इंसानी विकास या विनाश की पटकथा; चित्रण: योगेंद्र आनंद/ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) 
पर्यावरण

नए युग में धरती: 50 के दशक में हुई थी मानव युग की शुरूआत!

मानव युग यानी एंथ्रोपोसीन हम इंसानों की शानदार सफलता को दर्शाता है, लेकिन इसके पीछे की एक कड़वी सच्चाई भी है, जिसे हम चाह कर भी नहीं झुठला सकते

Lalit Maurya

इसमें कोई दोराय नहीं कि मनुष्य पृथ्वी का सबसे कामयाब जीव है। पिछले कुछ हजार वर्षों में हमने इस ग्रह पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है। बात चाहे जलवायु की हो या पानी की या जमीन, जंगल और जैवविविधता की हर किसी पर इंसानी छाप स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। यह हमारे वर्चस्व को दर्शाता है।

यह दर्शाता है कि मानव अपने विकास में कितना सफल रहा है। लेकिन इस शानदार सफलता के पीछे की एक कड़वी सच्चाई भी है, जिसे हम चाह कर भी नहीं झुठला सकते। इस दौरान हमने अपनी सफलता को हासिल करने के लिए ग्रह में जितने भी बदलाव किए हैं उनके प्रभाव अब खुलकर सामने आने लगे हैं। यह बदलाव अन्य जीवों के साथ-साथ हमारे खुद के अस्तित्व को भी चुनौती दे रहे हैं।

पिछले सात दशकों में हम इंसानों ने जिस तरह से धरती के बुनियादी ताने बाने को प्रभावित किया है। उससे यह लगने लगा है कि हम एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं और इस युग को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है एंथ्रोपोसीन या मानव युग!

यह युग एक तरफ जहां इंसानी सफलता की कहानी कहता है, वहीं दूसरी ओर विनाश की लिखी जा रही पटकथा का भी साक्षी है। इसका शिकार मानव जाति भी हो रही है।

अब सवाल यह है कि मानव युग की शुरआत कब से मानी जाए। यह सवाल लम्बे समय से बना हुआ है।

टोक्यो, मात्सुयामा, क्योटो, शिमाने विश्वविद्यालय और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 1950 का दशक, मानव युग के प्रारम्भ होने का सबसे प्रबल दावेदार है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज के अर्थ, एटमॉस्फेरिक एंड प्लैनेटरी साइंसेज जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में जानकारी दी है कि उन्होंने इसके तीनों दावेदारों की तुलना कैसे की है और क्यों मानव युग के प्रारम्भ के लिए 1950 के दशक को सर्वोत्तम दावेदार के रूप में चुना है।

गौरतलब है कि 2002 में नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुटजेन ने सुझाव दिया था होलोसीन समाप्त हो चुका है और एंथ्रोपोसीन नामक एक नए युग की शुरूआत हो चुकी है। उनके मुताबिक यह नया युग इंसानी गतिविधियों के कारण ग्रह पर हुए बदलावों से आकार ले रहा है।

मानव विकास या विनाश की शुरूआत

तब से, वैज्ञानिक इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या नए युग की घोषणा करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। कुछ का मानना ​​है कि ऐसा है, जबकि अन्य को लगता है कि ऐसा कहना बहुत जल्दबाजी होगा। हालांकि इस अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक इस बात पर सहमत थे कि मानव युग की शुरूआत हो चुकी है इस बात के पर्याप्त सबूत हैं और वो उस बिंदु का पता लगाने चाहते थे, जहां से इसकी शुरूआत हुई थी।

इसका पहला जो उम्मीदवार है वो 1800 के दशक का उत्तरार्ध है, जब औद्योगिक क्रांति शुरूआत हुई। उन्होंने पाया कि इस दौरान, पोषक तत्वों के स्तर और स्थिर आइसोटोप संतुलन में परिवर्तन के साथ-साथ लीड बड़े क्षेत्रों में फैलने लगा।

इसका दूसरा संभावित बिंदु 1900 के दशक की शुरुआत है। इस समय के दौरान, पराग में वैश्विक परिवर्तन हुए, ब्लैक कार्बन में भारी वृद्धि हुई और स्थिर आइसोटोप के संतुलन में व्यापक बदलाव हुए।

इसका तीसरा उम्मीदवार 1900 के दशक के मध्य का समय था, जब दुनिया भर में व्यापक और स्थाई बदलाव दर्ज किए गए। यह वो समय था जब प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक के साथ-साथ कार्बनिक प्रदूषक पूरी दुनिया में हावी होने लगे। यह परमाणु युग की भी शुरुआत थी, जब पृथ्वी पर हर जगह परीक्षण के लिए किए गए विस्फोटों के निशान सबूत सामने आए। इसके साथ ही इस दौरान वैश्विक तापमान में वृद्धि की शुरूआत भी हुई, जिसके विनाशकारी प्रभाव सारी दुनिया में सामने आ रहे हैं।

इन तीनों संभावित उम्मीदवारों के वैश्विक प्रभाव की तुलना करने के बाद, वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मानव युग (एंथ्रोपोसीन) की शुरूआत के लिए 1950 सबसे प्रबल दावेदार है। यह सबसे ज्यादा आसानी से देखे और मापे जाने वाले वैश्विक बदलावों को दर्शाता है। यह ऐसे बदलाव थे जिन्हें होलोसीन के स्तर पर वापस आने में हजारों या लाखों साल लग लगेंगे। भले ही हम इंसान तब मौजूद हों या न हों।

देखा जाए तो यह बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा का ही नतीजा है कि धरती पर नौ टिप्पिंग पॉइंट सक्रिय हो चुके हैं, जो विनाश की चेतावनी हैं। इनमें से कुछ टिप्पिंग पॉइंट तो विनाशकारी सीमा तक बढ़ चुके हैं। विशेषज्ञों की माने तो यह पॉइंटस विनाश की ड्योढ़ी हैं, जिसपर पहुंचने के बाद धरती पर विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे।

हम इंसानों को समझना होगा कि इंसान प्रकृति से ऊपर नहीं है, बल्कि वो खुद इस प्रकृति का एक हिस्सा है, जो शायद हम भूल चुके हैं। न केवल पर्यावरण की बहाली और वन्यजीवों की रक्षा बल्कि खुद अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हम इंसानों को प्रकृति के साथ अपने बिगड़ते रिश्तों में सुधार लाने की जरूरत है।