भारतीय शोधकर्ताओं ने मधुमेह को लेकर जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स की क्षमता का पता लगाया है। यह किडनी के काम को बेहतर बनाने और डायबिटिक नेफ्रोपैथी से निपटने में मददगार हो सकता है।  फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

भारतीय वैज्ञानिकों के नए शोध ने लाखों डायबिटीज के रोगियों के लिए उम्मीद की किरण जगाई

Dayanidhi

दुनिया भर में मधुमेह या डायबिटीज के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानें तो दुनिया भर में मधुमेह के रोगियों की संख्या 42.2 करोड़ हो गई। अधिक आय वाले देशों की तुलना में कम और मध्यम आय वाले देशों में यह रोग तेजी से बढ़ रहा है।

हालांकि आहार, शारीरिक गतिविधि, दवा और नियमित जांच तथा उपचार से मधुमेह का इलाज किया जा सकता है तथा इससे होने वाले खतरों को टाला या रोका जा सकता है, फिर भी इससे पूरी तरह लोग उबर नहीं पाते हैं। लेकिन इससे पूरी तरह से निपटारा पाने के लिए अब भारतीय वैज्ञानिकों ने नया प्रयोग किया है।

भारतीय शोधकर्ताओं ने मधुमेह को लेकर जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स की क्षमता का पता लगाया है। यह किडनी के काम को बेहतर बनाने और डायबिटिक नेफ्रोपैथी से निपटने में मददगार हो सकता है। इससे मधुमेह से जुड़ी किडनी संबंधी समस्याओं के प्रबंधन में नए चिकित्सीय रास्ते खुलेंगे।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी लंबे समय तक मधुमेह के कारण होने वाली एक आम, गंभीर जटिलता और कमजोर करने वाली स्थिति है। यह आशाजनक खोज मधुमेह से जुड़ी किडनी संबंधी समस्याओं के प्रबंधन में नए चिकित्सीय नजरिया है।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी लंबे समय तक मधुमेह के कारण होने वाली एक जटिल समस्या है। यह टाइप-I मधुमेह के 20 से 50 फीसदी रोगियों पर असर डालती है। यह गुर्दे के कार्य में धीरे-धीरे आने वाली गिरावट के कारण होता है, जो अक्सर अंतिम चरण के गुर्दे की बीमारी (ईएसआरडी) में बदला जाता है।

मधुमेह के रोगियों में, उच्च रक्त शर्करा गुर्दे में ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पन्न करता है और सूजन वाले अणुओं को सक्रिय करता है। वैज्ञानिकों द्वारा पौधों से हासिल किए गए कई अणुओं और उत्पादों की डायबिटिक नेफ्रोपैथी में उनकी चिकित्सीय भूमिका के लिए जांच पड़ताल की जा रही है।

शोध के मुताबिक, मधुमेह रोगियों में डायबिटिक नेफ्रोपैथी का संबंध जिंक की कमी से है। जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल जैव द्वारा उपलब्ध जिंक आयनों की निरंतर रिलीज के लिए एक भंडार के रूप में कार्य करता है।

अघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) में पशु मॉडल में किए गए अध्ययनों ने जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल के ग्लूकोज कम करने, इंसुलिन-मीमेटिक और बीटा प्रसारक प्रभावों को साबित किया है। शोधकर्ताओं के द्वारा हाल ही में, यह देखने के लिए प्रयोग किए गए थे कि क्या जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल गुर्दे के नुकसान के लिए अहम भूमिका निभाने वाले सेलुलर रास्तों को भी कम कर सकता है।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा डायबिटिक नेफ्रोपैथी से पीड़ित विस्टार चूहों पर किए गए एक अध्ययन में, इंसुलिन से किए गए उपचार मधुमेह चूहों की तुलना में जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल द्वारा उपचार ने गुर्दे के काम में काफी सुधार किया।

शोध में कहा गया है कि जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल ने खून में भारी मात्रा में शुगर से होने वाली सूजन के कारण कोशिका के नष्ट होने से रोकने में सुरक्षा प्रदान की। जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल उपचार ने कुछ प्रोटीन को भी संरक्षित किया, जो गुर्दे के कार्य के लिए आवश्यक हैं।

जर्नल लाइफ साइंसेज में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल मधुमेह संबंधी जटिलताओं के इलाज के लिए एक चिकित्सीय एजेंट के रूप में काम कर सकता है।

अध्ययन में एक संभावित रास्ता हो सकता है, जिसके माध्यम से जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल, डायबिटिक नेफ्रोपैथी को रोकता है, जिससे यह व्यवस्थित पोडोसाइट पर जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल के प्रभावों को सामने लाने वाला पहला अध्ययन है।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, इन निष्कर्षों को क्लिनिकल परीक्षण के रूप में उतारने के लिए भविष्य में और शोध करने की जरूरत पड़ेगी, लेकिन यह अध्ययन दुनिया भर में लाखों मधुमेह रोगियों के लिए आशा की किरण हो सकता है।

शोध के मुताबिक, निरंतर शोधों के साथ, जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल, डायबिटिक नेफ्रोपैथी के खिलाफ मुकाबले में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकते हैं, जिससे इस पुरानी बीमारी से प्रभावित लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हो सकता है।

डॉक्टर और मरीज दोनों ही ऐसे भविष्य के लिए आशान्वित हैं, जहां डायबिटिक नेफ्रोपैथी की बीमारी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है अथवा यहां तक कि इस पर लगाम भी लगाई जा सकती है।