भारत में बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है जो कई सदियों से चली आ रही है। हालांकि इसमें कमी के बावजूद अभी भी कई हिस्से ऐसे हैं जहां इसका चलन जारी है। ऐसे में मामले की संजीदगी को देखते हुए आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को भी कदम उठाने पड़े हैं।
देश में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर, 2024 को कई निर्देश जारी किए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जिला स्तर पर बाल विवाह निषेध अधिकारियों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है।
साथ ही अदालत ने जिला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों से अपने जिलों में बाल विवाह को रोकने के लिए सक्रिय रूप से काम के लिए भी कहा है। अदालत का कहना है कि उन्हें इसे रोकने की जिम्मेवारी लेनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को रोकने के लिए एक विशेष इकाई की स्थापना का भी सुझाव दिया है। अदालत के मुताबिक एक “बाल विवाह मुक्त गांव” पहल की भी शुरूआत की जानी चाहिए। इसके तहत पंचायत और समुदाय के नेताओं को बाल विवाह रोकने और उसकी रिपोर्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के सहयोग से बाल विवाह की ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिए एक पोर्टल बनाने का भी निर्देश दिया है।
इस पोर्टल पर बिना नाम और व्यक्तिगत जानकारी साझा किए रिपोर्टिंग की अनुमति होनी चाहिए। इससे पीड़ितों और सम्बंधित नागरिकों के लिए शिकायत दर्ज कराने और सहायता सेवाओं तक पहुंचना आसान होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को जोखिम में पड़े बच्चों की पहचान करने और उन्हें सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही अदालत ने उन्हें बाल विवाह के मामलों की पहचान करने और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों जैसी गरीबी या जल्दी शादी के दबाव के कारण स्कूल छोड़ सकते हैं, उनकी निगरानी करने का भी आदेश दिया है।
भारतीय हैं बाल विवाह की शिकार एक तिहाई महिलाएं और बच्चियां
बता दें कि बाल विवाह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है। दुनिया में बाल विवाह की समस्या कितनी विकट है इसका अंदाजा यूएनएफपीए द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है। इन आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है।
बाल विवाह एक ऐसी सामाजिक कुरीति है, जो सदियों से मानव समाज का हिस्सा रही है। भले ही पिछले कुछ दशकों में इस तरह के मामलों में कमी जरूर आई है, लेकिन सच यही है कि हम अभी भी इस समस्या से उबर नहीं पाए हैं।
सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी रिपोर्ट 'ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021' से पता चला है कि बाल विवाह, हर रोज 60 से ज्यादा बच्चियों की जान लील रहा है। मतलब की इसकी वजह से हर साल 22,000 से ज्यादा बच्चियों की मौत हो जाती है। इसकी वजह से दक्षिण एशिया में हर रोज छह बच्चियों अपनी जान गंवा रही हैं।
यूनिसेफ ने भी अपनी रिपोर्ट "इस एन एन्ड टू चाइल्ड मैरिज विदइन रीच" में इस बात की पुष्टि की है कि जो मौजूदा हालात हैं, उन्हें देखते हुए इस कुरीति को पूरी तरह जड़ से खत्म करने में अभी और 300 वर्ष लगेंगें।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब 64 करोड़ महिलाओं और युवतियां का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो गया था। बाल विवाह की शिकार इनमें से करीब आधी महिलाएं और बच्चियां दक्षिण एशिया में रह रही हैं, जिनकी कुल संख्या 29 करोड़ है।
यदि भारत की बात करें तो दुनिया में बाल विवाह की शिकार करीब एक तिहाई महिलाएं और बच्चियां भारत में हैं। मतलब की देश में करीब 21.7 करोड़ महिलाओं और बच्चियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था। इसके बाद बांग्लादेश में 4.2 करोड़, चीन में 3.5 करोड़, इंडोनेशिया में 2.6 करोड़, नाइजीरिया में 2.4 करोड़, ब्राजील में 2.2 करोड़ और पाकिस्तान में दुनिया की 1.9 करोड़ बालिका वधु हैं।
बाल विवाह को भले ही 1929 में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन आज भी यह पूरे भारत में बड़ी समस्या बनी हुई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 5वें दौर के आंकड़ों के अनुसार, 2019-21 में 20 से 24 वर्ष की आयु के बीच की हर 4 में से एक महिला (23.3 प्रतिशत) की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई। बाल विवाह सबसे अधिक पश्चिम बंगाल (41.6 प्रतिशत) में प्रचलित है।
इसके बाद बिहार (40.8 प्रतिशत), त्रिपुरा (40.1 प्रतिशत) और झारखंड (32.2 प्रतिशत) का नंबर आता है। असम में यह आंकड़ा 31.8 फीसदी है।
ऐसे में हमें नहीं भूलना चाहिए कि बच्चियों को भी अपने फैसले लेने का हक है। उन्हें भी पढ़ने-लिखने, खेलने और बेहतर भविष्य बनाने का अधिकार है और यह उनसे छीना नहीं जा सकता।