आखिरकार पांच सितंबर को जब वैक्सीन की खेप लेकर एक कंटेनर, कांगो गणराज्य की राजधानी किंशासा पहुंचा तो इसमें लगे समय और प्रयासों को देखकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता था। यह यूरोप से किंशासा आया था, जो एमपॉक्स, जिसे पहले मंकीपॉकस कहा जाता था, के प्रकोप का केंद्र था।
कंटेनर का दृश्य, जिसमें यूरोपियन यूनियन द्वारा डोनेट की गईं एक लाख वैक्सीन की खुराक थीं और जिसे एयरपोर्ट पर एक ट्राली में खाली किया गया, उस वैश्विक राजनीति, अर्थशास्त्र और नौकरशाही की जड़ता को प्रतिबिंबित कर रहा था, जो दर्शाता है कि एक गरीब देश में महामारी से निपटने का इंतजाम किस तरह किया जा रहा है।
जब यह कॉलम लिखा जा रहा था, उसके दो दिन बाद यूरोपियन यूनियन ने कांगो गणराज्य की राजधानी समेत कुछ अफ्रीकी देशों को दो लाख वैक्सीन भेजीं, जहां एमपॉक्स के मामले बढ़ रहे हैं। इसके बाद भी, कुल मिलाकर, ये डोनेशन उस महामारी से निपटने के लिए जरूरी राहत का महज एक अंश है, जिसने अब तक इस महाद्वीप के एक दर्जन देशों को प्रभावित किया है। 2024 के आठ महीनों में, अकेले कांगो गणराज्य में एमपॉक्स के 18,000 से ज्यादा मामले सामने आए हैं, जिसमें 629 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से अधिकांश बच्चे हैं।
पहले के जैसे, और सबसे करीबी कोविड-19 महामारी में अफ्रीका में वैक्सीनों की भयंकर कमी है। किसी बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी परीक्षण किट और थैरेपी का तो जिक्र ही क्या, जो उस समय की याद दिलाता है, जब चेचक दुनिया की जानलेवा बीमारी थी। कांगों गणराज्य को एमपॉक्स को फैलने से रोकने के लिए इसकी 35 लाख वैक्सीन की जरूरत है जबकि दूसरे अफ्रीकी देशों को दस लाख वैक्सीन चाहिए।
हालांकि वैक्सीन महमारी को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा हथियार है, जो चेचक में काम करता है लेकिन किसके पास अब इसकी खुराकें बची हैं। 1980 के दशक में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दुनिया को चेचक-मुक्त घोषित करने के बाद ज्यादातर देशों के पास इसकी बहुत कम वैक्सीन हैं या वे भी नहीं हैं।
हमें बताया गया कि दुनिया भर में केवल दो कंपनियां एमपॉक्स की वैक्सीन का उत्पादन करती हैं - डेनमार्क की बवेरियन नॉर्डिक (जेवाईएनएनईओएस) और जापान की केएम बायोलॉजिक्स, जो एलसी16 बनाती है, यह एकमात्र टीका है जो बच्चों को दिया जा सकता है लेकिन अभी तक इसका व्यवसायीकरण नहीं किया गया है।
एक और कंपनी, अमेरिका की एमरजेंट बॉयोसोल्यूशंस है जो चेचक की पुरानी वैक्सीन तैयारी करती है, जिसका मुख्य तौर पर अमेरिका अपने लिए संचय करता है। इन सब बातों की वजह से वैक्सीन महंगी है और इसकी आपूर्ति में कमी है, एक रिपोर्ट के मुताबिक, बवेरियन नॉर्डिक की एक डोज की कीमत 110 डॉलर है।
कड़वा सच यह है कि अमेरिका के पास चेचक की वैक्सीन का विशाल भंडार है, यानी इसका मतलब है कि इनका इस्तेमाल जैविक यु़द्ध की स्थिति में ही किया जाएगा। कहा जाता है कि इसने अपने सामरिक राष्ट्रीय भंडार में पुरानी एसीएएम 2000 की दस करोड़ से ज्यादा वैक्सीन जमा कर रखी हैं। इसके अलावा दूसरी पीढ़ी की चेचक की वैकसीन हैं, जो इसने हाल ही में जमा की हैं। समय-सीमा खत्म हो जाने के बाद इन वैक्सीनों की जगह नई वैक्सीन ले लेती है।
अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक, उसने जुलाई 2022 में एमपॉक्स के हमले के समय ही जेवाईएनएनईओएस वैक्सीन की अतिरिक्त 25 लाख खुराक का आर्डर दे दिया था, और 2023 के मध्य तक तो उसने इसकी 70 लाख खुराक जमा कर ली थीं।
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन का कहना है कि इसके पीछे यह सोच थी कि चेचक को जैविक युद्ध में खतरनाक हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने की स्थिति से निपटने के लिए और इमरजेंसी में तैयारी के लिए सामरिक भंडार में दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन जमा करना जरूरी था।
यही वजह है कि जब इन देशों में एमपॉक्स फिर से उभरा, तो अमेरिका या यूरोप में वैक्सीन की कोई कमी नहीं थी। इसके बावजूद, इतनी बड़ी मात्रा में वैक्सीन रिजर्व होने पर भी अमेरिका ने अफ्रीका को केवल पचास हजार वैक्सीन डोनेट करने के ऐलान किया, इसमें भी संभवतः रणनीतिक कारणों से उसने ज्यादा वैक्सीन नाइजीरिया को डोनेट कीं।
