छह वर्षीय अनस के परिवार ने आरोप लगाया कि चूरू जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड दिया था, जिसके बाद उसकी तबियत तेजी से बिगड़ गई। 
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राजस्थान: खांसी की दवा पीने से चार बच्चों की मौत, निशुल्क दवा योजना पर उठे सवाल

राजस्थान में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत सीरप की सप्लाई केयसंस फार्मा नाम की कंपनी कर रही है। इस कंपनी की एक सीरप का सैंपल छह महीने पहले फेल हो गया था

Madhav Sharma

  • राजस्थान में खांसी की दवा पीने से चार बच्चों की मौत ने निशुल्क दवा योजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

  • सरकार ने डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप के वितरण पर रोक लगा दी है

  • स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया कि मौतें सीरप से नहीं हुईं, लेकिन विपक्ष ने विशेष जांच की मांग की है

  • साल 2021 से 2023 के बीच कंपनी के 10 जिलों में 40 सैंपल फेल हुए। इस पर कार्रवाई करते हुए कंपनी को 19 महीने के लिए बैन भी किया गया था

गधा गाड़ी खींचकर मजदूरी करने वाले नवाब खान के छह साल के बेटे अनस की राजस्थान के सबसे बड़े बच्चों के अस्पताल जेके लोन में मौत हो गई। चूरू के सुनारों का कुआं मोहल्ला निवासी अनस का दो अक्टूबर से चूरु के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था। तबियत में सुधार नहीं होने पर उसे रेफर किया गया। 4 अक्टूबर सुबह 4 बजे जेके लोन अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां सुबह 10 बजे अनस ने दम तोड़ दिया। 

परिजनों का आरोप है कि बच्चे को चूरु में डॉक्टरों ने डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप दी। इसके बाद अनस की तबीयत बिगड़ती गई। राजस्थान में इस सीरप के उपयोग के बाद अब तक चार बच्चों की मौत हो चुकी है। हालांकि सरकार ने सीरप से मौत की बात को खारिज कर दिया है। एक प्रेस कांफ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र खींवसर ने कहा कि परिजनों ने घर में रखी दवा बच्चों को पिलाई। इससे बच्चों की तबीयत बिगड़ी। वहीं, अनस की मौत के बाद जेके लोन अधीक्षक डॉ. आरएन सेरा ने कहा कि शुरुआती जांच में बच्चे के दिमागी बुखार के बारे में पता लगा। उसे काफी गंभीर हालत में यहां लाया गया था। 

इससे पहले राजस्थान में इसी सीरप से दो मौतें भरतपुर और एक सीकर जिले में होने का दावा किया जा रहा है। वहीं, पूरे प्रदेश में 35 से ज्यादा लोग बीमार हो चुके हैं।

अनस के केस से समझें डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप मिस्ट्री

डाउन टू अर्थ ने अनस की मौत के मामले में परिजन और अन्य स्थानीय लोगों से बात की। सामने आया कि दो अक्टूबर को अनस और उसकी 60 वर्षीय दादी बानो खांसी-जुकाम की शिकायत लेकर चूरू जिला अस्पताल गए। दावा है कि यहां इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर ने कुछ अन्य दवाओं के साथ दोनों को ही डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप दी। इसे पीने के बाद अनस की तबीयत और बिगड़ गई जबकि दादी बानो सामान्य रहीं। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे अनस को दो अक्टूबर को ही जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां स्थिति नहीं सुधरने पर 4 अक्टूबर को उसे जयपुर के जेके लोन अस्पताल में रेफर किया गया। 

डाउन टू अर्थ के पास अनस का रेफरल कार्ड है। इसमें बच्चे को निमोनिया और परिजनों के बताए अनुसार डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड से हुए इंफेक्शन की बात लिखी है। बच्चे को डॉ. सुधीर सोनी ने रेफर किया था। 

डाउन टू अर्थ ने चूरू सीएमएचओ डॉ. मनोज शर्मा से इस संबंध में कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन नहीं लगा। 

सरकार ने अब तक क्या किया? 

मध्यप्रदेश में कफ सीरप से 14 मौतों के बाद राजस्थान में भी चार बच्चों की मौत ने हाहाकार मचा दिया। फिलहाल सरकार ने डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप और इसकी सभी 19 दवाओं के वितरण और बेचान पर रोक लगा दी है। बता दें कि राजस्थान में ये सभी दवाएं मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत दी जाती हैं। ड्रग कंट्रोलर (।।) राजाराम शर्मा को भी सस्पेंड किया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अनस से पहले भरतपुर जिले के मलाह गांव के 2 साल के सम्राट और वैर के 2 साल के तीर्थराज, जबकि सीकर जिले के खोरी ब्राह्मणान गांव के 5 वर्षीय नितियांस की मौत खांसी की सिरप पीने के बाद हो चुकी है। सभी परिवारों का एक ही आरोप है कि सरकारी अस्पताल से मिली दवा ने ही बच्चों की जान ली।

बीते शनिवार प्रदेश के चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर ने इस संबंध में जोधपुर में प्रेस कांफ्रेंस की। यहां उन्होंने बच्चों की मौत कफ सीरप से नहीं होने का दावा दोहराया। उन्होंने बताया, “लुहासा (भरतपुर) निवासी तीर्थराज को खांसी-जुकाम होने पर परिजन उप-जिला अस्पताल वैर लेकर आए थे। यहां डॉक्टर ने सीरप एमोक्सीलीन, एंटी कोल्ड और एंब्रोक्सोल दी। सुधार नहीं होने पर उसी दिन फिर भरतपुर और फिर 27 सितंबर को जयपुर के जेके लोन अस्पताल लाया गया। जहां तीर्थराज की मौत हो गई। जेके लोन में भी उसे डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप देने का रिकॉर्ड नहीं है।”

