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पर्यावरण

दून घाटी को मिली पर्यावरणीय सुरक्षा खतरे में: एनजीटी ने उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब

1989 की पर्यावरणीय अधिसूचना में संशोधन को चुनौती, याचिकाकर्ता ने कहा नई अधिसूचना से दून घाटी की पारिस्थितिकी को खतरा

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया है कि वह 13 मई 2025 को जारी दून घाटी अधिसूचना संशोधन पर जवाब दाखिल करे। यह अधिसूचना 1 फरवरी 1989 की मूल अधिसूचना में संशोधन करती है, जो दून घाटी को पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करती थी।

देवभूमि मानव संसाधन विकास समिति ने अपनी याचिका में कहा है कि 1 फरवरी 1989 की दून घाटी अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के आधार पर जारी की गई थी। इस अधिसूचना में माना गया था कि दून घाटी एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसे विशेष पर्यावरणीय सुरक्षा की जरूरत है।

इस मामले में उत्तराखंड सरकार के साथ-साथ उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं।

याचिकाकर्ता के वकील की दलील है कि 13 मई 2025 की संशोधित अधिसूचना ने 1 फरवरी 1989 की मूल अधिसूचना द्वारा दून घाटी को दी गई पर्यावरणीय सुरक्षा को कमजोर कर दिया है।

क्या बदला है 2025 की अधिसूचना में?

याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि 1 फरवरी 1989 की अधिसूचना में मौजूद पुराने प्रावधान (iii, iv और v) इस प्रकार थे:

(iii) पर्यटन: पर्यटन केवल पर्यटन विकास योजना के अनुसार ही होना चाहिए, जिसे राज्य पर्यटन विभाग तैयार करेगा और इसके लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी लेनी होगी।

(iv) चराई: चराई केवल राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार ही हो सकती है, जिसे केंद्र सरकार से स्वीकृति लेनी होगी।

(v) भूमि उपयोग: पूरा क्षेत्र केवल राज्य सरकार द्वारा तैयार मास्टर प्लान और भूमि उपयोग योजना के अनुसार विकसित किया जा सकता है, हालांकि इसकी मंजूरी भी केंद्र सरकार से लेनी होगी।

याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि 13 मई 2025 की नई अधिसूचना में इन पुराने तीनों प्रावधानों (iii), (iv) और (v) को हटाकर नए प्रावधान जोड़े गए हैं, जो इस प्रकार हैं:

(iii) पर्यटन योजना, चराई योजना, मास्टर प्लान और भूमि उपयोग योजना के साथ-साथ जोनल मास्टर प्लान और इंटीग्रेटेड मास्टर प्लान जैसी अन्य योजनाएं राज्य सरकार द्वारा बनाई जाएंगी। इसमें पर्यावरण, वन, शहरी विकास, पर्यटन, नगर निकाय, राजस्व, लोक निर्माण, जल संसाधन, बागवानी, पंचायती राज, ग्रामीण विकास और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे राज्य विभागों की भागीदारी होगी। इन योजनाओं को राज्य सरकार के ही सक्षम प्राधिकरण से मंजूरी दी जाएगी।

(iv) जो परियोजनाएं पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआइए) अधिसूचना, 14 सितंबर 2006 के तहत नहीं आतीं, लेकिन "ऑरेंज कैटेगरी" की औद्योगिक इकाइयों में शामिल हैं, उन्हें उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार अनुमति दी जाएगी।

(v) जो परियोजनाएं ईआइए अधिसूचना, 14 सितंबर 2006 के तहत आती हैं, उन्हें उसी अधिसूचना में तय प्रक्रिया के अनुसार चलाया जाएगा।

मतलब कि पहले जिन योजनाओं को राज्य सरकार द्वारा तैयार कर केंद्र सरकार (पर्यावरण मंत्रालय) से मंजूरी लेना अनिवार्य था। अब, सभी योजनाओं को राज्य सरकार खुद बना और मंजूर कर सकती है, जिससे केंद्र सरकार की निगरानी हट जाती है।

इसके अलावा, नए नियमों के तहत कई औद्योगिक परियोजनाएं भी अब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति से चल सकेंगी, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआइए) की अनिवार्यता भी कमजोर हो जाती है। कहीं न कहीं अब इन सभी योजनाओं और अनुमतियों में केंद्र सरकार की भूमिका खत्म कर दी गई है, और पूरा नियंत्रण राज्य सरकार के हाथ में आ गया है।

याचिका में कहा गया कि इस संशोधन के कारण पर्यटन, चराई, विकास सम्बन्धी मास्टर प्लान और भूमि उपयोग से जुड़े सभी अधिकार अब पूरी तरह से राज्य सरकार के पास चले गए हैं और केंद्र सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।

उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ है यह कदम?

2025 की यह अधिसूचना उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 6 सितंबर 2023 के फैसले के भी खिलाफ है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 6 सितंबर 2023 को अपने आदेश में राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था "हमारे अनुभव में, राज्य की नीति पहाड़ों का केवल व्यवसायीकरण कर, अधिक से अधिक राजस्व कमाने तक सीमित रह गई है। वास्तविकता में इनमें पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।"

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि "ऐसे लगता है कि राज्य पूरी तरह संवेदनहीन होकर आंखे मूंदे हुए है, जो केवल दून घाटी ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को नजरअंदाज कर रही है। यही वजह है कि राज्य सरकार पर्यावरण मंत्रालय से दून घाटी अधिसूचना को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रही है।“

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पर्यटन विकास और चराई से जुडी योजना तैयार करने और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से स्वीकृति लेने का स्पष्ट निर्देश दिया था।

हालांकि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने एनजीटी को बताया कि राज्य सरकार ने इन योजनाओं को तैयार करने और आदेशों का पालन करने की जगह नया संशोधन जारी कर दिया, जिससे दून घाटी में पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।