प्रदूषण

गैसलाइट से लेकर विद्युतीकरण तक: कृत्रिम प्रकाश की यात्रा

Bhagirath

हमारे अतीत के अधिकांश कालखंड में कृत्रिम प्रकाश ने रात के अंधेरे में खलल नहीं डाला। वर्ल्ड एट नाइट रिपोर्ट के अनुसार, 17वीं शताब्दी से पहले स्ट्रीट लाइट का अस्तित्व नहीं था। इंपीरियल रोमन और यहां तक कि पुनर्जागरण फ्लोरेंस में भी स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था नहीं थी। डच चित्रकार रेम्ब्रांट की प्रसिद्ध पेंटिंग में दिखाया गया है कि अंधेरे में कानून-व्यवस्था रात में पहरे द्वारा सुनिश्चित की जाती थी।

घर के बाहर रोशनी की व्यवस्था मुश्किल से 200 साल से कुछ अधिक पुरानी है। पहली बाहरी रोशनी 1600 के दशक में तब हुई, जब सुरक्षा और व्यापारिक कारणों से कुछ यूरोपीय और अमेरिकी शहरों में घर के मालिकों को खिड़कियों पर एक तेल का दीपक या मोमबत्ती रखने की आवश्यकता पड़ी। इसने शाम को सामाजिक संपर्क का एक नया युग शुरू किया। इसका नतीजा यह निकला कि प्रकाश की तीव्र इच्छा प्रबल हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, तेल के लैंप केवल सीमित रोशनी प्रदान करते थे, लेकिन 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटेन और अमेरिका में गैसलाइट की शुरुआत से दृश्य बदल गया।

2017 में एथिक्स, पॉलिसी एंड एनवायरमेंट जर्नल में प्रकाशित टेलर स्टोन के अध्ययन “लाइट पॉल्यूशन : ए केस स्टडी इन फ्रेमिंग एन एनवायरमेंट प्रॉब्लम” में मानते हैं कि गैसलाइट को अपनाने और उसके प्रसार के साथ ही रात में आधुनिक शहर की धारणा उभरने लगी और रातें निश्चित रूप से अधिक रोशन होने लगीं। गैसलाइट का पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन 1807 में लंदन में किया गया था और अगले कुछ दशकों में इसे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में तेजी से अपनाया गया।

वर्ल्ड एट नाइट रिपोर्ट की मानें तो 1870 के दशक तक विद्युतीकरण शुरू हो गया था और सार्वजनिक स्थानों पर कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था आर्क लैंप के जरिए हुई। यह लैंप, गैसलाइट की तुलना में कम लागत पर तेज सफेद रोशनी पैदा करते थे। सड़कों पर इनके लगने और वाहनों के चलने से चकाचौंध की समस्या पैदा होने लगी।

प्रदूषण के रूप में प्रकाश व्यवस्था पर चिंता 19वीं सदी के अंत से शुरू हुई, लेकिन 1970 के दशक में पर्यावरण आंदोलन और तेल संकट के मद्देनजर यह व्यापक हो गई। 2000 के बाद से प्रकाश व्यवस्था के मुद्दे रात में रोशनी के बेतहाशा बढ़ने के साथ फिर सुलगने लगे। स्लोवेनिया द्वारा 2007 में प्रकाश प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दुनिया का पहला राष्ट्रीय कानून बनाने के बाद इस मुद्दे पर बहस ने जोर पकड़ा। अब दुनिया में प्रकाश प्रदूषण को पर्यावरण के प्रति गंभीर चिंता के रूप में देखा जाने लगा है। इसे नियंत्रित करने के लिए दुनिया के कई देशों में कानूनी पहल होने लगी है।