भारत में पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर चेतावनी लेबल लगाने की मांग लंबे समय से लंबित है
एफएसएसएआई ने इसके बजाय सितारा-आधारित पोषण रेटिंग का प्रस्ताव दिया है
विशेषज्ञ इसे भ्रामक और अप्रभावी मानते हैं
यह कदम उद्योग के दबाव में उपभोक्ता स्वास्थ्य के हितों को कमजोर करता है
मोटापा व गैर-संचारी रोगों की रोकथाम में बाधा डाल सकता है
पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर पैक के सामने लेबलिंग का मुद्दा भारत में एक महत्वपूर्ण चरण में पहुंच गया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई ) द्वारा अपने मसौदा (लेबलिंग एवं प्रदर्शन) संशोधन विनियम, 2022 को अक्टूबर के मध्य तक अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय से मांगा गया तीन महीने का विस्तार समाप्त हो जाएगा। इस वर्ष जुलाई में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय नियामक को निर्देश दिया था कि वह मसौदे पर प्राप्त 14,000 से अधिक टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए काफी समय से लंबित इस विनियमन को अंतिम रूप दे। मसौदे पर इतनी अधिक संख्या में टिप्पणियां इस बात का संकेत हैं कि दांव पर बहुत कुछ लगा है।
जहां एक ओर यह विशाल और शक्तिशाली पैकेज्ड खाद्य उद्योग है, जो अपने खराब खाने को अच्छा बताकर मुनाफा कमाता आ रहा है। दूसरी ओर, यह लाखों भोले-भाले भारतीय उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य का सवाल है। लेकिन एफएसएसएआई की विश्वसनीयता भी दांव पर है। आखिरकार, 2014 में ही एफएसएसएआई के नेतृत्व वाले एक विशेषज्ञ समूह ने पहली बार नमक, चीनी या वसा से भरपूर खाद्य पदार्थों पर पैक के सामने लेबल लगाने की सिफारिश की थी। 11 साल बाद यह प्रस्तावित मसौदा पहले से कहीं ज्यादा कमजोर है। प्रस्तावित स्टार-आधारित भारतीय पोषण रेटिंग न केवल प्रतिगामी है, बल्कि भ्रामक भी है। इसे केवल कुछ देशों में स्वेच्छा से अपनाया गया था। इससे भी बुरी बात यह है कि एफएसएसएआई ने चेतावनी लेबल के बजाय इसे चुना, जिन्हें कई देशों में अपनाया जाता है और पोषण विज्ञान पर आधारित इसके उद्देश्य-अनुकूल डिजाइन के कारण भारतीय चिकित्सा और जन-स्वास्थ्य जगत के कई लोग इसका समर्थन करते हैं।
भारतीय वैज्ञानिक समुदाय और नियामकों में से अधिकांश लोग अच्छी तरह जानते हैं कि स्टार-आधारित पोषण रेटिंग मोटापे और गैर-संचारी रोगों के लगातार बढ़ते संकट को कम करने में उतनी मददगार नहीं होगी, जितनी कि चेतावनी लेबल । न ही, वर्तमान समय में कोई भी ईमानदारी से यह उम्मीद कर सकता है कि उद्योग जगत ऐसी किसी भी बात पर सहमत होगा जिससे उनके मुनाफे या उनके खराब खाद्य पदार्थों की खपत कम हो, जो कि किसी भी तरह से फैक्ट्री-निर्मित उत्पाद से कम नहीं हैं।
इस मुद्दे के मूल में न केवल शक्तिशाली उद्योग है, बल्कि एक कमजोर नियामक भी है, जो बाजार के दबाव का सामना करने के लिए आवश्यक साहस नहीं दिखा पाया और इस प्रक्रिया में अपने जनादेश को लगभग भूल गया। यह एक दशक लंबी यात्रा के दौरान स्पष्ट था। इसका पहला चरण 2013-20 तक था, जो नियमों में देरी और कमजोर होने से चिह्नित था। एफएसएसएआई के नेतृत्व वाले विशेषज्ञ समूह की पहली रिपोर्ट में “जंक फूड” शब्द का उल्लेख भी मुश्किल से हुआ।
फिर, 2015 और 2018 के बीच दो और समितियों का गठन किया गया और बाद की रिपोर्ट को सार्वजनिक भी नहीं किया गया। दो मसौदा नियम भी सामने आए, एक 2018 में और दूसरा 2019 में क्योंकि बाजार पहले मसौदे में नमक, चीनी या वसा में उच्च खाद्य पदार्थों पर प्रस्तावित “लाल” रंग कोड के खिलाफ था। दूसरा चरण और भी निराशाजनक रहा।
जनवरी से जून 2021 तक एफएसएसएआई के नेतृत्व में हितधारक परामर्श की छह बैठकों में से प्रत्येक में नागरिक समाज, जन स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञों की कुल संख्या की तुलना में पैकेज्ड फूड उद्योग की उपस्थिति अनुपातहीन रूप से अधिक देखी गई। दुर्भाग्य से, अक्सर एफएसएसएआई के अधिकारी उद्योग जगत की भाषा ही बोलते दिखाई दिए। हितधारक परामर्श का विचार ही त्रुटिपूर्ण प्रतीत हुआ। प्रस्तावित स्टार-आधारित भारतीय पोषण रेटिंग शायद इन अस्वास्थ्यकर खाद्य पैकेटों पर नियंत्रण रखने के भारत के प्रयास में सबसे बुरा परिणाम है, जो अत्यधिक आकर्षक और लत लगाने वाले होते हैं।
भारत को अपने उपभोक्ताओं को किसी विशेष खाद्य पदार्थ में नमक, चीनी या वसा की उच्च मात्रा के बारे में सचेत करने की आवश्यकता है। यह उपभोक्ता कई राज्यों और क्षेत्रों से आते हैं और कई लोग लेबलिंग की धांधली को पढ़ या समझ नहीं पाते। एकल पोषक तत्व और प्रतीक-आधारित चेतावनी लेबल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्यथा अनियंत्रित आहार परिवर्तन को धीमा करने में मददगार और शायद काफी हद तक कारगर साबित हो सकते हैं। भारत को निश्चित रूप से ऐसी लेबलिंग प्रणाली की आवश्यकता नहीं है जो अति-प्रसंस्कृत “खराब” खाद्य पदार्थों को “सितारों” के साथ महिमामंडित करती हो। सितारों तक पहुंचने के लिए "सकारात्मक पोषक तत्वों" को भ्रामक रूप से शामिल करने से ऐसी प्रणाली फायदे से अधिक नुकसान ही करेगी।