एक नए शोध से पता चलता है कि स्मार्टफोन लोगों की नींद, कदमों और हृदय गति पर नजर रखकर उन्हें स्वस्थ रहने में मदद कर सकते हैं, लेकिन वे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को सामने लाने में भी मदद कर सकते हैं।
एक अध्ययन में, मिशिगन विश्वविद्यालय, मिनेसोटा विश्वविद्यालय और पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन सेंसर का उपयोग रोजमर्रा के जीवन के शांत पर्यवेक्षक के रूप में किया। इन डिजिटल उपकरणों ने साधारण क्रियाओं पर नजर रखी, जैसे कि हम कितना चलते हैं, सोते हैं या अपना फोन देखते हैं, लेकिन साथ ही यह भी अहम जानकारी प्रदान की कि हमारा मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य रोजमर्रा की दिनचर्या में कैसे सामने आता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि कई अलग-अलग मानसिक विकारों के व्यवहार पैटर्न समान होते हैं, जैसे घर पर अधिक समय बिताना, देर तक सोना और फोन को बार-बार चार्ज न करना। ऐसे व्यवहार किसी व्यक्ति के ‘पी-फैक्टर’ नामक किसी चीज के स्तर को दर्शा सकते हैं, जो कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा होता है।
जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने पाया कि कुछ व्यवहार, जैसे कम फोन कॉल करना या कम चलना, कम सामाजिक होने या बीमार महसूस करने जैसी विशेष समस्याओं से मेल खाते हैं।
शोध में कहा गया है कि ये निष्कर्ष बताते हैं कि स्मार्टफोन सेंसर से मानसिक बीमारी के प्रमुख रूपों का पता लगाया जा सकता है, जो दर्शाता है कि इस तकनीक का उपयोग लक्षणों की निगरानी और व्यापक मानसिक समस्याओं पर शोध के लिए किया जा सकता है।
इस अध्ययन में 2023 में 15 दिनों में 557 वयस्कों द्वारा इस्तेमाल किए गए स्मार्टफोन सेंसर के आंकड़ों को शामिल किया गया, जिससे यह अपनी तरह का सबसे बड़ा अध्ययन बन गया। मानसिक बीमारी के निदान और ट्रैकिंग के लिए फोन सेंसर और पहनने योग्य उपकरणों के इस्तेमाल में भारी प्रचलन के बावजूद, मामूली प्रगति रही है।
ऐसा आंशिक रूप से इसलिए है क्योंकि अधिकतर डिजिटल मनोचिकित्सा कार्यों में, भविष्यवाणी और निगरानी के लिए लक्ष्य चुनते समय, लोगों के भीतर मानसिक बीमारी के व्यवस्थित होने के बारे में हमारी जानकारी का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
डिजिटल मनोचिकित्सा मानसिक विकारों के निदान और सांख्यिकी मैनुअल, या डीएसएम-5, के जांच पर निर्भर रही है, जो सही ने होने के कारण पहचान और निगरानी के लिए ठीक नहीं हैं। इसका मतलब है कि वे विभिन्न प्रकार के लक्षणों का मिश्रण हैं जिनके अलग-अलग व्यवहार संबंधी लक्षण हो सकते हैं और साथ ही, अक्सर अन्य जांचों के लक्षणों को साझा करते हैं।
उन्होंने कहा कि समस्या यह भी है कि जांच के दौरान अधिकतर लोगों की एक से अधिक जांच होती हैं, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि उनके व्यवहार के लिए कौन सी जांच है। अर्थात ये जांचे मानसिक बीमारी को ठीक से पता लगाने का काम नहीं करते हैं।
शोध पत्र में कहा गया है कि इन निष्कर्षों से यह बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है कि विभिन्न प्रकार की मनोविकृतियां पीड़ित लोगों के रोजमर्रा जीवन के कामकाज को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।
मानसिक बीमारी अक्सर अचानक से होती है और इसका इलाज जल्द से जल्द किया जाना चाहिए, इससे पहले कि यह गंभीर हो जाए। इसकी निगरानी करना मुश्किल है और हमारे पास जो उपाय हैं, वे बहुत कम हैं तथा इस काम के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हैं।
शोध में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि किसी स्थिति के बहुत खराब होने से पहले ही किसी को सहायता प्रदान करने के लिए स्मार्टफोन सेंसर का उपयोग करने से बहुत फायदा होगा, जिसके बेहतर परिणाम तथा किफायती होना शामिल है।