एक नए शोध के जरिए शोधकर्ताओं ने नदियों से होने वाले कटाव की घटनाओं के बारे में अहम जानकारी हासिल की है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नदियां कब और कहां अचानक अपना रास्ता बदल सकती हैं। यह महत्वपूर्ण अध्ययन उस प्रक्रिया पर प्रकाश डालता है जिसने विनाशकारी बाढ़ ने मानव इतिहास को आकार दिया और अब यह दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए खतरा बना हुआ है।
अध्ययन के मुताबिक, इंडियाना यूनिवर्सिटी के अध्ययनकर्ताओं के टीम ने उपग्रह तकनीकों का उपयोग करते हुए, मानचित्रण किया कि किस प्रकार जमीन के कुछ हिस्से नदियों के उफान को अधिक कारगर बनाते हैं। घने वनस्पतियों के कारण नदी के चारों ओर के हिस्सों को मापना कठिन और समय लेने वाला है। अध्ययनकर्ताओं ने एक नए उपग्रह की मदद से इस काम को अंजाम दिया। लिडार नामक यह तकनीक वनस्पति में घुस कर पृथ्वी की ऊंचाई का पता लगाती है।
नदियों का रास्ता बदलना प्राचीन काल से चल रहा है, इसने मानव इतिहास में सबसे बड़ी बाढ़ को जन्म दिया। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन वैश्विक जल चक्रों को बदलता है और बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में लोग रहने लगते हैं, नदियों के रास्ते को बदलने को समझना और पूर्वानुमान लगाना पहले से कहीं अधिक अहम हो जाता है।
नदी में उफान आने का क्या है कारण?
उफान तब आता है जब नदी का पानी आस-पास के इलाकों से ऊपर उठ जाता है, अक्सर नदी के तल में तलछट के बनने के कारण ऐसा देखा जाता है। जब ऐसा होता है, तो नदी अपने किनारों से बाहर निकल सकती है और बाढ़ के मैदान में एक नया रास्ता बना सकती है। इससे भयंकर बाढ़ आ सकती है, क्योंकि पूरी नदी ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरती है जो आमतौर पर इतनी मात्रा को संभालने के लिए डिजाइन नहीं किए गए हैं।
उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में कोसी नदी के 2008 के उफान ने तीन करोड़ से अधिक निवासियों को सीधे प्रभावित किया, सैकड़ों लोगों की जान ले ली और एक बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ।
बाढ़ के खतरों का पूर्वानुमान लगाना
शोधकर्ताओं ने पिछले कई दशकों में नदियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उपग्रह इमेजरी का उपयोग करते हुए दुनिया भर में 174 नदी के कटावों से आंकड़ों का विश्लेषण किया। अध्ययनकर्ताओं ने खुलासा किया कि नदियों के मध्य हिस्सों की तुलना में पर्वत श्रृंखलाओं और तटीय क्षेत्रों के पास कटाव अधिक आम है। उन्होंने पाया कि इनमें से 74 प्रतिशत कटाव पर्वतीय मोर्चों या तटरेखाओं के पास हुए, ऐसे क्षेत्र जहां तलछट जल्दी से जमा हो जाती है।
इसके अलावा, स्थलाकृतिक के आंकड़ों का उपयोग करके, शोधकर्ताओं ने एक नया मॉडल विकसित किया है, जिसे वे "अवलशन कॉरिडोर" कहते हैं - वे रास्ते जो नदियां अपने वर्तमान मार्ग से अलग होने पर अपना सकती हैं। यह उपकरण सरकारों और योजनाकारों को अचानक बाढ़ के भारी खतरे वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बाढ़ प्रबंधन के संसाधन सीमित हैं।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पारंपरिक बाढ़ मॉडल भारी बारिश से बढ़ते जल स्तर पर गौर करते हैं, लेकिन उफान या बाढ़ के बिना किसी चेतावनी के हो सकते हैं, यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां बारिश बड़ी चिंता का विषय नहीं है।
ग्लोबल साउथ के लिए अहम
अध्ययन के निष्कर्ष ग्लोबल साउथ में विशेष रूप से अहम हो सकते हैं - अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कम विकसित हिस्से - जहां पर बाढ़ बार-बार आती है और अक्सर अधिक विनाशकारी होती है। इनमें से कई क्षेत्रों में, भूवैज्ञानिक कारणों और बुनियादी ढांचे की चुनौतियों के जुड़ने से लोग नदी के अचानक बदलावों से खतरे में पड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में सिंधु नदी पर 2010 में नदी के रस्ता बदलने से संबंधित बाढ़ ने दो करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित किया।
नया मॉडल, जो कम से कम आंकड़ों पर निर्भर करता है, देशों को बाढ़ से संबंधित आपदाओं के लिए तैयार होने में मदद कर सकता है, जिससे संभावित रूप से लोगों की जान बच सकती है और आर्थिक नुकसान कम हो सकता है।
यह वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और चिकित्सकों को बाढ़ के खतरे के बारे में सोचने और योजना बनाने का एक नया तरीका मुहैया करवाता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को बदल रहा है और दुनिया भर में बाढ़ के खतरों को बढ़ा रहा है।