शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने क्लोरैमाइन मिले पीने के पानी में पहले से अज्ञात यौगिक की खोज करने की जानकारी दी है। अकार्बनिक क्लोरैमाइन का उपयोग आम तौर पर हैजा और टाइफाइड बुखार जैसी बीमारियों से लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पीने के पानी को कीटाणुरहित करने के लिए किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने अब पानी में क्लोरोनाइट्रामाइड आयन की पहचान की है, जिसे रासायनिक रूप से सीएल–एन–एनओ 2 के रूप में लिखा जाता है, जो अकार्बनिक क्लोरैमाइन के टूटने के बाद बचा अंतिम उत्पाद है। हालांकि इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन अन्य विषैले यौगिकों के साथ इसकी अधिकता और समानता चिंताजनक है।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, इसके कारण लोगों के स्वास्थ्य को होने वाले खतरों का आकलन करने के लिए आगे अध्ययन किए जाने चाहिए। खैर इस यौगिक की पहचान करना ही एक चुनौती के साथ सफलता रही है। यह शोध साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ता ने शोध में बताया कि वैज्ञानिकों को दशकों से यौगिक के बारे में पता है, लेकिन वे इसे पहचानने में असमर्थ हैं। उन्होंने खुद 10 साल पहले रहस्य को सुलझाने की कोशिश शुरू की थी।
शोधकर्ता के मुताबिक, यह कम आणविक भार वाला एक बहुत ही स्थिर केमिकल है। यह एक ऐसा रसायन है जिसे खोजना बहुत मुश्किल है। सबसे कठिन काम था इसकी पहचान करना और यह साबित करना कि यह वही संरचना है जिसके बारे में हम बात कर रहे थे।
इसमें प्रयोगशाला में यौगिक को संश्लेषित करने में सक्षम होना शामिल था, जो पहले कभी नहीं किया गया था। फिर नमूनों को विश्लेषण के लिए भेजा गया इस नए यौगिक के कारण स्वास्थ्य को होने वाले खतरों के बारे में कई प्रश्न होंगे, जिनका पहले किसी भी विषाक्तता अध्ययन में मूल्यांकन नहीं किया जा सका था।
पीने के पानी के कीटाणुनाशकों के केमिकल का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता ने शोध में बताया, यह अच्छी तरह से पहचाना हुआ है, जब हम पीने के पानी को कीटाणुरहित करते हैं, तो कुछ विषाक्तता पैदा होती है,जो लंबे समय में और बढ़ सकती है। कुछ लोगों को कई दशकों तक पीने के पानी से कैंसर हो सकता है।
लेकिन शोधकर्ताओं ने इस बात की पहचाना नहीं की है कि कौन से केमिकल उस विषाक्तता को बढ़ा रहे हैं। शोध का मुख्य लक्ष्य इन रसायनों और उन मार्गों की पहचान करना है जिनके माध्यम से वे बनते हैं।
इस यौगिक की पहचान करना उस प्रक्रिया में एक अहम कदम है। क्या क्लोरोनाइट्रामाइड आयन किसी कैंसर से जुड़ा होगा या इससे अन्य प्रतिकूल स्वास्थ्य जोखिम होंगे, इसका मूल्यांकन भविष्य में शिक्षाविदों और नियामक एजेंसियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों में किया जाएगा। कम से कम, इस खोज की बदौलत अब इस यौगिक पर विषाक्तता संबंधी अध्ययन पूरा किया जा सकता है।
शोधकर्ता ने बताया भले ही विषाक्त न हो, इसकी खोज से यह समझने में मदद मिल सकती है कि विषाक्त पदार्थों सहित अन्य यौगिक कैसे बनते हैं। अगर हम जानते हैं कि कोई चीज कैसे बनती है, तो हम संभावित रूप से इसे नियंत्रित कर सकते हैं।