वहीं, भरतपुर के ही मलाह गांव के सम्राट की मौत के मामले में भी चिकित्सा मंत्री का यही रुख था। जेके लोन की रिपोर्ट के मुताबिक सम्राट की मौत ‘एक्यूट रेस्परेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम’ से हुई। उधर, सीकर जिले में हाथीदेह पीएचसी से दी सीरप के आरोप पर बताया गया कि ड्यूटी डॉक्टर की लिखी पर्ची पर दवा का नाम नहीं था। परिजनों को फार्मासिस्ट पप्पू सोनी ने दवा लिखी और सीरप दी थी।  

हालांकि जब पत्रकारों ने सरकारी क्लीन चिट पर सवाल पूछे तो मंत्री खींवसर ने दोबारा जांच कराने का आश्वासन दिया।

विवादों में रही है डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सप्लाई करने वाली दवा कंपनी

राजस्थान में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप की सप्लाई केयसंस फार्मा नाम की कंपनी कर रही है। इस कंपनी की एक सीरप का सैंपल छह महीने पहले फेल हो गया था। इसके बाद 21 फरवरी 2025 को एक साल के लिए इसे डिबार कर दिया गया, लेकिन गुपचुप तरीके से बहाल कर दी गई। 

इतना ही नहीं, साल 2021 से 2023 के बीच कंपनी के 10 जिलों में 40 सैंपल फेल हुए। इस पर कार्रवाई करते हुए कंपनी को 19 महीने के लिए बैन भी किया गया। लेकिन बैन हटने के बाद कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने की बजाय दवा सप्लाई फिर से शुरू कर दी गई। इससे साफ है कि राजस्थान का स्वास्थ्य विभाग फार्मा कंपनी को बचाने की कोशिश कर रहा है। 

फूड सेफ्टी ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट ने बदला नियम, कंपनियां उठा रही फायदा!

सीरप से बच्चों की मौत के बाद फार्मा कंपनी और सरकारी विभागों में सांठ-गांठ की परतें भी खुल रही हैं। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी दवा में बताए गए सॉल्ट नहीं पाए जाते तो उसे नकली माना जाता है, लेकिन प्रदेश के फूड सेफ्टी ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट ने ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 की परिभाषा ही बदल दी। बनाए नियम के मुताबिक अगर किसी दवा में कोई सॉल्ट शून्य है तो उसे नकली नहीं माना जाएगा। जब विधानसभा में नकली दवाओं की रिपोर्ट मांगी गई तो विभाग ने ऐसी कंपनियों को भी क्लीन चिट दे दी, जिनकी दवाओं में जरूरी सॉल्ट या घटक नहीं थे।  

सवालों में राजस्थान की निशुल्क दवा योजना! 

राजस्थान में लाखों-करोड़ों लोगों की जीवनदायिनी बनी निशुल्क दवा योजना अब गंभीर सवालों के घेरे में है। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2019 से जून 2024 के बीच इस योजना में 795 दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं। इनमें कैंसर, खून और हार्ट डिजीज की  दवाएं शामिल थीं। सैंपल में फेल हुई कंपनियों में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली-एनसीआर, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर राज्यों की दवा कंपनियां शामिल थीं। 

क्या कहते हैं डॉक्टर्स? 

डॉक्टर्स का कहना है कि ज्यादातर डेक्सट्रोमेथोरपन हाइड्रोब्रोमाइड सीरप सूखी खांसी के मामलों में दी जाती है। छह साल से छोटे बच्चों को तो यह दवा प्रिस्क्राइब ही नहीं की जाती। इससे बड़ी उम्र के बच्चों के लिए मात्रा का विशेष ध्यान रखना होता है। डायरेक्टेरट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज ने भी दो साल से छोटे बच्चों को कफ सीरप नहीं देने की सलाह दी है। 2-4 साल के बच्चों को जरूरी होने पर डॉक्टर की सलाह अनुसार ही दवा देने की एडवायरजी जारी की गई है।

भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत सहित विपक्ष ने की जांच की मांग

बच्चों की मौत पर राजस्थान में राजनीतिक बयानबाजी भी जारी है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने बच्चों की मौत के मामले में विशेष जांच की मांग की है। उन्होंने कहा, “2011 में कांग्रेस सरकार ने निशुल्क दवा योजना शुरू की, जिसे कई राज्यों और देशों ने अपने यहां लागू किया। भाजपा सरकार में ऐसी आदर्श योजना भी बदनाम हो रही है क्योंकि खांसी की दवाई से मौतें हो रही हैं। इस मामले में विशेष जांच होनी चाहिए।”

यही नहीं, भाजपा नेता भी इस मामले में सरकार से कड़ा एक्शन लेने की मांग कर रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता और स्वास्थ्य मंत्री रह चुके राजेन्द्र राठौड़ ने एक्स पर लिखा, “केयसंस फार्मा कंपनी पहले भी कई बार ब्लैकलिस्ट हुई है। राज्य सरकार से मांग है कि प्रदेश में नकली दवाओं के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया जायें एवं संबंधित फार्मा कंपनी व दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए।”