प्रतीकात्मक तस्वीर: मार्क विटन/ म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ब्रिटेन के ऑक्सफोर्डशायर में मिला डायनासोरों का 16.6 करोड़ साल पुराना 'हाईवे'

यह पदचिन्ह करीब 16.6 करोड़ साल पहले मध्य जुरासिक काल के हैं, जिन्हें विशालकाय शाकाहारी डायनासोर 'सीटियोसॉरस’ और मांसाहारी 'मेगालोसॉरस' द्वारा बनाया गया था

Lalit Maurya

एक दिलचस्प खोज के दौरान ब्रिटेन के ऑक्सफोर्डशायर में वैज्ञानिकों को डायनासोर के सैकड़ों पैरों के निशान मिले हैं। यह खोज ऑक्सफोर्ड और बर्मिंघम विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है।

इस खोज के दौरान वैज्ञानिकों को पत्थर की एक खदान में मिट्टी के नीचे दबे डायनासोरों के 200 से भी ज्यादा पदचिन्ह मिले हैं। इस बारे में म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री द्वारा साझा की गई जानकारी से पता चला है कि यह पदचिन्ह करीब 16.6 करोड़ साल पहले मध्य जुरासिक काल के हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक डायनासोरों के बारे में अभी भी काफी जानकारी का पता चलना बाकी है।

अपनी इस खोज के दौरान वैज्ञानिकों को ऑक्सफोर्डशायर के डेवर्स फार्म क्वारी में डायनासोरों के 200 से ज्यादा पदचिन्ह मिले हैं। शोधकर्ताओं ने डायनासोरों के चलने के पांच लम्बे ट्रैकवे का भी पता लगाया है।

यह वो रास्ते हैं जिनपर कभी यह विशाल जीव चले होंगे। ये ट्रैकवे एक विशाल 'डायनासोर हाईवे' का हिस्सा हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों को आसपास के क्षेत्रों में और भी निशानों की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। इनमें सबसे लम्बा ट्रैक 150 मीटर से भी ज्यादा लंबा है।

इनमें से चार ट्रैक विशालकाय, लंबी गर्दन वाले, शाकाहारी डायनासोर द्वारा बनाए गए थे, जिन्हें ‘सॉरोपोड्स’ कहा जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह शायद ‘सीटियोसॉरस’ थे। यह डायनासोर प्रसिद्ध ‘डिप्लोडोकस’ के 18 मीटर लंबे चचेरे भाई थे।

वहीं पांचवा ट्रैक नौ मीटर लंबे मांसाहारी थेरोपोड डायनासोर 'मेगालोसॉरस' द्वारा बनाया गया था, जो अपने बड़े, तीन-उंगलियों वाले पंजों के लिए जाना जाता है।

यहां मांसाहारी डायनासोर 'मेगालोसॉरस' के फुटप्रिंट भी मिले हैं, जिसके पंजे तीन उंगलियों वाले हुआ करते थे; फोटो: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री

क्या हुआ था शाकाहारी सीटियोसॉरस और मेगालोसॉरस का आमना-सामना

साइट के एक हिस्से में, शाकाहारी और शिकारी दोनों जीवों के ट्रैक ओवरलैप होते हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या इन दोनों जीवों का एक दूसरे से आमना-सामना हुआ था और उस समय उनकी क्या प्रतिक्रिया रही होगी।

यह निशान मिट्टी के नीचे छिपे थे, जब तक की खदान में काम करने वाले गैरी जॉनसन ने खुदाई करते समय इन असामान्य उभारों को नहीं देखा था। इसकी जानकारी विशेषज्ञों को दी गई, जून 2024 में, ऑक्सफोर्ड और बर्मिंघम विश्वविद्यालयों से जुड़े 100 से भी ज्यादा सदस्यों के दल ने खदान प्रबंधक मार्क स्टैनवे और उनके कर्मचारियों के साथ एक सप्ताह तक इस क्षेत्र में खुदाई की।

इस दौरान उन्होंने डायनासोरों के करीब 200 पदचिन्हों खोज निकाले। शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र में 20000 से ज्यादा तस्वीरें ली और ड्रोन के इस्तेमाल से विस्तृत थ्रीडी मॉडल भी तैयार किए हैं।

बता दें कि यह खोज इसी इलाके में 1997 में हुई दूसरी खोजों से भी जुड़ी है, जब चुना पत्थर के खनन दौरान 40 जोड़ो से भी ज्यादा पैरों के निशान मिले थे। इनमें से कुछ ट्रैक 180 मीटर तक लम्बे  थे।

इस साइट को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण डायनासोर ट्रैक साइटों में से एक घोषित किया गया है और साथ ही इसे वैज्ञानिकों के लिए विशेष रुचि स्थल के तौर पर भी नामित किया गया। हालांकि मूल साइट का अधिकांश हिस्सा अब दुर्गम है, और चूंकि यह खोज डिजिटल कैमरों और ड्रोन के उपलब्ध होने से पहले हुई थी, इसलिए उसकी केवल सीमित तस्वीरें ही उपलब्ध हैं।

ऐसे में नए ट्रैक की खोज इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा देती है, हालांकि इन खोजों के बीच केवल तीस वर्षों का अंतर है, लेकिन आधुनिक तकनीक और प्रौद्योगिकी के कारण अब इन खोजों के पदचिह्नों को पहले से कहीं अधिक व्यापक रूप से रिकार्ड किया जा सकता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक यह नई खोज कई अहम सवालों पर प्रकाश डाल सकती है, जैसे डायनासोर कैसे चलते थे, उनकी रफ्तार क्या थी। वो आकार में कितने बड़े थे, क्या वे एक दूसरे से मिलते जुलते थे और अगर हां, तो उस समय उनका व्यवहार क्या रहा होगा।

ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में वैज्ञानिक डॉक्टर डंकन मरडॉक ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, "यह पैरों के निशान इतने अच्छे से संरक्षित हैं कि हम देख सकते हैं कि डायनासोर के पैरों के मिट्टी में धंसने और निकलने से उसके स्वरुप में ऐसे बदलाव आया होगा।" उनके मुताबिक हम बिलों, शेल और पौधों जैसे अन्य जीवाश्मों से भरे इस पूरे दलदली वातावरण की कल्पना कर सकते है, जहां कभी यह विशाल डायनासोर चलते थे।

गौरतलब है कि मेगालोसॉरस वो पहले डायनासोर थे, जिसका नाम 1824 में रखा गया और उनका वैज्ञानिक अध्ययन किया गया। इसके बाद लोगों की इनमें दिलचस्पी का ऐसा दौर शुरू हुआ जो 200 साल बाद आज भी चल रहा है।

ऑक्सफोर्ड म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में वर्टेब्रेट पैलियांटोलॉजिस्ट एमा निकोलस ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है, "वैज्ञानिकों ने धरती पर किसी भी दूसरे डायनासोर की तुलना में मेगालोसॉरस का कहीं ज्यादा लम्बे समय तक अध्ययन किया है, जो आज भी जारी है।

लेकिन फिर भी यह नई खोज दिखाती है कि अभी भी इन प्राचीन जीवों से जुड़े नए सबूत मौजूद हैं, जिन्हें खोजा जाना बाकी है। उनके अनुसार इनके बारे में अभी भी बहुत कुछ समझना बाकी है।"