भारत में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, जिनमें से 17 करोड़ का रक्तचाप अनियंत्रित है।
चिंता की बात यह है कि इनमें से महज 39 फीसदी (8.22 करोड़) ही जानते हैं कि वो इस समस्या से पीड़ित हैं, जबकि करीब 83 फीसदी मरीजों यानी 17.3 करोड़ से ज्यादा का रक्तचाप नियंत्रित नहीं है। मतलब कि देश में हाई ब्लड प्रेशर के 17 फीसदी मरीजों में ही रक्तचाप नियंत्रित है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च रक्तचाप के कारण हृदय और मस्तिष्क पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
2024 में दुनिया भर में उच्च रक्तचाप से करीब 140 करोड़ लोग पीड़ित थे। मतलब की वैश्विक आबादी का करीब 34 फीसदी हिस्सा उच्च रक्तचाप का शिकार है।
भारत ने मुफ्त दवाओं और जेनेरिक दवाओं के उपयोग से इस पर नियंत्रण पाने में सफलता पाई है।
क्या आप जानते हैं कि भारत में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क (30 से 79 वर्ष) उच्च रक्तचाप यानी हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। मतलब की देश की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी इस समस्या से जूझ रही है।
इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि इनमें से महज 39 फीसदी (8.22 करोड़) ही जानते हैं कि वो इस समस्या से पीड़ित हैं, जबकि करीब 83 फीसदी मरीजों यानी 17.3 करोड़ से ज्यादा का रक्तचाप नियंत्रित नहीं है। मतलब कि देश में हाई ब्लड प्रेशर के 17 फीसदी मरीजों में ही रक्तचाप नियंत्रित है।
यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन 2025' में सामने आई है।
देखा जाए तो देश-दुनिया में जिस तरह से खानपान की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है और जीवनशैली तेजी से बदल रही है, उसके चलते स्वास्थ्य से जुड़ी अनगिनत समस्याएं पैदा हो रही हैं, ऊपर से तनाव यह सभी मिलकर भारतीयों को अंदर ही अंदर घुन की तरह खाए जा रहे हैं।
क्या है हाइपरटेंशन और क्यों हैं खतरनाक?
गौरतलब है कि हाइपरटेंशन, जिसे उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक ऐसी स्थिति है जिसमें धमनियों की दीवारों पर रक्त का दबाव लगातार बहुत अधिक रहता है। यह एक आम स्थिति है जिसके कारण हृदय को रक्त पंप करने के लिए ज्यादा जोर लगाना पड़ता है। उच्च रक्तचाप से दिल और दिमाग पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
ऐसे में अगर इसे नियंत्रित न किया जाए तो यह हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे और आंखों से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ा सकता है। इसकी वजह से हार्ट अटैक, स्ट्रोक, किडनी फेल होना, आंखों की रोशनी कमजोर होना और डिमेंशिया जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में वैश्विक आंकड़ों को भी उजागर किया है, जिसके मुताबिक 2024 में दुनिया भर में उच्च रक्तचाप से करीब 140 करोड़ लोग पीड़ित थे। मतलब की वैश्विक आबादी का करीब 34 फीसदी हिस्सा उच्च रक्तचाप का शिकार है।
हालांकि इनमें भी केवल हर पांच में से एक मरीज ही इस समस्या को दवाइयों या जीवनशैली में सुधार के जरिए नियंत्रित कर पाए हैं।
डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि इस मामले में अगर तुरंत कदम न उठाए गए, तो इसकी वजह से लाखों लोग असमय मौत का शिकार हो सकते हैं। साथ ही इसकी वजह से देशों को भारी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ेगा। आंकड़ों के मुताबिक 2011 से 2025 के बीच हृदय रोग और हाइपरटेंशन से निम्न और मध्यम आय वाले देशों को करीब 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (कुल जीडीपी के 2 फीसदी) का नुकसान होने का अनुमान है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस का कहना है, "हर घंटे 1,000 से ज्यादा लोग उच्च रक्तचाप से जुड़ी दिल और दिमाग की बीमारियों से अपनी जान गंवा रहे हैं। ये मौतें रोकी जा सकती हैं। राजनीतिक इच्छाशक्ति, निवेश और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से हम लाखों जिंदगियां बचा सकते हैं।"
