विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जानलेवा हेपेटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) की जांच के लिए एक सेल्फ टेस्ट किट को हरी झंडी दे दी है। ओरा-क्विक नामक इस किट की मदद से अब मरीज या उनके रिश्तेदार अपने आप इस वायरस की जांच कर सकेंगें। यह अपनी तरह की पहली किट है, जिसकी मदद से इस बीमारी के उन्मूलन के प्रयासों में तेजी आ सकती है।
डब्ल्यूएचओ ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में इस किट के बारे में जानकारी देते हुए लिखा है कि “ओरा-क्विक नामक यह हेपेटाइटिस सी स्व-परीक्षण किट, इस बीमारी की जांच और निदान में बेहद मददगार हो सकती है।“ऐसे में इस किट की मदद से न केवल जांच आसान और सस्ती हो जाएगी साथ ही जल्द से जल्द इस बीमारी का निदान मुमकिन हो सकेगा।
इस किट का निर्माण ओरा श्योर टेक्नोलॉजीज द्वारा किया गया है। बता दें कि ओरा-क्विक, एचसीवी रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट का ही एक नया संस्करण है, जिसे 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डॉक्टरों के उपयोग के लिए अनुमोदित किया था।
हालांकि ओरा-क्विक नामक इस सेल्फ-टेस्ट किट को गैर-पेशेवर उपयोग के लिए डिजाईन किया गया है। इसकी एक किट में वायरस की जांच के लिए सभी आवश्यक चीजें शामिल हैं। ऐसे में इस नई किट की मदद से आम आदमी भी अपने घर में इस वायरस की जांच कर सकता है।
डब्ल्यूएचओ ने मौजूदा जांच सेवाओं में इजाफा करने के उद्देश्य से 2021 में एचसीवी सेल्फ टेस्ट की सिफारिश की थी। सबूतों से पता चला है कि स्व-परीक्षण से उन पीड़ितों के बीच सेवाओं की पहुंच और उपयोग बढ़ता है, जो इसके बिना वायरस का परीक्षण नहीं कर सकते।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हेपेटाइटिस सी एक वायरल संक्रमण है, जो लीवर को प्रभावित करता है। यह वायरस कई गम्भीर और स्थाई बीमारियां पैदा कर सकता है, जो जीवन के लिए खतरा बन सकती हैं। हेपेटाइटिस के चलते लिवर में सेल्स डैमेज हो जाते हैं, और इनकी वजह से उसमें सूजन आ जाती है, जो आपके लीवर को नुकसान पहुंचा सकती है।
यह बीमारी कितनी घातक है इसका अंदाजा डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जिनके मुताबिक दुनिया भर में पांच करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं। इसके साथ ही हर साल दस लाख और लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
हेपेटाइटिस बी और सी के मामलों में दुनिया में दूसरे स्थान पर है भारत
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2022 में हेपेटाइटिस सी ने करीब 2.42 लाख जिंदगियों को निगल लिया था। मतलब की इस बीमारी की वजह से हर दिन औसतन 663 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है।
इनमें से अधिकांश मौतें सिरोसिस, हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा, या लिवर कैंसर की वजह से हुई थी। हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने हेपेटाइटिस पर एक नई रिपोर्ट “2024 ग्लोबल हेपेटाइटिस रिपोर्ट” जारी की थी, इस रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत हेपेटाइटिस बी और सी के मामलों में दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस बी और सी के सबसे ज्यादा मामले चीन में सामने आए थे। जहां यह आंकड़ा 8.38 करोड़ दर्ज किया गया। देखा जाए तो दुनिया के 27.5 फीसदी मामले चीन में ही सामने आए हैं।
इसके बाद भारत इस बीमारी के मामले में दूसरे स्थान पर है जहां 2022 में हेपेटाइटिस बी और सी के 3.53 करोड़ मामले सामने आए थे। इनमें हेपेटाइटिस बी के 2.98 करोड़ और हेपेटाइटिस सी के 55 लाख मामले शामिल थे। देखा जाए तो भारत हेपेटाइटिस के वैश्विक बोझ का 11.6 फीसदी हिस्सा ढो रहा है।
आमतौर पर हेपेटाइटिस सी वायरस संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से फैलता है। जैसे सुई या सीरिंज को साझा करना या बिना जांचे रक्त चढ़ाना जैसी असुरक्षित चिकित्सा प्रक्रियाओं की वजह से यह लोगों में फैल सकता है। इतना ही नहीं दूषित पानी या लिवर से जुडी समस्याएं भी कई बार हेपेटाइटिस का रूप ले सकती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इसके लक्षणों में बुखार, थकान, भूख न लगना, मतली, उल्टी, पेट दर्द, गहरे रंग का पेशाब, खुजली, पेट में सूजन और त्वचा या आंखों का पीला पड़ना (पीलिया) शामिल हो सकते हैं। हालांकि हेपेटाइटिस सी के लिए कोई टीका नहीं है, लेकिन इसका इलाज एंटीवायरल दवाओं की मदद से किया जा सकता है।
हर दिन 3,500 लोगों की जान वायरल हेपेटाइटिस से जा रही है। हेपेटाइटिस-सी से पीड़ित पांच करोड़ लोगों में से केवल 36 फीसदी में ही इस बीमारी का पता चल सका, जबकि 2022 के अंत तक केवल 20 फीसदी लोगों को उपचार मिल पाया था।डॉक्टर मेग डोहर्टी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक एचआईवी, हेपेटाइटिस और यौन संचारित रोग कार्यक्रमों के विभाग की निदेशक डॉक्टर मेग डोहर्टी ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “हर दिन 3,500 लोगों की जान वायरल हेपेटाइटिस से जा रही है। हेपेटाइटिस-सी से पीड़ित पांच करोड़ लोगों में से केवल 36 फीसदी में ही इस बीमारी का पता चल सका, जबकि 2022 के अंत तक केवल 20 फीसदी लोगों को उपचार मिल पाया था।“
उनके मुताबिक इस किट को डब्ल्यूएचओ की प्रीक्वालिफिकेशन लिस्ट में शामिल किए जाने से एचसीवी के सुरक्षित, प्रभावी परीक्षण और उपचार को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसका मतलब है कि पहले से अधिक लोगों का निदान और उपचार संभव हो सकेगा। इसकी वजह से हेपेटाइटिस सी मुक्त दुनिया का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
बता दें कि डब्ल्यूएचओ द्वारा हरी झंडी दिए जाने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि अन्तरराष्ट्रीय खरीद एजेंसियों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली दवाएं, गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता के तय मानकों को पूरा करती हैं।
डब्ल्यूएचओ के नियामन और प्रीक्वालिफिकेशन मामलों के निदेशक डॉक्टर रोजेरियो गैसपर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित एचसीवी सेल्फ टेस्टिंग किट की उपलब्धता से निम्न और मध्यम-आय वाले देशों को सुरक्षित और किफायती जांच तक पहुंचने में मदद मिलेगी। यह इस वायरस से पीड़ित 90 फीसदी मरीजों के निदान के लक्ष्य को हासिल करने में सहायक होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि हेपेटाइटिस सी की अन्य सेल्फ टेस्टिंग किट पर नजर रखेगा और उनका मूल्यांकन करता रखेगा। साथ ही समुदायों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि ये परीक्षण सभी देशों में उपलब्ध हों।