रिसर्च से पता चला है कि यदि मरीजों को समय पर दवा दी जाए, तो लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

हेपेटाइटिस बी: हर दिन 3,000 मौतें, 25.6 करोड़ संक्रमित फिर भी महज तीन फीसदी को मिल रहा इलाज

अध्ययन के मुताबिक हेपेटाइटिस बी वायरस दुनिया में लिवर कैंसर के करीब आधे मामलों के लिए जिम्मेवार है

Lalit Maurya

हेपेटाइटिस बी एक ऐसी खामोश बीमारी है जो शरीर के भीतर लिवर को सालों तक धीरे-धीरे खराब करती है। यह बीमारी कितनी गंभीर है इसी बात से समझा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर यह बीमारी हर दिन 3,000 लोगों की मौत की वजह बन रही है। मतलब की हर मिनट दो लोगों की जान हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) की वजह से जा रही है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो दुनिया में 25.6 करोड़ लोग क्रोनिक हेपेटाइटिस बी से संक्रमित हैं। हालांकि दवा मौजूद हैं, लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद महज तीन फीसदी को ही समय पर पर्याप्त इलाज मिल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल इसके 12 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं।

2022 के आंकड़ों को देखें तो उस साल 11 लाख मौतें हेपेटाइटिस बी की वजह से हुई थी। इनमें से ज्यादातर मामलों में लिवर कैंसर मौत की वजह बना था।

द इंटरनेशनल कोएलिशन टू एलिमिनेट एचबीवी द्वारा कराए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में क्रोनिक हेपाटाइटिस बी से पीड़ित करोड़ लोगों के इलाज से जुड़े नफे-नुकसान का विश्लेषण किया है। अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि हेपेटाइटिस बी की दवाएं सुरक्षित, प्रभावी और किफायती हैं, लेकिन इनका उपयोग बेहद सीमित है।

यदि इलाज के लिए पात्रता की शर्तें आसान की जाएं और मरीजों को समय पर दवा दी जाए, तो लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

लिवर कैंसर के आधे मामलों के लिए जिम्मेवार

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि जो लोग लम्बे समय से इस बीमारी से जूझ रहे हैं, इलाज न मिलने से उनमें से 20 से 40 फीसदी की मृत्यु हो सकती है। आमतौर पर यह मौते लिवर फेल होने या लिवर कैंसर के कारण होती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक हेपाटाइटिस बी धीरे-धीरे दशकों में बढ़ती है और दुनिया में लिवर कैंसर के करीब आधे मामलों के लिए जिम्मेवार है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा दवाएं सुरक्षित, असरदार और सस्ती हैं, भले ही ये बीमारी को पूरी तरह ठीक नहीं करतीं। लेकिन इन दवाओं की मदद से बीमारी की गति काफी हद तक धीमी की जा सकती है। साथ ही इनसे दूसरों में संक्रमण फैलने का खतरा भी घट जाता है।

दवाएं असरदार, लेकिन लोगों तक नहीं पहुंच रहीं

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर जॉन टैविस का कहना है, “ये दवाएं अच्छी हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल बेहद सीमित है। दुनिया में महज तीन फीसदी मरीज ही इलाज पा रहे हैं, जबकि बहुत से लोग इनसे लाभ उठा सकते हैं।”

इस कड़ी में प्रकाशित दूसरे अध्ययन में विशेषज्ञों ने हेपेटाइटिस बी से जुड़ी भावनात्मक और सामाजिक चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया है। अधिकतर मामलों में यह संक्रमण मां से नवजात शिशु में जाता है, हालांकि इस बारे में खुद मां को भी इसकी जानकारी नहीं होती। 

डॉक्टर टैविस के मुताबिक “जब एक मां को पता चलता है कि उसने अपने बच्चे को एक घातक वायरस दे दिया है, तो उस दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती।“

कुछ देशों में लोग हेपाटाइटिस बी से संक्रमित होने की बात छिपाते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि नौकरी से निकाल दिया जाएगा या दोस्त और समाज उनसे दूरी बना लेंगे। जबकि यह वायरस सामान्य संपर्क से नहीं फैलता, फिर भी कई लोग सामाजिक भेदभाव और अकेलेपन का सामना करते हैं।

शोध के अनुसार, अगर समय पर इलाज दिया जाए तो लिवर कैंसर के मामलों में दो-तिहाई या उससे भी अधिक की कमी लाई जा सकती है। डॉक्टर टैविस का कहना है कि अगर इलाज को बढ़ाया जाए तो इससे लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। सोचिए, कितनी दादी-नानियां जिन्दा रहेंगी, जिनकी गोद में उनके पोते-पोतियां खेल सकेंगे।"

शोधकर्ता चेताते हैं कि इलाज में देरी का मतलब है जरूरत से ज्यादा जोखिम और लिवर को को उतना ज्यादा नुकसान। ऐसे में उनके मुताबिक हमे इस बीमारी के इलाज का तरीका बदलने की जरूरत है ताकि लोग जल्द से जल्द सुरक्षित इलाज पा सकें।