महिलाओं और बच्चियों के प्रति भेदभाव, कथित कलंक और दंडित करने वाले कानूनों की वजह से एचआईवी को रोकने के लिए जारी प्रयासों में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है
यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी/एड्स (यूएनएड्स) ने अपनी नई रिपोर्ट में चेताया है कि यदि एचआईवी को समाप्त करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में तेजी न लाई गई थी 2050 तक 4.6 करोड़ लोग इस घातक बीमारी के साथ जीने को मजबूर होंगें।
मौजूद समय में दुनिया में करीब चार करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित हैं।
"टेक द राइट्स पाथ टू एन्ड एड्स" नामक इस रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया 2030 तक एड्स की रोकथाम के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि यह बीमारी अभी भी असमानताओं के कारण फैल रही है। यह असमानताएं जहां कमजोरियों को बढ़ा रही हैं, वहीं सेवाओं तक पहुंच को सीमित कर रही हैं। इतना ही नहीं यह एचआईवी का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए आवश्यक सामाजिक एकजुटता को कमजोर कर रही है।
एचआईवी के खिलाफ जंग में अक्सर यह असमानताएं मानव अधिकारों के उल्लंघन से उत्पन्न होती हैं। इनमें से कई तो कानून में भी स्वीकृत हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं और बच्चियों के प्रति भेदभाव के साथ-साथ एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों समेत हाशिए पर रह रहे समुदाय के अधिकारों के हनन के चलते एड्स को रोकना कठिन हो गया है।
असमानता से बढ़ता प्रकोप
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के कम से कम 22 देशों में, किशोर बच्चियों और युवा महिलाओं में लड़कों और युवा पुरुषों की तुलना में एचआईवी संक्रमण की दर तीन गुणा अधिक है। इसके साथ ही साथी द्वारा बरती जा रही हिंसा से भी महिलाओं में एचआईवी का जोखिम बढ़ जाता है।
2023 में दस महीनों के दौरान, माली में सामुदायिक समूहों ने 367 एलजीबीटीक्यू+ लोगों के खिलाफ हिंसा की रिपोर्ट की थी, इनमें से करीब आधे (49 प्रतिशत) ट्रांसजेंडर थे।
रिपोर्ट में इस बात को भी उजागर किया है कि स्वास्थ्य देखभाल, स्कूल, कार्यस्थल और समुदाय जैसे परिवेशों में कलंक और भेदभाव के चलते एचआईवी उपचार और रोकथाम के उपाय कम प्रभावी हो जाते हैं।
2020-2023 में सर्वेक्षण किए गए हर सातवें एचआईवी पीड़ित को देखभाल प्राप्त करते समय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से भेदभाव या लांछन का सामना करना पड़ा था।
33 अफ्रीकी देशों में किए सर्वेक्षणों से पता चला कि जब समुदायों में एचआईवी से पीड़ितों के प्रति कलंकपूर्ण दृष्टिकोण में 50 फीसदी की वृद्धि के साथ उनके एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी लेने की सम्भावना 17 फीसदी तक घट गई।
भेदभाव के डर से कई पीड़ित एचआईवी परीक्षण से बचते हैं या उपचार बंद कर देते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि वो एचआईवी से पीड़ित हैं यह जानकारी साझा न कर दी जाए।
रिपोर्ट में आशा जताई गई है कि यदि नेता एचआईवी पीड़ितों या इसके जोखिम में जीवन व्यतीत करने को मजबूर लोगों के अधिकारों की रक्षा करें तो दुनिया 2030 तक एड्स को समाप्त कर सकती है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इस बीमारी से उबरने के लिए अब से 2030 तक निवेश किए प्रति डॉलर के बदले करीब आठ डॉलर का फायदा होगा। वहीं 2050 तक देखें तो हर डॉलर के निवेश से 10.60 डॉलर का फायदा मिलेगा।
वहीं यदि दुनिया इसके उन्मूलन के वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने में नाकामयाब रहती है तो उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसपर न कार्रवाई न करने की आर्थिक लागत 2050 तक 700,000 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकती है।
यदि स्थिति में बदलाव नहीं आया तो 2050 तक और करीब साढ़े तीन करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित हो सकते हैं। इतना ही नहीं एड्स से मरने वालों का आंकड़ा भी 1.77 करोड़ बढ़ सकता है।