सौर ऊर्जा अब दुनिया में बिजली का सबसे सस्ता स्रोत बन गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ सरे के अध्ययन के अनुसार, जिन देशों में अच्छी धूप होती है, वहां बिजली उत्पादन की लागत घटकर मात्र दो रुपए प्रति यूनिट रह गई है।
यह कोयला, गैस और पवन ऊर्जा से भी सस्ती है। सौर ऊर्जा की यह प्रगति स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
अध्ययन के मुताबिक 2024 तक दुनिया में 1.5 टेरावॉट से अधिक सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की जा चुकी है, जो 2020 की तुलना में दोगुनी है और करोड़ों घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
यह भी सामने आया है कि लिथियम-आयन बैटरियों की कीमत 2010 से अब तक 89 फीसदी गिर चुकी है। इसके चलते सौर ऊर्जा को बैटरियों में स्टोर कर जब चाहें इस्तेमाल करना संभव हो गया है।
दुनिया में सौर ऊर्जा अब बिजली का सबसे सस्ता स्रोत बन गई है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ सरे द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आया है कि जिन देशों में अच्छी धूप खिलती है, वहां एक यूनिट बिजली पैदा करने की लागत घटकर महज दो रुपए (करीब 0.02 पाउंड) रह गई है।
देखा जाए तो सौर ऊर्जा उत्पादन की यह लागत बिजली के अन्य स्रोतों जैसे कोयला, गैस या पवन ऊर्जा से भी सस्ती है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनर्जी एंड एनवायरमेंट मैटेरियल्स में प्रकाशित हुए हैं।
सरे विश्वविद्यालय के एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (एटीआई) के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) तकनीक दुनिया को स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ते कदमों की मुख्य ताकत बन गई है।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर रवि सिल्वा ने इस बारे में जानकारी देते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "अब सौर ऊर्जा इतनी सस्ती हो गई है कि ब्रिटेन जैसे देश में भी, जो भूमध्य रेखा से 50 डिग्री उत्तर में स्थित है, यह बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन का सबसे किफायती तरीका बन चुकी है।" उन्होंने बताया कि 2024 तक दुनिया में 1.5 टेरावॉट से अधिक सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की जा चुकी है, जो 2020 की तुलना में दोगुनी है और करोड़ों घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
प्रोफेसर सिल्वा का कहना है, “अब सौर तकनीक दूर की कौड़ी नहीं रही, बल्कि यह कम-कार्बन और ऊर्जा के सतत भविष्य की मजबूत नींव बन चुकी है।“
सस्ती बैटरियां बनीं सहारा
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि लिथियम-आयन बैटरियों की कीमत 2010 से अब तक 89 फीसदी गिर चुकी है। इसके चलते सौर ऊर्जा को बैटरियों में स्टोर कर जब चाहें इस्तेमाल करना संभव हो गया है।
इससे सौर ऊर्जा और बैटरी वाले सिस्टम (सोलर-प्लस-स्टोरेज) की लागत अब गैस पावर प्लांट्स जितनी सस्ती हो गई है। ऐसे हाइब्रिड सिस्टम जिनमें सोलर पैनल और बैटरी दोनों शामिल होते हैं, अब कई देशों में आम हो गए हैं।
ये दिन में बनी सौर ऊर्जा को स्टोर कर जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करने की सुविधा देते हैं, जिससे यह और अधिक भरोसेमंद हो जाते हैं। इससे बिजली की उपलब्धता लगातार बनी रहती है।
कुछ चुनौतियां अब भी हैं बरकरार
हालांकि, अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कुछ चुनौतियों की ओर भी इशारा किया है खासकर मौजूदा बिजली नेटवर्क से बढ़ती सौर ऊर्जा को जोड़ना अब एक बड़ी चुनौती बन चुका है। कैलिफोर्निया और चीन जैसे क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के भारी उत्पादन के कारण बिजली ग्रिड पर दबाव बढ़ गया है और जब आपूर्ति मांग से अधिक होती है, तो ऊर्जा बर्बाद हो जाती है।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता डॉक्टर एहसान रेजाई का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बढ़ती सौर ऊर्जा को बिजली नेटवर्क से कैसे जोड़ा जाए। इसके लिए स्मार्ट ग्रिड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित पूर्वानुमान और क्षेत्रों के बीच मजबूत कनेक्शन जरूरी होंगे।“
प्रोफेसर रवि सिल्वा के मुताबिक ऊर्जा भंडारण और स्मार्ट ग्रिड तकनीक के एकीकरण के साथ अब सौर ऊर्जा भरोसेमंद, सस्ती और बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम हो गई है। पेरोव्स्काइट सोलर सेल्स जैसी नई सामग्री से बिजली उत्पादन को 50 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है।
अच्छी बात यह है कि इसके लिए अतिरिक्त जमीन की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
हालांकि साथ ही विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यह प्रगति लंबे समय तक नीतिगत समर्थन पर निर्भर करेगी। अमेरिका का इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट, यूरोप का आरईपावरईयू प्लान और भारत की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) इस दिशा में उठाया सार्थक कदम हैं।
प्रोफेसर सिल्वा का यह भी कहना है “स्पष्ट नीतियां, सतत निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ही दुनिया को स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा प्रणाली की ओर तेजी से ले जा सकते हैं।“