दवा और इलाज तक पहुंच में गहरी खाई
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 195 में से 99 देशों में हाइपरटेंशन के नियंत्रण की दर 20 फीसदी से भी कम है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही कमजोर हैं।
महज 28 फीसदी कमजोर देशों में ही डब्ल्यूएचओ द्वारा हाइपरटेंशन के लिए सुझाई गई सभी दवाएं आसानी से मिल पाती हैं, जबकि अमीर देशों में यह उपलब्धता 93 फीसदी है। स्वास्थ्य नीतियों की कमी, महंगी दवाएं, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, अविश्वसनीय सप्लाई चेन और नियमित जांच की सुविधा न होना इसके इलाज की राह में सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
इसके ही शराब, तंबाकू, नमक और ट्रांस फैट को लेकर कमजोर नीतियां, ब्लड प्रेशर मापने वाले भरोसेमंद उपकरणों की कमी, महंगी दवाएं और सप्लाई चेन में रुकावट के साथ-साथ मरीजों के लिए आर्थिक सुरक्षा का अभाव भी इस समस्या के बढ़ने की वजह हैं।
डॉक्टर टॉम फ्राइडन ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, "रक्तचाप नियंत्रित करने की सुरक्षित और सस्ती दवाएं मौजूद हैं, लेकिन करोड़ों लोगों की इन तक पहुंच नहीं है। इस खाई को पाटने से लाखों जानें बचाई जा सकती हैं, साथ ही इससे अरबों डॉलर की भी बचत होगी।
उम्मीद की किरण
हालांकि अनगिनत बाधाओं के बावजूद कुछ देशों ने इसकी रोकथाम की दिशा में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं, उदाहरण के लिए बांग्लादेश में 2019 से 2025 के बीच कुछ क्षेत्रों में हाइपरटेंशन के नियंत्रण की दर 15 फीसदी से बढ़कर 56 फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह फिलीपींस में भी डब्ल्यूएचओ के हार्टस पैकेज को सामुदायिक स्तर तक पहुंचाया है। वहीं दक्षिण कोरिया में सस्ती दवाओं और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार से 2022 में 59 फीसदी लोगों का ब्लड प्रेशर नियंत्रित हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी रिपोर्ट में भारत को लेकर कहा है कि मुफ्त दवाओं के वितरण, जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा और दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण जैसी नीतियों के जरिए भारत ने हाइपरटेंशन पर बेहतर नियंत्रण पाया है।
गौरतलब है कि भारत में 2018–2019 में शुरू हुई पहल के तहत सरकार ने सरकारी क्लीनिकों में मुफ्त और भरोसेमंद जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित की। इलाज को आसान बनाने के लिए प्रोटोकॉल-आधारित उपचार और मजबूत दवा खरीद प्रणाली लागू की गई। राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण ने आवश्यक दवाओं, जिनमें हाइपरटेंशन की दवाएं भी शामिल हैं, पर मूल्य की सीमा तय की।
आंकड़ों के मुताबिक पहले भारत में महज 14 फीसदी मरीजों का ब्लड 500 से ज्यादा दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण से मरीजों का खर्च घटा और दवाएं सस्ती हुईं। सरकारी चैनलों या जनऔषधि स्टोर्स से खरीदी जाने वाली दवाओं का खर्च निजी क्षेत्र की तुलना में 80 फीसदी तक कम होता है।
प्रेशर नियंत्रित होता था। लेकिन हालिया आंकड़े बताते हैं कि पंजाब और महाराष्ट्र में प्रोटोकॉल के अनुसार इलाज पाने वाले मरीजों में ब्लड प्रेशर नियंत्रण की दर 70 से 81 फीसदी तक पहुंच गई है। औसतन मरीजों का सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 15–16 mmHg कम हुआ है।
डब्ल्यूएचओ ने भी रिपोर्ट में सभी देशों से अपील की है कि वे हाइपरटेंशन नियंत्रण को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुधारों में शामिल करें। रिपोर्ट के मुताबिक यदि सुझाए गए कदमों को अपनाया गया, तो लाखों असमय मौतों को रोका जा सकता है और स्वास्थ्य पर पड़ने वाला भारी सामाजिक-आर्थिक बोझ को भी कमी किया जा सकता है।