दूसरी ओर जापान ने कहा है कि वह एलसी 216 वैक्सीन की बीस से तीस लाख खुराकें अफ्रीका को डोनेट करेगा, हालांकि उसने अभी तक इसके लिए कोई समय-सीमा नहीं बताई है। इस स्थिति में, जबकि वैक्सीन की असमानता लगातार बनी हुई है, मई 2022 से विकसित देशों और अफ्रीका में एमपॉक्स के प्रकोप के आरंभ के बाद से विश्व स्वास्थ्य संगठन इस स्थिति पर उत्सुक ज्यादा है और बोल कम रहा है।
जहां तक पहले की बात है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कुछ महीनों के अंदर ही अंतरराष्ट्रीय सरोकार का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) घोषित कर दिया था। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की अपनी आपातकालीन कमेटी दो बैठकों के बाद भी इसकी स्वीकृति नहीं दे पा रही थी, यह फैसला घेब्रेयेसस ने लिया था।
जबकि इस साल कांगो गणराज्य और उसके आसपास के देशों में महामारी के मामले बढ़ते देखने के बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे पीएचईआईसी घोषित करने से पैर पीछे खींच लिए। यह उसने उसके एक दिन बाद 14 अगस्त को किया, जब अफ्रीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने इसे लेकर आपातकाल घोषित कर दिया। कांगो गणराज्य ने एक साल पहले ही अपने देश में स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों के तहत पीएचईआईसी पर फैसला लेता है, जो शीर्ष स्वास्थ्य संगठन द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं और यह समझना मुश्किल है कि महानिदेशक ने यह निर्णय जारी करने में इतना समय क्यों लगाया। पीएचईआईसी का ऐलान, पूरी दुनिया में इस पर कार्रवाई को लेकर प्रेरणा का काम करता है।
वैक्सीन की खेप, पहले इसलिए नहीं पहुंची क्योंकि दान करने वाले देश और एजेंसियां हालात की गंभीरता जानने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन का इंतजार कर रहे थे, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानकर्ता भयंकर संकट की चेतावनी दे रहे थे। वास्तव में यह उस घोषणापत्र के जारी होने के 15 दिन बाद किया गया, जिसमें यूनाईटेड नेशंस चिल्ड्रंस फंड यानी यूनिसेफ ने टीकों की खरीद के लिए आपातकालीन टेंडर जारी किया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अफ्रीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने भी एमपॉक्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के अंतर्गत वर्गीकृत कर दिया है।
यूनिसेफ के टेंडर का मकसद, वैक्सीन निर्माताओं के साथ सशर्त आपूर्ति समझौतों के माध्यम से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों को आपूर्ति सुरक्षित करने में मदद करना है। लेकिन यह उन देशों और साझेदारों पर निर्भर है जिनके पास सुरक्षित वित्तपोषण, पुष्ट मांग और तैयारी और टीकों को स्वीकार करने के लिए आवश्यक नियामक ढांचा है। यहां एक दिक्कत यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकालीन उपयोग सूची के लिए निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी की समीक्षा अभी तक पूरी नहीं की है।
हालांकि इससे कुछ सबक सीखे गये हैं। अफ्रीका ने यह सीखा है कि उसे अभियान के मोर्चे पर सामने रहना है और महत्वूपर्ण फैसलों को वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों पर नहीं छोड़ना है। इन सबका एक स्पष्ट संकेत यह है कि अफ्रीका का रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र इसमें महत्वूपर्ण भूमिका निभा रहा है। हर पहल में, यह एक सक्रिय भागीदार है और एमपॉक्स के प्रसार को रोकने के लिए एक संयुक्त प्रतिक्रिया योजना तैयार कर रहा है। सितंबर से फरवरी 2025 तक चलने वाली लगभग साठ करोड़ डॉलर के बजट वाली छह महीने की योजना में अफ्रीका पर एक बड़ा हिस्सा खर्च करने की रूपरेखा तैयार की गई है। इसमें 29 अफ्रीकी देशों को इस संकट से निपटने के लिए तैयार किया जाएगा।
जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय प्रमुख ने कहा कि संयुक्त कार्रवाई मील का पत्थर है क्योंकि दोनों एजेंसियां एक क्षेत्र में संसाधनों और क्षमताओं को जुटाने के लिए तेजी से और प्रभावी ढंग से कार्य करती हैं। ये उस क्षेत्र में काम करेंगी, जो लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी आपदाओं से निपटने में असहाय और अक्षम है। यह बदलाव का बड़ा संकेत है और कम विकसित देशों के लिए इससे उम्मीदें जगी हैं। खासकर कांगो गणराज्य को बड़ी मदद की जरूरत है।