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स्वास्थ्य

सावधान! युवाओं में बढ़ रहा सोडा, एनर्जी ड्रिंक्स का चलन, खपत में 23 फीसदी का हुआ इजाफा

Lalit Maurya

चीनी युक्त मीठे पेय पदार्थ जैसे सॉफ्ट ड्रिंक्स स्वाद में भले ही कितने अच्छे लगें, लेकिन यह किसी मीठे जहर से कम नहीं। हालांकि स्वास्थ्य पर पड़ते अनगिनत दुष्प्रभावों के बावजूद दुनिया भर में इनकी खपत आज भी बदस्तूर बढ़ रही है।

देखा जाए तो दुनिया भर में जिस तरह बच्चों और किशोरों में सोडा, सॉफ्ट ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक्स और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स जैसे मीठे पेय पदार्थों का चलन बढ़ा है वो अपने आप में एक बड़ी समस्या को जन्म दे रहा है। 185 देशों में बच्चों और किशोरों पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि पिछले 28 वर्षों के दौरान बच्चों और किशोरों में इन शर्करा युक्त पेय पदार्थों की खपत 23 फीसदी बढ़ी है। कहीं न कहीं यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि हमारे बच्चे बड़ी तेजी से इन मीठे जहर की गिरफ्त में आ रहे हैं।

यह अध्ययन 1990 से 2018 के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इस अध्ययन के मुताबिक दुनिया में दस फीसदी युवा सप्ताह में सात सर्विंग या उससे अधिक मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। गौरतलब है कि यहां हर सर्विंग की मात्रा 248 ग्राम है। टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित हुए हैं।

इस अध्ययन में जो बड़ी बातें निकलकर सामने आई हैं उनके मुताबिक लड़कों और लड़कियों के बीच खपत करीब-करीब समान थी, लेकिन दूसरी तरफ जिन बच्चों और किशोरों के माता-पिता कम शिक्षित थे, उनमें यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर थी।

इसी तरह शहरी युवाओं और बच्चों में भी अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में इन पेय पदार्थों का चलन कहीं ज्यादा है।

यह अध्ययन ग्लोबल डाइटरी डेटाबेस पर आधारित है, जिसमें दुनिया भर के लोगों के खान-पान से जुड़ी विस्तृत जानकारी को एकत्र किया जाता है। इस अध्ययन का मकसद बच्चों और युवाओं में शर्करा युक्त मीठे पेय पदार्थों की खपत का अनुमान लगाना था।

इनमें सोडा, एनर्जी ड्रिंक, स्पोर्ट्स ड्रिंक और घरों में बनाए जाने वाले चीनी युक्त मीठे पेय पदार्थों को शामिल किया गया था। इनमे वो मीठे पेय पदार्थ शामिल थे, जिनमें अतिरिक्त चीनी होती है और उनमें प्रति कप 50 या उससे अधिक कैलोरी होती हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1990 से 2018 के बीच किए गए 1,200 से अधिक सर्वेक्षणों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

इनके विश्लेषण से पता चला है कि तीन से 19 वर्ष की आयु के बच्चे कहीं ज्यादा मीठे पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जो वयस्कों की तुलना में करीब-करीब दोगुना है। बता दें कि अध्ययन में शर्करा युक्त पेय पदार्थों की परिभाषा में 100 फीसदी फलों के रस के साथ मीठा दूध शामिल नहीं था। न ही इसमें उन मीठे पेय पदार्थों को शामिल किया गया, जिनमें कैलोरी न के बराबर होती है।

अध्ययन के मुताबिक दुनिया के कुछ क्षेत्रों में इन चीनी युक्त मीठे पेय पदार्थों की खपत बहुत ज्यादा है तो कहीं बहुत कम, मतलब की इसके सेवन में नाटकीय रूप से अंतर है। इसके वैश्विक औसत को देखें तो यह प्रति सप्ताह 3.6 सर्विंग दर्ज किया गया।

युवा पीढ़ी को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा 'मीठा जहर'

हालांकि दक्षिण एशिया में बच्चों और युवाओं में इसका चलन अभी भी तुलनात्मक रूप से उतना नहीं है। यह वजह है कि इस क्षेत्र में रहने वाले बच्चे और युवा प्रति सप्ताह औसतन 1.3 सर्विंग के बराबर मीठे पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन देशों में यह आंकड़ा प्रति सप्ताह 9.1 सर्विंग तक दर्ज किया गया।

अध्ययन से पता चला है कि 56 देशों में, करीब 23.8 करोड़ बच्चे और किशोर जोकि दुनिया में बच्चों और युवाओं की आबादी का दस फीसदी हैं, प्रति सप्ताह सात या उससे अधिक सर्विंग के बराबर इन मीठे पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं।

आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि मेक्सिको में सबसे ज्यादा युवा मीठे पेय पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जहां प्रति सप्ताह इसकी औसत खपत 10.1 सर्विंग थी। इसके बाद 6.9 सर्विंग के साथ युगांडा दूसरे, जबकि पाकिस्तान औसतन 6.4 सर्विंग प्रति सप्ताह के साथ तीसरे स्थान पर रहा। युवाओं द्वारा मीठे पेय पदार्थों की सबसे ज्यादा खपत करने वाले देशों में प्रति सप्ताह 6.2 सर्विंग की खपत के साथ दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका भी शामिल रहे। 

