अकेलापन न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है।
अध्ययन के अनुसार, अकेलापन महसूस करने वाले लोगों में शारीरिक दर्द और बीमारियों का खतरा दोगुना हो जाता है।
आज दुनिया का हर छठा इंसान अकेलेपन से जूझ रहा है। इसकी वजह से युवाओं और बुजुर्गों पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है।
चिंता की बात है कि अकेलेपन से जूझ रहे लोगों में दर्द और बीमार पड़ने की आशंका दोगुनी होती है। इन लोगों के मानसिक तनाव का शिकार होने की आशंका भी 25.8 फीसदी अधिक होती है।
सामाजिक जुड़ाव स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, गंभीर बीमारियों के खतरा को कम करता है। मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और असमय मृत्यु की आशंका को कम कर देता है
विशेषज्ञों का कहना है इस समस्या से निपटने के लिए केवल दोस्त और नेटवर्क बनाना काफी नहीं होगा। मानसिक तनाव और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना ही असली समाधान है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मजबूत सामाजिक रिश्ते न सिर्फ मानसिक संतुलन को बनाए रखते हैं, बल्कि साथ ही जीवन को भी लंबा और स्वस्थ बनाते हैं।
कल्पना कीजिए - आप लोगों के बीच, परिवार और दोस्तों से घिरे हों, फिर भी भीतर कहीं खालीपन की गहरी पीड़ा महसूस हो। यह अकेलापन सिर्फ मन को नहीं कचोटता, बल्कि शरीर को भी तोड़ देता है।
अक्सर अकेलेपन या तनहाई को केवल भावनात्मक तकलीफ माना जाता है, लेकिन एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने खुलासा किया है कि इसका शरीर पर भी गहरा असर पड़ता है। लंदन स्थित सिटी सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि अकेलापन महसूस करने वाले लोगों में शारीरिक दर्द और बीमारियों का खतरा दोगुना हो जाता है।
अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग अकेलापन महसूस करते हैं, उनके शरीर में दर्द की शिकायतें उन लोगों की तुलना में दो गुणा से ज्यादा होती हैं जो अकेला महसूस नहीं करते। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2023 और 2024 के दौरान 139 देशों में किए गए गैलप वर्ल्ड पोल से जुटाए गए 2.56 लाख लोगों के जवाबों का विश्लेषण किया है। सर्वे में 15 से 100 वर्ष के लोग शामिल थे। विश्लेषण के जो नतीजे सामने आए हैं वो बेहद चौंकाने वाले थे।
तनहाई और दर्द का रिश्ता
अध्ययन में पाया गया कि जो लोग अकेलापन महसूस करते हैं, उनमें शारीरिक दर्द होने की आशंका उन लोगों की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा होती है, जो अकेला महसूस नहीं करते।
शोधकर्ताओं ने यह भी जानकारी दी है कि अकेलेपन से स्वास्थ्य समस्याओं और मानसिक तनाव का खतरा बढ़ जाता है। चिंता की बात है कि अकेलेपन से जूझ रहे लोगों में दर्द और बीमार पड़ने की आशंका दोगुनी होती है। इन लोगों के मानसिक तनाव का शिकार होने की आशंका भी 25.8 फीसदी अधिक होती है।
अकेलेपन और दर्द के बीच संबंध में सबसे बड़ी भूमिका मानसिक तनाव की है, जो इस संबंध के 60 फीसदी के लिए जिम्मेवार है। इसके बाद 18.9 फीसदी असर स्वास्थ्य समस्याओं और 14 फीसदी असर सामाजिक व आर्थिक कारणों (जैसे परिवार, शिक्षा, आय) से जुड़ा पाया गया।
कौन सबसे ज्यादा प्रभावित
स्टडी में यह भी सामने आया है कि अकेलेपन से जूझ रहे लोग अक्सर कम पढ़े-लिखे, बेरोजगार या कम आय वाले होते हैं। वे ज्यादातर अविवाहित, तलाकशुदा या विधवा/विधुर पाए गए। यानी अकेलापन अक्सर सामाजिक और आर्थिक वंचना के साथ गहराई से जुड़ा होता है।
हैरान कर देने वाली बात थी कि महिलाओं पर इसका असर पुरुषों की तुलना में ज्यादा पाया गया। वहीं बुज़ुर्गों में अकेलापन, दर्द और स्वास्थ्य समस्याएं अधिक दिखीं, लेकिन अकेलापन और दर्द का रिश्ता हर उम्र में समान पाया गया।
अध्ययन का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि जिन लोगों के पास दोस्त या परिवार का सहारा था, या जिन्हें दूसरों से मिलने का मौका मिलता था, उनमें भी अकेलापन कायम रहा। इसका मतलब है कि अकेलापन केवल “अकेले रहने” की स्थिति नहीं है, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि लोग अपने रिश्तों और जुड़ाव को कैसे महसूस करते हैं।
अब निजी नहीं अकेलापन, बन चुका है वैश्विक संकट
