30 जुलाई, 2025 को रूस के सुदूर पूर्व में स्थित कामचटका प्रायद्वीप में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप और उसके बाद आई सुनामी ने नौ माह पहले की उस अपील की याद ताजा कर दी, जब संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने दुनिया भर की सरकारों और नीति निर्माताओं से सुनामी से बचाव की तैयारियों में निवेश बढ़ाने का आग्रह किया था।
यूनेस्को ने इंडोनेशिया के बांदा आचे में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 2030 तक दुनिया भर में 100 'सुनामी-तैयार' तटीय समुदायों को विकसित करने के लिए एक रोडमैप जारी किया था।
यह चार दिवसीय सम्मेलन 2004 की विनाशकारी हिंद महासागर सुनामी की 20वीं बरसी के अवसर पर आयोजित किया गया था।
इस सम्मेलन का समापन ‘बांदा आचे स्टेटमेंट’ को अपनाने के साथ हुआ, जो एक वैश्विक प्रतिबद्धता है, जिसका उद्देश्य सुनामी चेतावनी और न्यूनीकरण प्रणालियों में सुधार करना है। इस पहल के तहत देशों और नागरिक समाज से 2030 के लक्ष्य को पाने के लिए निवेश तेज करने का आह्वान किया गया।
वर्तमान में करीब 70 करोड़ लोग ऐसे तटीय क्षेत्रों में रहते हैं, जो सुनामी की चपेट में आ सकते हैं। यह आंकड़ा 2050 तक 1 अरब तक पहुंच सकता है। प्रशांत महासागर क्षेत्र में हर 1-2 साल में स्थानीय रूप से हानिकारक सुनामी आती रहती है। यूनेस्को के अनुसार अगले 30 वर्षों में भूमध्यसागर में सुनामी आने की लगभग 100 प्रतिशत संभावना है।
सम्मेलन में भारत के 26 और इंडोनेशिया के 12 नए 'सुनामी रेडी' समुदायों को मान्यता दी गई, साथ ही बांदा आचे के पास दो गांवों में रियल-टाइम अभ्यास भी किए गए, ताकि समुदाय की तैयारी का मूल्यांकन किया जा सके।
यूनेस्को ने यह भी कहा कि वह 2030 तक उच्च जोखिम वाले तटीय क्षेत्रों के लिए 10 मिनट या उससे कम समय में सुनामी की पुष्टि देने की प्रणाली विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि जीवन की रक्षा की जा सके और आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।