जलवायु

अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा, 175 वर्षों के इतिहास में एशिया, अफ्रीका, यूरोप ने किया अपने सबसे गर्म जुलाई का सामना

Lalit Maurya

वैश्विक तापमान में होते इजाफे का सिलसिला लगातार जारी है। जलवायु में बढ़ते इंसानी हस्तक्षेप की वजह से पृथ्वी का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है। यही वजह है कि हर गुजरते दिन के साथ इसके नए सबूत सामने आते जा रहे हैं। लेकिन विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद मानव प्रजाति इस समस्या को लेकर उतनी गंभीर नहीं, जितनी होनी चाहिए।

बढ़ते तापमान का ऐसा ही सबूत एक बार सामने आया है, जब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि दुनिया ने 2024 में अब तक के अपने सबसे गर्म जुलाई का सामना किया है। इस बारे में नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि इस साल अब तक का सबसे गर्म जुलाई का महीना रिकॉर्ड किया गया।

जब बढ़ता तापमान 20वीं सदी के दौरान जुलाई में दर्ज वैश्विक औसत तापमान (15.8 डिग्री सेल्सियस) से 1.21 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। आंकड़ों के मुताबिक यह लगातार 14वां महीना है जब बढ़ते तापमान ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। मतलब की बढ़ते तापमान के रिकॉर्ड बनाने का यह सिलसिला पिछले 14 महीनों से लगातार जारी है। बता दें कि जलवायु रिकॉर्ड के यह आंकड़े पिछले 175 वर्षों के जलवायु इतिहास पर आधारित हैं।

इतना ही नहीं एनसीईआई ने रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि एशिया, अफ्रीका और यूरोप के लिए भी यह अब तक का सबसे गर्म जुलाई रहा। वहीं उत्तरी अमेरिका ने भी अपने दूसरे सबसे गर्म जुलाई का सामना किया है।

गौरतलब है कि इससे पहले यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने पुष्टि की थी कि जुलाई 2024 का महीना जलवायु इतिहास का अब तक का दूसरा सबसे गर्म जुलाई का महीना था। हालांकि हाल ही में कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने जानकारी दी थी कि 22 जुलाई 2024 को धरती ने अपने जलवायु रिकॉर्ड के सबसे गर्म दिन का अनुभव किया था।

हालात यह थे कि 22 जुलाई को तापमान 17.16 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। वहीं 23 जुलाई 2024 को भी तापमान करीब-करीब उतना (17.15 डिग्री सेल्सियस) ही रहा। बता दें कि इससे पहले अब तक के सबसे गर्म दिन का यह रिकॉर्ड छह जुलाई 2023 के नाम दर्ज था, जब तापमान 17.08 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जहां कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस वैश्विक स्तर पर सतह के पास हवा के तापमान के आधार पर बढ़ते तापमान की गणना करती हैं। वहीं दूसरी तरफ एनसीईआई द्वारा जारी आंकड़े जमीन और समुद्र दोनों के तापमान के आधार पर दर्ज किए जाते हैं। दोनों ही संगठनों द्वारा जारी रिकॉर्ड में कुछ मतभेद हैं, लेकिन इसके बावजूद एक बात तो स्पष्ट है कि हमारी धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है। जो पर्यावरण के साथ-साथ इंसानों के लिए भी सुरक्षित नहीं है।

2024 के सबसे गर्म वर्ष होने की है 77 फीसदी आशंका

नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी है कि पिछले महीने, अलास्का, दक्षिणी लेटिन अमेरिका, पूर्वी रूस, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी अंटार्कटिका को छोड़कर, दुनिया के ज्यादातर भू-भाग का तापमान औसत से अधिक रहा।

इसी तरह आर्कटिक ने जहां अपने तीसरे सबसे गर्म जुलाई का सामना किया, वहीं अंटार्कटिक के लिए यह पांचवा सबसे गर्म जुलाई का महीना था।

