डल झील; फोटो: आईस्टॉक 
प्रदूषण

डल झील को अतिक्रमण से बचाने के लिए चारों ओर बनाया गया बफर जोन: रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक झीलो में मौजूद हाउसबोट्स से निकलने वाले सीवेज के निपटान के लिए 9.9 करोड़ रुपए की एक अलग परियोजना तैयार की गई है। वहां कुल 617 हाउसबोट्स में से 570 को वैज्ञानिक तरीके से सीवेज नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है

Susan Chacko, Lalit Maurya

  • संयुक्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार, डल झील के चारों ओर बफर जोन बनाए गए हैं ताकि अतिक्रमण से बचाव हो सके।

  • एनजीटी के आदेश पर गठित इस समिति ने झील के प्रदूषण और सीवेज प्रबंधन की स्थिति का निरीक्षण किया।

  • रिपोर्ट में झील के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों और नई सीवेज योजनाओं की जानकारी दी गई है।

  • जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (एलसीएमए) ने झील के चारों ओर विशेषकर उत्तरी किनारे पर कई ऑक्सिडेशन तालाब बनाए हैं

  • इन झीलों में मौजूद हाउसबोट्स से निकलने वाले सीवेज के लिए 9.9 करोड़ रुपए की लागत से एक अलग परियोजना तैयार की गई है।

  • कुल 617 हाउसबोट्स में से 570 को वैज्ञानिक तरीके से सीवेज नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है, जबकि 47 अब भी हाउसबोट्स अभी भी नेटवर्क से जुड़ने के इंतजार में हैं।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि डल झील के चारों ओर बफर जोन बनाए गए हैं ताकि झील क्षेत्र को अतिक्रमण से बचाया जा सके। यह संयुक्त समिति नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर 21 अगस्त 2024 को गठित की गई थी।

अदालत ने कहा था कि डल झील और उसकी दो सहायक नहरें नैयादार और जोगीलंकर करीब-करीब ऑक्सीजन-रहित (एनेरोबिक) हो चुकी हैं और उनमें जैविक प्रदूषण का स्तर 23.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया है।

संयुक्त समिति ने 28 अक्टूबर 2024 को श्रीनगर की डल और नागिन झील की साइट का निरीक्षण किया था। इन दोनों झीलों के प्रबंधन और संरक्षण की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (एलसीएमए) के पास है। निरीक्षण के दौरान एलसीएमए ने कचरा प्रबंधन और सीवेज शोधन (सीवेज ट्रीटमेंट) से जुड़ी सुविधाओं की वर्तमान स्थिति की जानकारी साझा की थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी के क्षेत्र में आने वाले 18 नगर निगम वार्डों और अन्य क्षेत्रों से प्रतिदिन लगभग 52.4 मिलियन लीटर (एमएलडी) सीवेज पैदा हो रहा है। फिलहाल इस सीवेज को ब्रारी-नंबल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, नल्ला अमीर खान, हजरतबल एसटीपी और अन्य ट्रीटमेंट प्लांट्स के जरिए साफ किया जाता है।

इसके अलावा एलसीएमए ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत 100 बायोडाइजेस्टर्स भी लगाए हैं ताकि झील में जाने से पहले गंदे पानी को रोका जा सके। संयुक्त समिति को जानकारी मिली है कि गुप्तगंगा ईशबर निशात में 30 एमएलडी क्षमता वाला नया एसटीपी बनाया जा रहा है, जिसकी लागत करीब 305 करोड़ रुपए है। इसका उद्देश्य उत्पन्न सीवेज और ट्रीटमेंट के बीच की खाई को पाटना है। 

डल झील में प्रदूषण कम करने के लिए बनाई सीवेज योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें अमृत 2.0 के तहत एसटीपी का निर्माण शामिल है। जम्मू-कश्मीर अर्बन एनवायरमेंटल एंड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने टेंडर के लिए जारी किया है और फिलहाल इसका तकनीकी मूल्यांकन किया जा रहा है।

रिपोर्ट में क्या कुछ साझा की गई है जानकारी

जम्मू-कश्मीर लेक कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (एलसीएमए) ने झील के चारों ओर विशेषकर उत्तरी किनारे पर कई ऑक्सिडेशन तालाब बनाए हैं, जो मुख्य जल-संग्रह क्षेत्र है। इन तालाबों के माध्यम से हर दिन करीब 8 से 10 मिलियन लीटर सीवेज झील में जाने से पहले पोषक तत्वों को हटाने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए शुद्ध किया जाता है। हालांकि यह व्यवस्था अस्थाई है और इसे गुप्त गंगा में बनने वाले प्रस्तावित 30 एमएलडी एसटीपी से जोड़ दिया जाएगा।

झील से जुड़ी नहरों जोगी लंकर, नैयादार रैनावाड़ी और नौवपोरा में सीवेज के निपटान के लिए 7 इंटीग्रेटेड पंपिंग स्टेशन और 11 लो-लेवल पंपिंग स्टेशन लगाए गए हैं, जिनसे गंदा पानी ब्रारी-नंबल एसटीपी तक पहुंचाया जाता है।

इन झीलों में मौजूद हाउसबोट्स से निकलने वाले सीवेज के लिए 9.9 करोड़ रुपए की लागत से एक अलग परियोजना तैयार की गई है। कुल 617 हाउसबोट्स में से 570 को वैज्ञानिक तरीके से सीवेज नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है, जबकि 47 अब भी हाउसबोट्स अभी भी नेटवर्क से जुड़ने के इंतजार में हैं।

डल झील में मौजूद हाउसबोट्स को 11 क्लस्टर्स में बांटा गया है और प्रत्येक क्लस्टर में एक 'संप-कम-पंपिंग स्टेशन' लगाया गया है। इन स्टेशन से हाउसबोट्स को एचडीपीई पाइपों के जरिए मुख्य सीवर लाइन से जोड़ा जाता है, जहां सीवेज को ब्रारी-नंबल एसटीपी में पहुंचाया जाता है।

एलसीएमए ने उन हाउसबोट मालिकों को नोटिस जारी किए हैं जो अब तक नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं। उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि वे या तो अपने हाउसबोट्स को ऐसे स्थान पर स्थानांतरित करें जहां सीवर कनेक्शन संभव हो, या फिर अपनी खुद की सीवेज निपटान व्यवस्था के लिए आवश्यक क्षमता वाले मॉड्यूलर एसटीपी लगाएं।