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स्वास्थ्य

कृत्रिम मिठास का कड़वा सच: दिमाग पर असर डाल सकते हैं चीनी के कुछ विकल्प

रिसर्च से पता चला है कि कृत्रिम मिठास यानी आर्टिफिशियल स्वीटनर्स जिन्हें अक्सर चीनी का हेल्दी विकल्प समझकर रोजाना इस्तेमाल किया जाता है, वह धीरे-धीरे दिमाग को कमजोर कर सकते हैं

Lalit Maurya

  • कृत्रिम मिठास का अधिक सेवन दिमागी क्षमता को कमजोर कर सकता है, खासकर मधुमेह के मरीजों में।

  • साओ पाउलो विश्वविद्यालय के अध्ययन में पाया गया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर्स जैसे एस्पार्टेम और सैकरिन का अधिक सेवन सोचने और याददाश्त पर नकारात्मक असर डालता है।

  • यह अध्ययन बताता है कि चीनी के हेल्दी विकल्प के रूप में अपनाई गई मिठास सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है।

कृत्रिम मिठास यानी आर्टिफिशियल स्वीटनर्स जिन्हें अक्सर चीनी का हेल्दी विकल्प समझकर रोजाना इस्तेमाल किया जाता है, वह धीरे-धीरे हमारे दिमाग को कमजोर कर सकते हैं।

मिठास का यह कड़वा सच अंतराष्ट्रीय जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आया है। रिसर्च से पता चला है कि कुछ कम या बिना कैलोरी वाले शुगर सब्स्टीट्यूट लंबे समय में दिमागी सोच और याददाश्त पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।

यह अध्ययन ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय की शोधकर्ता डॉक्टर क्लॉडिया सुएमोटो और उनकी टीम द्वारा किया गया है। अध्ययन से पता चला है कि जो लोग कृत्रिम मिठास का सबसे अधिक सेवन करते हैं, उनमें सोचने और याद रखने की क्षमता उन लोगों की तुलना में तेजी से घटती है जो इसका कम सेवन करते हैं।

यह असर खासतौर पर मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों में ज्यादा देखा गया। हालांकि शोध ने सीधे तौर पर यह साबित नहीं किया कि ये स्वीटनर्स ही इसका कारण हैं। इस अध्ययन में कुल सात तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का विश्लेषण किया है, जिनमें एस्पार्टेम, सैकरिन, एसेसल्फेम-के, एरिथ्रिटॉल, जाइलिटॉल, सॉर्बिटॉल और टैगाटोज शामिल थे।

इनमें से अधिकांश का इस्तेमाल फ्लेवर्ड वॉटर, एनर्जी ड्रिंक, सोडा, दही और लो-कैलोरी वाली मिठाइयों में होता है। कुछ को लोग चाय या कॉफी में अलग से भी इस्तेमाल करते हैं।

अध्ययन में 12,772 वयस्कों को शामिल किया गया, जिनकी औसत उम्र 52 वर्ष थी और उन्हें करीब आठ वर्षों तक ट्रैक किया गया। अध्ययन की शुरुआत में प्रतिभागियों से उनके खानपान से जुड़ी आदतों की जानकारी ली गई, उनसे पूछा गया कि उन्होंने पिछले एक साल में क्या खाया और पिया था।

इसके आधार पर उन्हें तीन समूहों में बांटा गया, जिनमें पहला समूह वो था जो कृत्रिम मिठास का कम सेवन करता था। इस वर्ग में शामिल लोग हर दिन औसतन 20 मिलीग्राम कृत्रिम मिठास का सेवन कर रहे थे। इसी तरह मध्यम और मिठास का अधिक सेवन करने वाले का अलग-अलग समूह बनाया गया।

इसका सबसे ज्यादा सेवन करने वाले समूह ने औसतन 191 मिलीग्राम प्रतिदिन तक कृत्रिम मिठास का सेवन किया था। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि डाइट सोडा की एक कैन में करीब इतना ही एस्पार्टेम होता है। इन मिठासों में सॉर्बिटोल का सेवन सबसे अधिक पाया गया, जो औसतन 64 मिलीग्राम प्रतिदिन था।