ऐसा नहीं है कि बढ़ते तापमान केवल जमीन को ही गर्म कर रहा है, समुद्र भी इससे सुरक्षित नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर समुद्रों की सतह का तापमान भी रिकॉर्ड में दूसरा सबसे गर्म रहा। हालांकि इसके साथ ही इसने लगातार 15 महीनों से समुद्र के बढ़ते तापमान के बनते रिकॉर्ड के सिलसिले को भी थाम दिया। आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में समुद्री की सतह का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा रहा, जबकि उष्णकटिबंधीय और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत के कुछ हिस्सों में तापमान औसत से नीचे रहा।

इसी तरह यदि जनवरी से जुलाई के बीच सात महीनों की बात करें तो इस दौरान भी बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया है। जनवरी से जुलाई की यह अवधि जलवायु इतिहास की अब तक की सबसे गर्म अवधि थी, जब बढ़ता तापमान 20वीं सदी में इस अवधि के दौरान दर्ज औसत तापमान से 1.28 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया।

इसी तरह अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका ने भी जनवरी से जुलाई की अब तक की अपने सबसे गर्म अवधि का सामना किया है। वहीं आंकड़ों के मुताबिक एशिया के लिए यह चौथी सबसे गर्म जनवरी से जुलाई की अवधि थी, जबकि उत्तरी अमेरिका के लिए यह दूसरी सबसे गर्म अवधि रही। इसी तरह ओशिनिया के लिए यह जनवरी से जुलाई के बीच आठवीं सबसे गर्म अवधि रही।

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने साल 2024 को लेकर भी दावा किया है कि इस बात की बहुत अधिक आशंका है कि साल 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष हो सकता है। बता दें कि अब तक के सबसे गर्म वर्ष होने का यह रिकॉर्ड 2023 के नाम दर्ज है।

एनसीईआई ने अपनी रिपोर्ट में 2024 के सबसे गर्म वर्ष होने की 77 फीसदी आशंका जताई है। वहीं साथ ही कहा है कि इस बात की सौ फीसदी आशंका है कि 2024 अब तक के पांच सबसे गर्म वर्षों में शुमार होगा। यह आंकड़े स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि हमारी धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है। जो न केवल इंसानों बल्कि दूसरे जीवों का भी काल बन रही है।

जुलाई में भारी बारिश और बाढ़ की कई भीषण घटनाएं सामने आई है। फिलीपींस में हुई ऐसी ही एक त्रासदी में मानसूनी बारिश और गैमी तूफान के चलते एकाएक बाढ़ आ गई, जिसमें 30 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। ऐसा ही कुछ दक्षिण पश्चिम इथियोपिया में सामने आया जब भारी बारिश और भूस्खलन ने 200 से ज्यादा जिंदगियों को निगल लिया था। इसी तरह चीन और ताइवान में भी इस तूफान ने भारी तबाही मचाई थी।

इसी तरह 30 जुलाई को भारत में केरल के वायनाड में भारी बारिश और बाढ़ के बाद भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई थी। इस आपदा में सैकड़ों लोग मारे गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि यह घटना जलवायु में आते बदलावों का ही परिणाम है।

रिपोर्ट में ध्रुवों पर जमा बर्फ के बारे में जानकारी देते हुए लिखा है कि जुलाई में समुद्री बर्फ की सीमा औसत से कम रही। आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में समुद्री बर्फ की सीमा 46 वर्षों में दूसरी सबसे कम रही, जब इनका कुल विस्तार 84.9 लाख वर्ग मील था। यदि 1991 से 2020 के औसत की तुलना में देखें तो यह 10.9 लाख वर्ग मील कम रही।

यदि आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ के विस्तार की बात करें तो वो औसत से 3.3 लाख वर्ग मील कम रहा, जबकि अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 7.6 लाख वर्ग मील नीचे रहा। इसी तरह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या औसत से कम रही। रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2024 में सात नामित तूफान विकसित हुए, जो 1991 से 2020 के औसत से कम है। इस दौरान अटलांटिक में दो तूफान आए थे, वहीं पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में तीन जबकि पश्चिमी प्रशांत में दो तूफान देखे गए।