तत्वों की संरचना से चट्टानों की आयु बता सकते हैं, बल्कि समय के साथ परत की मोटाई भी बता सकते हैं।
फिर एक जलवायु मॉडल को लागू किया जा सकता है और उस समय वायुमंडलीय स्थितियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए विभिन्न प्रकार की चट्टानों की जांच-पड़ताल की जा सकती है।