खान-पान

संयुक्त राष्ट्र की ट्रांस-फैटी एसिड नीति से अफ्रीका में पोषण पर खतरा

ट्रांस फैटी एसिड को पूरी तरह खत्म करने की घोषणा अफ्रीका में खासतौर से बच्चों के स्वास्थ्य से समझौता कर सकती है

Esther Omosa

  • संयुक्त राष्ट्र की ट्रांस-फैटी एसिड नीति अफ्रीका में पोषण संकट को बढ़ा सकती है।

  • उप-सहारा अफ्रीका में पशु आधारित खाद्य पदार्थों की खपत पहले से ही कम है।

  • इन पर प्रतिबंध लगाने से पोषण की कमी और बढ़ सकती है।

  • ये खाद्य पदार्थ विटामिन, जिंक, आयरन जैसे पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जो विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक हैं।

ग्लोबल साउथ में खासतौर से उप-सहारा अफ्रीका में पशु आधारित खाद्य पदार्थों का सेवन बहुत कम है। हम इन खाद्य पदार्थों की वकालत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इनमें पोषक तत्वों की अधिकता होती है और ये आवश्यक लाभ प्रदान करते हैं। यदि संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक रूप से बने और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले स्रोतों में स्पष्ट अंतर किए बिना ट्रांस-फैटी एसिड को खत्म करने की व्यापक घोषणा करता है तो हम अफ्रीका में बड़ी संख्या में लोगों की पोषण स्थिति से समझौता करने का जोखिम उठाएंगे।

मिसाल के तौर पर उप-सहारा अफ्रीका में औसतन मांस की खपत प्रति व्यक्ति सिर्फ 68 ग्राम प्रति वर्ष है, जबकि अमेरिका में यह लगभग 138 किलोग्राम है। इतनी सीमित खपत के साथ, सेवन को और हतोत्साहित करना उन आबादियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है जो पहले से ही सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का सामना कर रही हैं। उदाहरण के लिए उप-सहारा अफ्रीका में प्रजनन आयु की बड़ी संख्या में महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हैं।

पशु आधारित खाद्य पदार्थ इन क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित कई आवश्यक पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, जिंक, आयरन और फोलेट आदि प्रदान करते हैं। इनमें उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन होता है जो विकास, वृद्धि, कोशिका विभाजन और ऊतक की मरम्मत के लिए जरूरी है। ये खाद्य पदार्थ विशेष रूप से बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें भ्रूण के विकास और प्रसव के बाद की रिकवरी के लिए अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा, यह सभी खाद्य पदार्थ मस्तिष्क के विकास, तंत्रिका तंत्र के कार्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी योगदान करते हैं। पशु प्रोटीन का एक और फायदा यह है कि इनका संतृप्ति मूल्य अधिक होता है यानी ये लोगों को लंबे समय तक भूख नहीं लगने देते, जिससे अत्यधिक भोजन करने की प्रवृत्ति कम होती है। यह अधिक वजन और मोटापे को प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण है जो एक और बढ़ती हुई चिंता है।

इसलिए जब हम कुपोषण के सभी रूपों, चाहे वह अल्पपोषण हो, बौनापन हो, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो या अधिक वजन का मामला देखते हैं तो वहां पशु-आधारित खाद्य पदार्थ एक अहम भूमिका निभाते हैं। एक जैसा समाधान वाला दृष्टिकोण उन क्षेत्रों में अधिक नुकसान कर सकता है जो पहले से ही पोषण संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

(एस्थर ओमोसा नैरोबी स्थित इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ पोषण विशेषज्ञ हैं। यह लेख शगुन से बातचीत पर आधारित है)