भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है, जहां ई-वेस्ट उत्पादन 2019-20 के 10.1 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17.51 लाख मीट्रिक टन हो गया, लगभग 72.5 फीसदी की वृद्धि। फोटो साभार: आईस्टॉक
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इलेक्ट्रॉनिक कचरा: 2030 तक 82 अरब किलोग्राम पहुंचने के आसार

"अपना ई-कचरा रीसायकल करें - यह अतिआवश्यक है" की थीम के साथ मनाया जा रहा है अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस 2025

Dayanidhi

  • अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस हर साल 14 अक्टूबर को मनाया जाता है ताकि ई-कचरे के खतरों और रीसाइक्लिंग के महत्व पर जागरूकता बढ़ाई जा सके।

  • साल 2025 की थीम “अपना ई-कचरा रीसायकल करें - यह अत्यावश्यक है” जो महत्वपूर्ण धातुओं (सीआरएम) के पुनः उपयोग की आवश्यकता पर जोर देती है।

  • साल 2022 में दुनिया भर में 62 अरब किलोग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ और यह 2030 तक 82 अरब किलोग्राम तक पहुंच सकता है।

  • भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है, जहां ई-वेस्ट उत्पादन 2019-20 के 10.1 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17.51 लाख मीट्रिक टन हो गया, लगभग 72.5 फीसदी की वृद्धि।

  • समाधान उपभोक्ता की भागीदारी में निहित है - पुराने मोबाइल, लैपटॉप और उपकरणों को अधिकृत संग्रह केंद्रों पर लौटाकर हर व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकता है।

हर साल 14 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस (इंटरनेशनल ई-वेस्ट डे) मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे के खतरों पर जागरूकता फैलाने और ई-कचरे के पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) को प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिवस की शुरुआत साल 2018 में डब्ल्यूईईई फोरम द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य लोगों को अपने पुराने और अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जिम्मेदारी से निपटाने के लिए प्रेरित करना था।

दुनिया भर में ई-वेस्ट बढ़ती चुनौती

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट जनरल ई-वेस्ट मॉनिटर 2022 के अनुसार, साल 2022 में दुनिया भर में लगभग 62 अरब किलोग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ। यह मात्रा इतनी अधिक है कि यदि इन कचरों से भरे ट्रक पृथ्वी की भूमध्य रेखा के चारों ओर लाइन में खड़े किए जाएं, तो इनकी लंबाई पूरी पृथ्वी को घेर लेगी। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह मात्रा बढ़कर 82 अरब किलोग्राम तक पहुंच जाएगी।

ई-वेस्ट उत्पादन की दर औपचारिक रूप से एकत्रित किए जाने वाले ई-वेस्ट से पांच गुना तेज़ी से बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) के अनुसार, ई-वेस्ट दुनिया के सबसे जटिल और बड़े कचरा प्रवाहों में से एक है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 के मुताबिक, 2019 में दुनिया ने 5.36 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा किया, लेकिन इसमें से केवल 93 लाख टन (करीब 17 फीसदी) का ही सही तरीके से पुनर्चक्रण हुआ।

ई-वेस्ट के खतरे और अवसर

ई-वेस्ट में कई प्रकार के मूल्यवान धातु और रासायनिक तत्व होते हैं, जैसे कि तांबा, सोना, एल्युमिनियम, लिथियम, और अन्य क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स (सीआरएम)। इन धातुओं का दोबारा उपयोग न केवल आर्थिक नजरिए से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

यदि ई-वेस्ट का सही तरीके से निपटान न किया जाए, तो उसमें मौजूद विषैले पदार्थ जैसे सीसा, पारा और कैडमियम मिट्टी और जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकते हैं। इससे मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है, जिसमें सांस संबंधी बीमारियां, त्वचा रोग और अन्य विकार शामिल हैं।

