दुर्लभ जन्म अवस्था: संयुक्त जुड़वां शिशु हर 50,000 जन्मों में एक बार पैदा होते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

दुर्लभ जन्म, जीवन की चुनौतियां व जागरूकता बढ़ाने की वैश्विक पहल का दिन है आज

संयुक्त जुड़वां शिशु एक दुर्लभ जन्म अवस्था है, जिसमें चिकित्सा देखभाल, जागरूकता और सामाजिक समावेशन की आवश्यकता होती है।

Dayanidhi

  • विश्व संयुक्त जुड़वां दिवस: 24 नवंबर को जागरूकता बढ़ाने और समर्थन सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाता है।

  • दुर्लभ जन्म अवस्था: संयुक्त जुड़वां शिशु हर 50,000 जन्मों में एक बार पैदा होते हैं।

  • लड़कियों में अधिकता: इन शिशुओं में लड़कियों का अनुपात लड़कों से लगभग 3:1 होता है।

  • स्वास्थ्य के लिए खतरे: उच्च मृतजन्म दर लगभग 60 प्रतिशत और जटिल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।

  • समान अवसर और समावेशन: स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत करना और सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

संयुक्त जुड़वां शिशु, जिन्हें कंजॉइन्ट ट्विन्स भी कहा जाता है, जन्म की अत्यंत दुर्लभ अवस्था का उदाहरण हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक ही निषेचित अंडाणु से बनने वाला भ्रूण गर्भाधान के लगभग 13 से 15 दिनों के बीच पूरी तरह विभाजित नहीं हो पाता।

आमतौर पर समान जुड़वां शिशु गर्भ के शुरुआती दिनों में दो अलग भ्रूणों में विभाजित हो जाते हैं, परंतु इस दुर्लभ परिस्थिति में विभाजन अधूरा रह जाता है और दोनों भ्रूण शरीर के किसी न किसी हिस्से से जुड़े रह जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, ऐसे जुड़वां शिशुओं की संभावना लगभग प्रति 50,000 जन्मों में एक होती है।

दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त जुड़वां शिशुओं में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक पाई जाती है। आंकड़ों के अनुसार यह अनुपात लगभग 3:1 है। हालांकि, वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की व्यापक रिसर्च के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि ऐसा क्यों होता है।

इस अवस्था का मातृ आयु, नस्ल, पारिवारिक इतिहास या किसी विशेष सामाजिक-आर्थिक कारक से कोई संबंध नहीं पाया गया है। इसके अलावा इस स्थिति की पुनरावृत्ति की संभावना भी बेहद कम मानी जाती है, यानी एक परिवार में यह स्थिति बार-बार उत्पन्न नहीं होती।

संयुक्त जुड़वां शिशुओं का जन्म कई चुनौतियों के साथ जुड़ा होता है। गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं बढ़ सकती हैं और कई मामलों में प्रसव से पहले ही गर्भपात या मृतजन्म का खतरा होता है। अनुमान है कि ऐसे मामलों में लगभग 60 प्रतिशत जन्म मृतजन्म होते हैं।

हालांकि कुछ जुड़वां शिशु जीवित पैदा होते हैं और उचित चिकित्सा देखभाल तथा आधुनिक शल्य तकनीकों की मदद से स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अवसर हासिल कर सकते हैं। फिर भी उपचार और देखभाल कई बार जटिल और लंबे समय तक होती है।

विश्व संयुक्त जुड़वां दिवस: जागरूकता की आवश्यकता

संयुक्त जुड़वां शिशुओं की इस दुर्लभ स्थिति को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 नवंबर को “विश्व संयुक्त जुड़वां दिवस” के रूप में घोषित किया है। इस विशेष दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को इस स्थिति के बारे में जागरूक करना और संयुक्त जुड़वां बच्चों तथा उनके परिवारों को आवश्यक सहयोग उपलब्ध कराना है।

महासभा ने यह भी रेखांकित किया कि समाज के सभी स्तरों पर ऐसे बच्चों की स्थिति को समझना, उनके अधिकारों और आवश्यकताओं का सम्मान करना, तथा उनके लिए अधिक समावेशी वातावरण तैयार करना बेहद जरूरी है। यह भी महत्वपूर्ण है कि संयुक्त जुड़वां शिशुओं के संबंध में गुणवत्ता आधारित, विश्वसनीय और समय पर उपलब्ध चिकित्सा आंकड़ों में सुधार किया जाए, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं और नीतियों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

स्वास्थ्य के अधिकार और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र यह मानता है कि हर व्यक्ति, चाहे उसकी जाति, रंग, लिंग, जन्म स्थिति या किसी अन्य आधार पर- को सर्वोच्च स्तर की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने का अधिकार है। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, संगठन का लक्ष्य है कि दुनिया के सभी देशों में स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत हों और हर व्यक्ति तक यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज यानी सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा पहुंचे।

इसके लिए संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक साझेदारियों को मजबूत बनाने की दिशा में लगातार कार्य कर रहा है। उद्देश्य यह है कि स्वास्थ्य प्रणालियां लोग-केंद्रित, टिकाऊ, लचीली और गुणवत्तापूर्ण हों। इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और एकजुटता पर जोर देता है, ताकि संयुक्त जुड़वां शिशुओं जैसे दुर्लभ मामलों वाले बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और जीवन में समान अवसर मिल सकें।

संयुक्त जुड़वां शिशु मानव जन्म का एक अनोखा और संवेदनशील रूप हैं। उनकी देखभाल, उपचार और सामाजिक समावेशन के लिए सरकारों, समाज, चिकित्सा क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है।

जागरूकता बढ़ाकर और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत बनाकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस दुर्लभ अवस्था में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को सम्मान, सहयोग और स्वस्थ जीवन जीने का अवसर मिल सके।