धान के भूसे की बाजार कीमत गाय के गोबर के समान ही है, लेकिन इसकी बायोगैस उत्पादकता अधिक है, जिसके कारण गाय के गोबर की तुलना में लगभग चार गुना कम धान के भूसे की जररूत पड़ती है फोटो साभार: आईस्टॉक
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सीबीजी प्लांट लक्ष्य: 5000 में से सिर्फ 97 चालू, क्या सरकार हासिल कर पाएगी लक्ष्य?

Dayanidhi

पहले भाग में हमने कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट में किए गए आकलन के आधार पर, उत्तर प्रदेश में इसकी संभावना व चुनौतियों का जिक्र किया था।

पूरे देश में सीबीजी की संभावनाओं की बात करें तो, 2070 तक भारत को कुल-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) में तेजी से और भारी कटौती करनी होगी। जिसमें मीथेन (सीएच4) पर विशेष गौर किया जाना जरूरी है। इन कटौतियों के बिना कुल शून्य उत्सर्जन उद्देश्य को हासिल करना बहुत कठिन होगा।

रिपोर्ट कहती है कि मीथेन में कटौती का एक आसान तरीका कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) या बायो-सीएनजी में निवेश करना है, क्योंकि इसमें 90 प्रतिशत से अधिक मीथेन होती है। कचरे से मीथेन सीधे वातावरण में चली जाती है जबकि, सीबीजी के माध्यम से इसे ऊर्जा के प्रारूप में बदला जा सकता है। इस तरह उत्सर्जन पर भी लगाम लगेगी और विदेशों से गैस के आयात में भी कमी आएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में कुल शून्य उत्सर्जन परिदृश्य में, बायोमास का पारंपरिक उपयोग चरणबद्ध तरीके से खत्म हो रहा है, जबकि आधुनिक जैव ऊर्जा का उपयोग 2050 तक दोगुना से भी अधिक हो सकता है।

यह वृद्धि जीवाश्म ईंधन के सीधे विकल्प के रूप में काम करने की इसकी क्षमता के कारण है। कचरे की आपूर्ति में निवेश और तकनीकी व्यावसायिक तौर पर इसे संचालित करने से इसमें भारी वृद्धि हो सकती है।

बड़ी मात्रा में बायोमास संसाधन औद्योगिक, परिवहन और बिजली क्षेत्रों में आधुनिक जैव ऊर्जा के उपयोग में इजाफे से यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जान डाल सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बायोएनर्जी का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में होता है, लेकिन यातायात के क्षेत्र में इसकी अहम भूमिका है। तरल ईंधन संबंधी यातायात की मांग में बायोएनर्जी की हिस्सेदारी वर्तमान में चार प्रतिशत से बढ़कर 2030 तक 10 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है। यह उछाल मुख्य रूप से यात्री कारों, भारी-भरकम ट्रकों, लंबी दूरी के विमानन और अंतरराष्ट्रीय शिपिंग में बढ़ती मांग के कारण है।

क्या कहता है सीबीजी उत्पादन का अर्थशास्त्र?

नगरीय ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) सबसे अनुकूल आर्थिक नजरिया सामने लाता है, जो अधिकतम लाभ का (70 फीसदी ) प्रदान करता है, क्योंकि यह बिना कुछ खर्च किए उपलब्ध है, बशर्ते इसे स्रोत पर ही अलग कर दिया जाए।

जब राजस्व उत्पाद के रूप में केवल गैस पर गौर किया जाता है, तो प्रेसमड, चीनी निर्माण प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाला कचरा, एक अधिक व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आता है। यह एमएसडब्ल्यू के बाद दूसरे स्थान पर है और 43 फीसदी का शुद्ध मार्जिन हासिल किया जा सकता है।

गैस के साथ-साथ जैविक खाद और कार्बन क्रेडिट दोनों को ध्यान में रखते हुए, धान का भूसा प्रेसमड से बेहतर है, जिससे 76 फीसदी का शुद्ध मार्जिन मिलता है। इसकी तुलना में, प्रेसमड 64 फीसदी है और नेपियर घास 46 फीसदी का मार्जिन दर्ज करती है।

जब किण्वित जैविक खाद (एफओएम) को गैस के अतिरिक्त उत्पाद के रूप में बेचा जाता है तो सीबीजी संयंत्रों के शुद्ध मार्जिन में उल्लेखनीय सुधार होता है।

सीबीजी उत्पादन के लिए गाय के गोबर का उपयोग करना फायदा कमाने के मामले में चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसकी लागत 1.5 रुपये प्रति किलोग्राम है।

हालांकि धान के भूसे की बाजार कीमत गाय के गोबर के समान ही है, लेकिन इसकी बायोगैस उत्पादकता अधिक है, जिसके कारण गाय के गोबर की तुलना में लगभग चार गुना कम धान के भूसे की जररूत पड़ती है। यदि गोबर बिना किसी कीमत के हासिल किया जाता है तो इससे फायदा होने की संभावना है।

यदि प्लांट संचालक को 20 किलोमीटर की दूरी तक गैस को दूसरी जगह पहुंचना पड़ता है, तो प्लांट की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है, जिससे शुद्ध मार्जिन में कमी आती है। इसलिए, गैस ग्रिड कनेक्शन के माध्यम से फैक्ट्री आउटलेट पर गैस को उतारना जरूरी हो जाता है।

सतत योजना के अंतर्गत सरकार ने पूरे देश में कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) के 5000 प्लांट लगाने का लक्ष्य रखा था, सरकार का गोबर्धन पोर्टल देखें तो, इनमें से 676 पंजीकृत है और मात्र 97 चालू हालत में हैं। हालांकि यह लक्ष्य 2024 तक का था, यदि देश भर में कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) प्लांट लगाने की यही गति रही तो लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा।

अगले भाग में पढ़ें “कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की सिफारिशें”