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर लूसिया माकिया का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “अकेलापन सिर्फ सामाजिक संपर्क की कमी नहीं। यह मानसिक तनाव, खराब स्वास्थ्य और सामाजिक वंचना से जुड़ा है। इसे समझने के लिए हमें इन सभी पहलुओं को साथ लेकर चलना होगा।“
उनके मुताबिक अकेलेपन और दर्द का गहरा नाता है, जिसका सबसे बड़ा कारण मानसिक तनाव है। यह रिश्ता हर देश, संस्कृति में अलग-अलग रूप लेता है, इसलिए इसे समझने के लिए सांस्कृतिक कारकों को भी ध्यान में रखना होगा।
अध्ययन में शामिल 22.7 फीसदी लोगों ने माना कि वे सर्वे से सिर्फ एक दिन पहले बहुत ज्यादा अकेलापन महसूस कर रहे थे। शोधकर्ताओं का मानना है कि अकेलापन अब केवल सामाजिक संपर्क की कमी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए एक वैश्विक चुनौती बन चुका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कमिशन ऑन सोशल कनेक्शन द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि आज दुनिया का हर छठा इंसान अकेलेपन से जूझ रहा है। इसकी वजह से युवाओं और बुजुर्गों पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है।
यह समस्या कितनी गंभीर है इसी बात से समझा जा सकता है, दुनिया में अकेलापन हर घंटे 100 से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। मतलब की साल में 8.7 लाख से ज्यादा लोगों की जान अकेलापन ले रहा है।
कॉल लिस्ट लंबी, सुनने वाला कोई नहीं
आंकड़ों के मुताबिक 13 से 29 साल की उम्र के 17 से 21 फीसदी युवा खुद को अकेला महसूस करते हैं। किशोरों में यह संख्या सबसे अधिक है। कमजोर देशों में करीब 24 फीसदी लोग अपने आप को अकेला महसूस करते हैं, जोकि अमीर देशों से करीब दोगुना है। अमीर देशों में खुद को अकेला महसूस करने वालों का आंकड़ा 11 फीसदी दर्ज किया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है इस समस्या से निपटने के लिए केवल दोस्त और नेटवर्क बनाना काफी नहीं होगा। मानसिक तनाव और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना ही असली समाधान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मजबूत सामाजिक रिश्ते न सिर्फ मानसिक संतुलन को बनाए रखते हैं, बल्कि साथ ही जीवन को भी लंबा और स्वस्थ बनाते हैं।
गौरतलब है कि जहां सामाजिक जुड़ाव स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, गंभीर बीमारियों के खतरा को कम करता है। मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और असमय मृत्यु की आशंका को कम कर देता है। साथ ही, यह सामाजिक एकता को भी मजबूत करता है, जिससे समुदाय ज्यादा सुरक्षित, स्वस्थ और खुशहाल बनते हैं।
वहीं दूसरी तरफ अकेलेपन और सामाजिक अलगाव से स्ट्रोक, दिल की बीमारी, डायबिटीज, याद्दाश्त में गिरावट और असमय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं मानसिक रूप से भी इसका गहरा असर पड़ता है। अकेले रहने वाले लोगों के डिप्रेशन का शिकार होने की आशंका दोगुनी होती है। इतना ही नहीं यह चिंता, अवसाद, आत्मघात जैसे विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने की भावना को भी बढ़ा सकता है।
अकेले रहने वाले लोगों के डिप्रेशन का शिकार होने की आशंका दोगुनी होती है। इतना ही नहीं यह चिंता, अवसाद, आत्मघात जैसे विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने की भावना को भी बढ़ा सकता है। अकेलापन पढ़ाई और रोजगार पर भी असर डालता है।
जो किशोर अकेला महसूस करते हैं, उनके कम अंक आने की आशंका 22 फीसदी अधिक होती है। वहीं वयस्कों के लिए नौकरी पाना या बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, और इससे उनकी कमाई भी घट सकती है।
देखा जाए तो आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स, वीडियो कॉल्स और वर्चुअल मीटिंग्स ने जुड़ाव के अनगिनत रास्ते खोल दिए हैं। एक क्लिक पर दुनिया की खबरें आंखों के सामने आती हैं, और स्क्रीन पर हजारों मुस्कराते चेहरे दिखाई देते हैं। लेकिन इस तकनीकी रोशनी के पीछे अकेलेपन का गहरा साया भी फैल रहा है।
विडम्बना यह है कि इतने "कनेक्टेड" युग में भी लोग अपने आप को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। ऐसे में इस समस्या पर कहीं ज्यादा गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।