येलो फीवर वायरस की बेहद साफ हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरों ने उसकी छिपी संरचना का राज खोला है, जो भविष्य में बेहतर टीके बनाने में मददगार साबित हो सकता है; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

वैज्ञानिकों ने खोला येलो फीवर वायरस का रहस्य, पहली बार वायरस की हाई-रिजॉल्यूशन 3डी तस्वीरें की जारी

वैज्ञानिकों ने पहली बार येलो फीवर वायरस की बेहद स्पष्ट हाई-रिजॉल्यूशन और सूक्ष्म 3डी तस्वीरें तैयार करने मे सफलता हासिल की हैं। यह वायरस मच्छरों के जरिए फैलता है और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है

Lalit Maurya

  • यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के वैज्ञानिकों ने पहली बार पीले बुखार (येलो फीवर) वायरस की बेहद स्पष्ट हाई-रिजॉल्यूशन और सूक्ष्म 3डी तस्वीरें तैयार करने मे सफलता हासिल की हैं।

  • अध्ययन में यह भी सामने आया है कि लंबे समय से इस्तेमाल हो रहे वैक्सीन स्ट्रेन (वाईएफवी-17डी) और गंभीर बीमारियां पैदा करने वाले स्ट्रेनों के बीच स्पष्ट संरचनात्मक अंतर हैं।

  • वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह नई जानकारी ऐसे बेहतर टीके और दवाएं विकसित करने में मदद करेगी, जो लोगों को येलो फीवर और ऐसे ही दूसरे मच्छरों से फैलने वाले रोगों से बचा सकें।

ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के वैज्ञानिकों ने पहली बार पीले बुखार (येलो फीवर) वायरस की बेहद स्पष्ट हाई-रिजॉल्यूशन और सूक्ष्म 3डी तस्वीरें तैयार करने मे सफलता हासिल की हैं। गौरतलब है कि यह वही वायरस है जो मच्छरों के जरिए फैलता है और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। यह कई बार जानलेवा भी साबित होता है।

अपनी इस नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने वायरस के कणों को करीब-करीब एटॉमिक स्तर पर देखा है। इतना नजदीकी से इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि लंबे समय से इस्तेमाल हो रहे वैक्सीन स्ट्रेन (वाईएफवी-17डी) और गंभीर बीमारियां पैदा करने वाले स्ट्रेनों के बीच स्पष्ट संरचनात्मक अंतर हैं। मतलब कि टीके वाला वायरस और असली खतरनाक वायरस एक जैसे नहीं दिखते।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह नई जानकारी ऐसे बेहतर टीके और दवाएं विकसित करने में मदद करेगी, जो लोगों को पीले बुखार और ऐसे ही दूसरे मच्छरों से फैलने वाले रोगों से बचा सकें।

वायरस की पूरी संरचना पहली बार आई सामने

अध्ययन और क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री और मोलेक्यूलर बायोसाइंस स्कूल से जुड़ी डॉक्टर सुम्मा बिब्बी ने इस बारे में जानकारी देते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "पीले बुखार पर कई दशकों से शोध हो रहा है, लेकिन यह पहली मौका है जब वायरस के पूरी तरह परिपक्व कणों की 3डी संरचना लगभग परमाण्विक (एटॉमिक) स्तर पर स्पष्टता के साथ देखी जा सकी है।"

उन्होंने बताया कि इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक सुरक्षित तकनीक का उपयोग किया, यानी वायरस की संरचनात्मक जीन को एक नुकसान न पहुंचाने वाले बिंजारी वायरस के ढांचे में जोड़कर ऐसे कण बनाए जिन्हें क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में सुरक्षित रूप से देखा जा सके। इसके लिए शोधकर्ताओं ने क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में विकसित बिंजारी वायरस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया है।

टीका बनाम खतरनाक वायरस, कहां है अंतर?

इन तस्वीरों में सामने आया है कि वैक्सीन स्ट्रेन के कणों की बाहरी सतह चिकनी और स्थिर दिखती है, जबकि खतरनाक स्ट्रेन की सतह उभारदार और असमान दिखाई देती है। ये संरचनात्मक अंतर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के वायरस को पहचानने के तरीके को बदल देते हैं।

डॉक्टर बिब्बी का कहना है, खतरनाक वायरस स्ट्रेन की ऊबड़-खाबड़, टेढ़ी-मेढ़ी सतह उन हिस्सों को उजागर कर देती है जो आमतौर पर छिपे रहते हैं। इससे कुछ एंटीबॉडी उन्हें आसानी से पकड़ लेती हैं। वहीं दूसरी तरफ चिकने वैक्सीन स्ट्रेन की सतह उन हिस्सों को ढंके रखती है, जिससे खास एंटीबॉडी के लिए उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।“

आज भी दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कई हिस्सों में पीला बुखार स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या है। इसके लिए कोई स्वीकृत एंटीवायरल दवा मौजूद नहीं है, इसलिए टीकाकरण ही बचाव का सबसे भरोसेमंद तरीका है।

खुलेगी बेहतर दवाओं की राह

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर डेनियल वॉटरसन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, इस खोज से पीले बुखार के वायरस की बनावट और काम करने के तरीके को लेकर बेहद अहम जानकारी मिली है।

इससे बेहतर टीके बनाने और पीले बुखार सहित उससे जुड़े अन्य वायरस के खिलाफ नई दवाएं विकसित करने में मदद मिलेगी।“

प्रोफेसर वॉटरसन ने कहा, "नई खोज येलो फीवर की जीवविज्ञान को समझने में मदद करेगी और इससे बेहतर वैक्सीन और एंटीवायरल टूल्स विकसित करने में मार्गदर्शन मिल सकता है।" उनका आगे कहना है, "यह समझना कि मौजूदा वैक्सीन स्ट्रेन सुरक्षित और प्रभावी क्यों है, भविष्य में डेंगू, जीका और वेस्ट नाइल जैसे संबंधित वायरसों के लिए भी वैक्सीन डिजाइन करने में मददगार साबित हो सकता है।“

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।