मैली होती गंगा; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकास चौधरी/ सीएसई 
नदी

बिहार में गंगा में बिना साफ किए छोड़ा जा रहा है सीवेज, जल गुणवत्ता पर रिपोर्ट

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अदालत को सौंपी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है

Susan Chacko, Lalit Maurya

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 17 मार्च, 2025 को एक रिपोर्ट अदालत के सामने रखी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा में टोकल और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर निर्धारित मानकों से अधिक है, क्योंकि संबंधित शहरी क्षेत्रों में पैदा हो रहे घरेलू सीवेज को बिना साफ किए नदी में छोड़ा जा रहा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमित रूप से गंगा के 34 स्थानों पर पानी के नमूनों की की जांच करता है।

इनके विश्लेषण से पता चला है कि वहां पीएच, पानी में घुली ऑक्सीजन और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप है। हालांकि, टोटल और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक है।

बनाए जा रहे हैं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि बिहार भर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाए जा रहे हैं। अब तक, पटना में चार, और बाढ़, मुंगेर, सोनपुर, सुल्तानगंज, मनेर, नवगछिया, छपरा, दानापुर और फुलवारी शरीफ में एक-एक एसटीपी का निर्माण पहले ही हो चुका है।

बिहार का शहरी विकास और आवास विभाग और बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम (बीयूआईडीसीओ) विभिन्न शहरों में एसटीपी बना रहे हैं। उम्मीद है कि इन संयंत्रों के चालू होने पर गंगा और उसकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता में सुधार होगा। हालांकि जब तक यह एसटीपी चालू नहीं हो जाते, दूषित जल के उपचार के लिए बायोरेमेडिएशन का उपयोग किया जा रहा है।

गौरतलब है कि 26 फरवरी, 2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के आधार पर इस मामले को अदालत ने स्वतः संज्ञान में लिया था।

इस खबर के मुताबिक बिहार से गुजरने वाली करीब-करीब सभी प्रमुख नदियों का जल नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं हैं। यह जानकारी बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नदियों की सेहत पर जारी होने वाली वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आधारित है।

बिहार सरकार की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल रिपोर्ट स्वतः बता रही है कि गंगा के पानी में मल जीवाणु (फीकल कोलीफॉर्म) की मात्रा इतनी अधिक है कि पानी नहाने लायक नहीं है। डाउन टू अर्थ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक स्थिति यह है कि 68 फीसदी से ज्यादा मलजल सीधा गंगा में गिर रहा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर दिन 1100 मिलियन लीटर सीवेज पैदा हो रहा है, लेकिन अभी महज 343 मिलियन लीटर सीवेज के उपचार की ही क्षमता मौजूद है। ऐसे में करीब 750 मिलियन लीटर सीवेज बिना साफ किए सीधे गंगा में जा रहा है। वहीं, राज्य में मौजूद आठ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में से छह मानकों पर काम नहीं कर रहे हैं।

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दस अक्टूबर 2024 को एनजीटी में सौंपी अपनी जल गुणवत्ता विश्लेषण रिपोर्ट में कहा था कि गंगा की जल गुणवत्ता पीएच, पानी में घुली ऑक्सीजन (डीओ), और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के मानकों को तो पूरा करती है।

लेकिन यह स्नान के लिए सुरक्षित बैक्टीरियोलॉजिकल मानकों जैसे टोटल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म को पूरा नहीं करती है। रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि बैक्टीरिया का उच्च स्तर गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे मौजूद शहरों से छोड़े जाने वाले दूषित सीवेज की वजह से है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा साझा किए गए जल गुणवत्ता आंकड़ों से पता चला है कि गंगा में जल गुणवत्ता की निगरानी किए गए सभी 33 स्थानों पर गंगा जल नहाने लायक नहीं है।