स्टंटिंग यानी नाटापन कुपोषण का ही एक रूप है। स्टंटिंग के शिकार बच्चों में उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है। फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

डब्ल्यूएचओ की चेतावनी: मां-बाप के तंबाकू सेवन से बच्चों में रुक जाता है विकास

डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि नाटेपन से बच्चों में बीमारियों का खतरा, विकास में देरी और यहां तक कि मृत्यु का जोखिम भी बढ़ जाता है

Lalit Maurya

  • डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, तंबाकू सेवन से बच्चों में स्टंटिंग की समस्या बढ़ रही है, जिससे उनका शारीरिक विकास रुक जाता है।

  • यह समस्या अफ्रीका और एशिया में अधिक है।

  • धूम्रपान करने वाले माता-पिता के बच्चों में स्टंटिंग का खतरा अधिक होता है, जिससे बीमारियों और मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।

  • वैज्ञानिकों के मुताबिक स्टंटिंग के शिकार बच्चों में उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है।

  • आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया में करीब 14.8 करोड़ बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं, जिनमें से ज्यादातर बच्चे अफ्रीका (43 फीसदी) और एशिया (52 फीसदी) में हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि तंबाकू उपयोग से बच्चों के शारीरिक विकास पर असर पड़ रहा है और उनमें स्टंटिंग की समस्या बढ़ रही है।

गौरतलब है कि स्टंटिंग यानी नाटापन कुपोषण का ही एक रूप है। बता दें कि स्टंटिंग के शिकार बच्चों में उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है। आंकड़ों के मुताबिक यह समस्या दुनिया में करीब 14.8 करोड़ बच्चों को प्रभावित कर रही है, जिनमें से ज्यादातर बच्चे अफ्रीका (43 फीसदी) और एशिया (52 फीसदी) में हैं।

बच्चों पर तंबाकू का असर

डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि नाटेपन से बच्चों में बीमारियों का खतरा, विकास में देरी और यहां तक कि मृत्यु का जोखिम भी बढ़ जाता है।

डब्ल्यूएचओ से जुड़े डॉक्टर एटिएन क्रग का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “नाटापन बच्चों के बढ़ने, सीखने और आगे बढ़ने के अधिकार को छीन लेता है। जिन बच्चों के माता-पिता धूम्रपान करते हैं, उनमें स्टंटिंग का खतरा अधिक होता है।“

क्यों है खतरनाक?

रिपोर्ट में बच्चों पर तम्बाकू के प्रभाव को उजागर करते हुए चेताया है, जिन बच्चों के माता-पिता धूम्रपान करते हैं, उनमें नाटेपन का खतरा अधिक होता है। यह जोखिम जितना ज्यादा धुएं के संपर्क में आते हैं, उतना बढ़ जाता है।

इसके साथ ही गर्भावस्था में धूम्रपान समय से पहले जन्म, कम वजन और कमजोर शारीरिक विकास का कारण बन सकता है।

इतना ही नहीं अगर गर्भवती महिला ज्यादा धूम्रपान करती है तो उसका, शिशु पर उतना ही गंभीर असर पड़ता है। चिंता की बात है कि यह नुकसान शैशवकाल से आगे तक बना रह सकता है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान छोड़ने से बच्चों के विकास में सुधार देखा गया है। देखा जाए तो यह समस्या बच्चों के संपूर्ण विकास और स्वास्थ्य पर असर डालती है।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि तंबाकू के धुएं में हजारों ऐसे जहरीले रसायन होते हैं, जो गर्भस्थ शिशु और बच्चों के विकास को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान धुएं का संपर्क बच्चे के विकास को रोक सकता है, जन्मजात बीमारियां पैदा कर सकता है और आगे चलकर गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

जन्म के बाद सेकेंड-हैंड स्मोक यानी दूसरों द्वारा किए जा रहे धूम्रपान से पैदा हुए धुएं के संपर्क में आना बच्चों में सांस की बीमारियां और विकास संबंधी समस्याओं को बढ़ा देता है, जिससे स्टंटिंग का खतरा और बढ़ जाता है।

यह रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ की तंबाकू से जुड़ी श्रृंखला की 11वीं कड़ी है और इसमें इस विषय पर अब तक के जुटाए सबूतों का सार दिया गया है। यह रिपोर्ट खासतौर पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों, नीतिनिर्माताओं और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए तैयार की गई है।

भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में पांच वर्ष से कम उम्र के 31.7 फीसदी बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं। मतलब की यह बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ‘लेवल्स एंड ट्रेंड इन चाइल्ड मालन्यूट्रिशन 2023’ में सामने आई है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में व्याप्त स्टंटिंग के मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया का हर चौथा स्टंटिंग प्रभावित बच्चा भारत में है। यानी की दुनिया में भारत, पांच वर्ष से कम आयु के 24.6 फीसदी स्टंटिंग प्रभावित बच्चों का घर है।

जरूरी हैं सख्त नीतियां और ठोस कदम

अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने सरकारों से भी अपील की है कि वे तंबाकू को निंयत्रित करने के लिए नीतियों को और सख्त करें। साथ ही बच्चों को तंबाकू के धुएं से खासकर गर्भावस्था के दौरान बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।

डब्ल्यूएचओ ने देशों से यह भी अपील की है कि वे तंबाकू नियंत्रण के लिए बनाए अंतरराष्ट्रीय समझौते (डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी) और एमपॉवर रणनीतियों को पूरी तरह लागू करें। ये रणनीतियां तंबाकू के इस्तेमाल को कम करने और स्वास्थ्य को बचाने में असरदार साबित हुई हैं। इनमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों को सेकेंड-हैंड स्मोक से बचाना। धूम्रपान छोड़ने में मदद करने वाली सेवाओं को बढ़ाना और सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर सख्त प्रतिबंध लगाना शामिल है।

डब्ल्यूएचओ का यह भी कहना है कि तंबाकू के धुएं से बच्चों के विकास पर बुरा असर पड़ता है, इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, लेकिन यह कैसे होते है, इसे समझने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है। साथ ही धूम्रपान छोड़ने से नाटेपन की यह समस्या किस हद तक कम हो सकती है, इस पर और शोध करने की आवश्यकता है।

लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि गर्भवती महिलाओं को तंबाकू के धुएं से बचाना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे नाटेपन की समस्या में कमी आएगी और बच्चों की सेहत और विकास बेहतर होगा। साथ ही इसकी मदद से स्वास्थ्य से जुड़े वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।