अध्ययन में प्रतिभागियों की स्मरण शक्ति, भाषा और सोचने की क्षमता पर असर को जानने के लिए शुरुआत, बीच और अंत, तीनों चरणों में उनके दिमागी परीक्षण (कॉग्निटिव टेस्ट) किए गए। इन परीक्षणों से यह देखा गया कि उनकी बोलने की प्रवाह क्षमता, याद रखने की ताकत और जानकारी को समझने और प्रोसेस करने की गति समय के साथ कैसे बदली।

दिमाग पर भारी पड़ सकता है मीठे का मोह

इस अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जो लोग सबसे ज्यादा कृत्रिम मिठास लेते थे, उनमें सोचने और याददाश्त की क्षमता में गिरावट 62 फीसदी तेज पाई गई। यानी यह गिरावट उम्र के करीब 1.6 साल बढ़ने के बराबर थी। वहीं मध्यम सेवन करने वाले समूह में यह गिरावट 35 फीसदी तेज थी, जो उम्र के करीब 1.3 साल बढ़ने के बराबर है।

दिलचस्प बात यह रही कि 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों में यह गिरावट ज्यादा तेज थी, जबकि 60 वर्ष से ऊपर वालों में इसका कोई खास फर्क नहीं दिखा। वहीं मधुमेह से पीड़ित लोगों में कृत्रिम मिठास और संज्ञानात्मक गिरावट का संबंध कहीं ज्यादा मजबूत था।

रिसर्च में पाया गया कि एस्पार्टेम, सैकरीन, एसेसल्फेम-के, एरिथ्रिटोल, जाइलिटोल और सॉर्बिटॉल का अधिक सेवन कुल मिलाकर दिमागी क्षमता, खासकर याददाश्त, को तेजी से कमजोर करता है। हालांकि, टैगाटोज का ऐसा कोई असर नहीं देखा गया।

डॉक्टर सुएमोटो का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “कम या बिना कैलोरी वाले स्वीटनर को लोग अक्सर चीनी का सेहतमंद विकल्प मानते हैं, लेकिन नतीजे बताते हैं कि कुछ स्वीटनर लंबे समय में मस्तिष्क के लिए हानिकारक हो सकते हैं।“

उनका यह भी कहना है कि "विशेष रूप से डायबिटीज से पीड़ित लोग अक्सर इनका अधिक सेवन करते हैं, ऐसे में इस पर और गहन शोध करने की जरूरत है।“

शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि अध्ययन में सभी प्रकार के कृत्रिम स्वीटनर शामिल नहीं थे, और आहार संबंधी जानकारी प्रतिभागियों द्वारा दी गई थी, जिससे याददाश्त की त्रुटि से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि फिर भी यह अध्ययन एक अहम संदेश देता है कि चीनी के हेल्दी विकल्प के रूप में अपनाई गई ‘कृत्रिम मिठास’ सेहत के लिए मीठी नहीं, बल्कि कड़वी भी साबित हो सकती है।

बता दें कि इससे पहले जुलाई 2023 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन और ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव्स (जेईसीएफए) ने संयुक्त बयान जारी करते हुए एस्पार्टेम को उन उत्पादों की लिस्ट “आईएआरसी ग्रुप 2बी” में शामिल किया था, जिनसे कैंसर हो सकता है।

वहीं एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि 'सुक्रालोज' में पाया जाने वाला 'सुक्रालोज-6-एसीटेट' जीनोटॉक्सिक होता है। यह आंत को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ा सकता है।

2018 में किए एक अध्ययन से पता चला है कि सुक्रालोज के पाचन के बाद शरीर में कई यौगिक बनते हैं जिनमें से एक सुक्रालोज-6-एसीटेट भी होता है। यह यौगिक, आंत की परत को नुकसान पहुंचा सकता है।

वहीं अन्य अध्ययन से पता चला है कि यह इसके साथ-साथ ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ा सकता है। साथ ही सूजन और यहां तक कि कैंसर का कारण भी बन सकता है।