बांग्लादेश में भारी बारिश के बाद बाढ़ से अस्तव्यस्त जीवन; फोटो: आईस्टॉक 
आपदा

मानसून में भीषण बाढ़, भूस्खलन से जूझते भारत-बांग्लादेश, नेपाल पर भी पड़ रही जलवायु परिवर्तन की मार

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक बांग्लादेश में 1.8 करोड़ से अधिक लोग मानसून के दौरान हुई भारी बारिश और बाढ़ से प्रभावित हैं

Lalit Maurya

मानसून के मौसम में भारत, बांग्लादेश में बाढ़, भूस्खलन का आना कोई नया नहीं है, लेकिन जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं इन आपदाओं से जुड़ी चिंताएं बढ़ती ही जा रही हैं।

इस साल भी मानसून में स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र ने जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि भारत, बांग्लादेश सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में मानसून के दौरान हुई भारी बारिश के बाद आई भीषण बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं जान-माल की भारी क्षति हुई है। वहीं अब तक लाखों लोगों को अपने घरों को छोड़ जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक बांग्लादेश में 1.8 करोड़ से अधिक लोग मानसून के दौरान हुई भारी बारिश और बाढ़ से प्रभावित हैं। वहीं 12 लाख से अधिक परिवार देश के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के बड़े हिस्से में अचानक से आई बाढ़ के कारण फंसे हुए हैं।

यूनिसेफ द्वारा जारी अपडेट के मुताबिक बांग्लादेश में चटग्राम और सिलहट सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं, जहां प्रमुख नदियां उफान पर हैं और खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

इस बारे में जारी शुरूआती अनुमानों से पता चला है कि इन चरम मौसमी घटनाओं की वजह से करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जिनमें 20 लाख बच्चे शामिल हैं। वहीं इनमें बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं जो भोजन और बुनियादी चीजों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इन लोगों तक राहत सेवाएं तक नहीं पहुंच पाई हैं।

यूनिसेफ के अनुसार, मंगलवार तक वहां 20 मौतें हो चुकी हैं जबकि 285,000 से अधिक लोगों को अपने घरों को छोड़ सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है। इतना ही नहीं वहां भारी बारिश और बाढ़ के चलते फसलों, सड़कों और मछली पालन को भी भारी नुकसान पहुंचा है।

इसका सीधा असर लोगों की जीविका पर पड़ रहा है। हालांकि बांग्लादेश सरकार द्वारा खोज और बचाव अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मदद नहीं पहुंच पाई है।

संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने वाले संगठनों ने जानकारी दी है कुछ स्थानों पर अगले सप्ताह तक जलस्तर में कमी आने की सम्भावना नहीं है। ऐसे में लम्बे समय तक पानी जमा रहने के कारण दूषित पानी से होने वाली बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ सकता है।

भारत में भी बिगड़े हैं हालात

भारत के कई हिस्सों में भी मानसून के दौरान भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का कहर देखा गया। त्रिपुरा में करीब 10 दिन पहले 72 घंटों से अधिक समय तक लगातार बारिश हुई। इसकी वजह से राज्य में हालात बेहद खराब हो गए।

स्थानीय मीडिया के मुताबिक 1983 के बाद से देखें तो राज्य में आई यह अब तक की सबसे भीषण बाढ़ थी। भारी बारिश के अलावा भूस्खलन के भी दो हजार से अधिक मामले सामने आए हैं। इनमें करीब 17 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें से करीब 117,000 लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है। इन सभी को जिला प्रशासन द्वारा स्थापित राहत शिविरों में ले जाया गया है।

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (ओसीएचए) ने जानकारी दी है कि बारिश और बाढ़ के चलते त्रिपुरा में 26 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य सरकार इससे निपटने के हर संभव प्रयास कर रही है। यह भी पता चला है कि वहां बाढ़ का पानी उतर रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले जुलाई के अंत से हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं में कई लोग हताहत हुए हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले जुलाई के अंत से हिमाचल प्रदेश में बादल फटने और भूस्खलन की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं में कई लोग हताहत हुए हैं। वहीं केरल के वायनाड में आई बाढ़ और भूस्खलन की ऐसी ही एक आपदा में 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।

कभी भारी बारिश तो कभी सूखा, जलवायु परिवर्तन से बदला रहा मानसून

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जहां एक दिन पहले 29 जुलाई 2024 को वायनाड सामान्य से कम बारिश से जूझ रहा था, वहीं 30 जुलाई, 2024 को बहुत ज्यादा बारिश हुई। उस दिन सामान्य से 500 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी।

ओसीएचए के मुताबिक, जुलाई से अब तक पाकिस्तान में प्राकृतिक आपदाओं ने 243 जिंदगियां लील ली हैं, इनमें से करीब आधे बच्चे थे। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि बच्चे इन आपदाओं के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं।

पाकिस्तान में बाढ़ ने स्थानीय लोगों की जीविका के साथ-साथ स्कूलों, पुलों जैसे अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया है। इन आपदाओं में कितनी क्षति हुई है, इसका आंकलन किया जा रहा है साथ ही लोगों तक जरूरी मदद पहुंचाने की कोशिश जारी है।

नेपाल जोकि पहले ही जलवायु में आते बदलावों से जूझ रहा है उसपर मानसून के दौरान चरम मौसमी घटनाओं न बुरी तरह प्रभावित किया है। एक तरफ अप्रत्याशित होता मानसून ऊपर से तेजी से बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिनकी वजह से नेपाल को भीषण बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

एवरेस्ट क्षेत्र में एक हिमनद झील फटने की वजह से आई बाढ़ ने थामे गांव को बर्बाद कर दिया है। यह गांव समुद्र तल से करीब 3,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और ट्रेकर्स के बीच काफी लोकप्रिय है।

हालांकि इस घटना में अब तक किसी के हताहत की सूचना नहीं है। लेकिन बाढ़ में दर्जन से ज्यादा घर, छोटे होटल, स्कूल और एक क्लिनिक बह गया है। नेपाल में काठमांडू सहित अन्य इलाकों में इस साल मानसून के दौरान 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। पिछले महीने ऐसी ही एक दुखद घटना में, दो बसें उफनती नदी में बह गई। इस दुर्घटना में करीब 65 लोगों की मौत हो गई थी।