शोध के मुताबिक, पिछले पांच दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, शोध टीम ने अनुमान लगाया है कि 2023 में लगी आग से 69 से 183 टन आर्सेनिक निकल सकती है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, सलाम
जंगल

कनाडा में एक साल में जंगल की आग से हुआ 183 टन तक जहरीले आर्सेनिक का उत्सर्जन

Dayanidhi

जंगल में आग लगने से केवल जैव विविधता का ही नुकसान नहीं होता है बल्कि इसके कारण कई जहरीले तत्व भी निकलते हैं, इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। भारी तत्वों को लेकर शोधकर्ताओं ने साल 2023 में कनाडा के जंगलों में लगी आग की जांच पड़ताल की।

अध्ययन में पाया गया कि कनाडा के येलोनाइफ, नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज के आसपास के जंगलों में चार बार आग लगने से हर साल दुनिया भर में इससे उतसर्जित होने वाले आर्सेनिक के आधे से अधिक हिस्से को बढ़ा दिया है।

वाटरलू विश्वविद्यालय और निपिसिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह शोध, येलोनाइफ के आसपास जंगल की आग के सबसे अधिक खतरे वाले इलाकों में से एक है, इसके कारण यहां जमा आर्सेनिक की मात्रा की गणना करने वाला यह पहला शोध है।

एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक, पिछले पांच दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, शोध टीम ने अनुमान लगाया है कि 2023 में लगी आग से 69 से 183 टन आर्सेनिक निकल सकती है।

आर्सेनिक, एक बहुत खतरनाक जहर है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मधुमेह, हृदय रोग, अलग-अलग तरह के कैंसर और शिशु मृत्यु दर के लिए जिम्मेवार माना है, यह जंगल की आग से दूर तक पहुंच सकता है और मिट्टी से वातावरण में जमा हो जाता है।

यह देखते हुए कि जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग लगने और इसके और भयानक होने के आसार हैं। शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से चेतावनी देते हुए कहा है कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र में जहां हर साल जंगल में लगने वाली आग, अतीत या वर्तमान में खनन और धातु को गलाने के कामों से लगती है, भविष्य में आग लगने से वातावरण में जमा विषाक्त पदार्थों के दोबारा जारी होने का एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।

वाटरलू के शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, येलोनाइफ में खनन का दशकों पुराना इतिहास है, जिसके कारण आसपास के जमीनी हिस्सों में आर्सेनिक जमा है। हालांकि इस संबंध में येलोनाइफ अलग नहीं है, कनाडा में कई औद्योगिक रूप से प्रदूषित जगहें हैं जहां अक्सर आग लगती है।

जंगल की आग के द्वारा उत्सर्जित आर्सेनिक की मात्रा अनेक कारणों पर निर्भर करती है, जैसे आग का तापमान, जलने की गहराई, मिट्टी का प्रकार आदि।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, हालांकि हमारे शोध ने इस मुद्दे पर चिंता बढ़ा दी है, जंगल में आग लगने की घटनाओं की वैज्ञानिकों, रसायनज्ञों, पर्यावरण वैज्ञानिकों और नीति विशेषज्ञों द्वारा मिलकर जांच की जानी चाहिए।

देश की अग्नि प्रबंधन सहित अलग-अलग आग के प्रबंधन तकनीकों को जोड़ते हुए, हम लोगों और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए इन उभरते खतरों को कम करने में सफल हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि आर्द्रभूमि से आर्सेनिक उत्सर्जन सबसे अधिक चिंताजनक है, क्योंकि वनों की तुलना में उनमें प्रदूषक जमा होने के आसार अधिक होते हैं। शोधकर्ता ने कहा वे उत्तरी पीटलैंड द्वारा जमा विषाक्त पदार्थों की मात्रा का आकलन करना जारी रखेंगे और उन जमीन के उन हिस्सों से अन्य धातुओं के उत्सर्जन का अध्ययन करेंगे।

यहां यह उल्लेखनीय है कि इस मामले में भारत भी पीछे नहीं हैं, संसद में मंत्री के द्वारा दिए गए एक बयान के मुताबिक, देश में आठ महीने के आग लगने के सीजन में जंगलों में 2 लाख से अधिक आग की घटनाएं घटी