 यदि 1990 से 2018 के बीच इन पेय पदार्थों की खपत में होने वाली वृद्धि को देखें तो यह उप-सहारा अफ्रीका में सबसे अधिक दर्ज की गई है। जहां युवाओं में इसकी साप्ताहिक खपत 106 फीसदी बढ़कर 2.17 सर्विंग प्रति सप्ताह हो गई है। ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि तेजी से होती इस वृद्धि पर ध्यान देने की जरूरत है।

इसके दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता लॉरा लारा-कैस्टर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, "चीनी युक्त इन पेय पदार्थों से वजन और मोटापे की समस्या बढ़ सकती है।"

उनके मुताबिक भले ही बच्चों को जीवन के शुरूआती वर्षों में मधुमेह या हृदय रोग न हो, लेकिन आगे चलकर यह उनकी सेहत को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने बचपन में इन मीठे पेय पदार्थों से जुड़ी आदतों में बदलाव के लिए प्रारंभिक शिक्षा और नीतियों के महत्व पर प्रकाश डाला है ताकि बच्चों को इसके जाल में फंसने से बचाया जा सके।

हाल ही में किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि एनर्जी ड्रिंक्स की वजह से विद्यार्थियों की नींद पर असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से उनकी नींद की गुणवत्ता में गिरावट आने के साथ-साथ अनिद्रा की समस्या भी पैदा हो रही है। देखा जाए तो आज कल देश-दुनिया में एनर्जी ड्रिंक्स का चलन बेहद आम होता जा रहा है।

यहां तक की जूस की दुकानों पर भी इन एनर्जी ड्रिंक्स को आसानी से देखा जा सकता है। इनके लोक-लुभावने विज्ञापन भी युवाओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कई विज्ञापनों के मुताबिक तो इसको पीने के बाद आपको इतनी शक्ति मिलती है कि जैसे आपके पंख लग जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा यूरोपीय देशों के साढ़े चार लाख से अधिक वयस्कों पर किए एक अध्ययन से पता चला है कि दिन में सिर्फ दो गिलास सॉफ्ट ड्रिंक पीना जल्द मृत्यु का कारण बन सकता है। हालांकि इस बात से कोई बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता चाहे वह सॉफ्ट ड्रिंक चीनी युक्त हो या कृत्रिम मिठास वाला।

बता दें की सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) भी लम्बे समय से लोगों की सॉफ्ट ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक्स और अन्य मीठे पेय पदार्थों के चलते बढ़ते खतरों को लेकर आगाह करता रहा है।

सीएसई ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि एनर्जी ड्रिंक्स में अतिरिक्त कैफीन होता है। भारत की शीर्ष खाद्य नियामक संस्था- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई), इन एनर्जी ड्रिंक्स को गैर-अल्कोहल युक्त पेय पदार्थों के रूप में परिभाषित करती है, जिनमें कैफीन, ग्वाराना, टॉरिन और जिनसेंग जैसे उत्तेजक पदार्थ होते हैं।

सीएसई द्वारा किए अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर में हर साल 184,000 मौतों की वजह यह चीनी युक्त पेय पदार्थ हैं। इनमें 133,000 मौतें डायबिटीज की वजह से जबकि 45,000 मौतें ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों की वजह हो रही हैं।

कई अध्ययन भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यह एनर्जी ड्रिंक्स स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं हैं। इसके बावजूद भारत में भी इन एनर्जी ड्रिंक्स का व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर की सरकारों ने स्वस्थ आहार और उससे जुड़ी आदतों को बढ़ावा देने के लिए सोडा कर और स्कूलों में चीनी युक्त पेय पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध जैसे उपाय शुरू किए हैं। हालांकि यह प्रयास अभी शुरूआती स्तर पर हैं, और सॉफ्ट या एनर्जी ड्रिंक जैसे पेय पदार्थ बनाने वाले उद्योगों की आक्रामक मार्केटिंग और विज्ञापनों से जूझ रहें हैं। इसके साथ ही इन्हें खाद्य क्षेत्र के होते वैश्वीकरण जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट “ग्लोबल रिपोर्ट ऑन द यूज ऑफ शुगर-स्वीटेनेड बेवरेज टैक्सेज 2023” के मुताबिक दुनिया में कई देश आज भी स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक इन पेय पदार्थों पर कर लगाने से बच रहे हैं, जबकि कई देश ऐसे भी हैं जहां इनपर नाममात्र का कर लगाया जा रहा है। वहीं जो देश कर लगा भी रहे हैं, उनमें से अधिकांश इस कर से होने वाली आय का उपयोग स्वस्थ विकल्प चुनने और उसे प्रोत्साहित करने के लिए नहीं कर रहे हैं।

कुल मिलकर इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मंडराते एक बड़े खतरे की ओर इशारा करते हैं। देखा जाए तो यह मीठे पेय पदार्थ और जंक फूड हमारे आने वाली पीढ़ियों को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं। ऐसे में यदि आने वाले पीढ़ियों को इस मीठे जहर से बचाना है तो इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।