वर्ष 2025 के अंतरराष्ट्रीय ई-वेस्ट दिवस की थीम “अपना ई-वेस्ट रीसायकल करें – यह अति आवश्यक है। यह थीम यह संदेश देती है कि हमारे उपयोग किए गए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में मौजूद महत्वपूर्ण तत्वों को पुनः प्राप्त करना कितना जरूरी है।

आज की भू-राजनीतिक परिस्थितियों में, क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स की उपलब्धता को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ये वही तत्व हैं जो मोबाइल फोन, लैपटॉप, बैटरी, सोलर पैनल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्माण में जरूरी होते हैं। लेकिन आम लोग यह नहीं जानते कि ये तत्व हमारे पुराने या खराब पड़े इलेक्ट्रॉनिक सामानों से दोबारा प्राप्त किए जा सकते हैं।

यूरोप में ई-वेस्ट प्रबंधन के प्रयास

यूरोप में हाल ही में लागू सीआरएम एक्ट के तहत लक्ष्य रखा गया है कि वर्ष 2030 तक वार्षिक सीआरएम उपभोग का 25 फीसदी हिस्सा रीसाइक्लिंग के माध्यम से हासिल किया जाए। इसके लिए ई-वेस्ट संग्रह और तकनीकी नवाचार पर जोर दिया जा रहा है।

हाल के शोधों से पता चला है कि यदि ई-वेस्ट से चयनात्मक रूप से सीआरएम को दोबारा हासिल किया जाए, तो यह यूरोपीय संघ की मौजूदा मांग का लगभग 31 फीसदी पूरा कर सकता है। हालांकि वर्तमान कानूनी ढांचे में वजन के आधार पर ई-वेस्ट संग्रह पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे मूल्यवान पदार्थों के पुनः उपयोग की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।

भारत में ई-वेस्ट की स्थिति

भारत ई-वेस्ट उत्पादन के मामले में तीसरे स्थान पर है। देश में तेजी से बढ़ते डिजिटल उपकरणों के उपयोग के कारण ई-वेस्ट की मात्रा में लगातार वृद्धि हो रही है। राज्यसभा में 16 दिसंबर 2024 को प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, भारत में ई-वेस्ट उत्पादन 2019-20 के 10.1 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17.51 लाख मीट्रिक टन हो गया है, यानी लगभग 72.5 फीसदी की वृद्धि।

हालांकि भारत में ई-वेस्ट प्रबंधन से संबंधित नियम लागू हैं, लेकिन अभी भी रीसाइक्लिंग का बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भर है। इससे न केवल पर्यावरणीय जोखिम बढ़ता है, बल्कि मूल्यवान धातुओं की हानि भी होती है।

आगे क्या किया जा सकता है?

केवल कानून और तकनीक से ई-वेस्ट समस्या का समाधान नहीं होगा। इसके लिए आम उपभोक्ताओं की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण है।

डब्ल्यूईईई फोरम और यूनीटार द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि औसत घर में लगभग 74 इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं होती हैं, जिनमें से नौ वस्तुएं उपयोग योग्य होते हुए भी रखी रहती हैं, जबकि चार वस्तुएं खराब होकर भी फेंकी नहीं जातीं। इसका अर्थ है कि बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक संसाधन हमारे घरों में ही बंद पड़े हैं।

यदि लोग अपने पुराने मोबाइल, लैपटॉप, चार्जर, या अन्य उपकरणों को अधिकृत संग्रह केंद्रों पर जमा करें, तो इन संसाधनों को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक होगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और संसाधन सुरक्षा में भी योगदान देगा।

ई-वेस्ट आज एक वैश्विक पर्यावरणीय संकट बन चुका है, लेकिन इसके समाधान हमारे ही हाथों में है। अगर हर नागरिक यह जिम्मेवारी ले कि वह अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान को फेंकने के बजाय सही चैनल से रीसायकल करेगा, तो यह दुनिया को एक बड़ा बदलाव दे सकता है।