जलवायु परिवर्तन या संसाधनों की कमी जैसे पर्यावरणीय खतरे लोगों को विस्थापित करके या सीमित संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा पैदा करके संघर्षों को बढ़ाने का काम कर इन्हें और बदतर कर सकते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों पर पर्यावरणीय नुकसान और संघर्ष का सबसे कम असर

शोध का उद्देश्य उन देशों की मदद करना है जो जलवायु में होने वाले बदलाव के लिए सबसे कम जिम्मेवार हैं और फिर भी पर्यावरणीय खतरों और संघर्ष से सबसे अधिक पीड़ित हैं।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं, जबकि सबसे कम दोषी देश सबसे बड़े खतरों का सामना कर रहे हैं, जिसमें बढ़ती हिंसक संघर्ष की आशंका भी शामिल है

नोट्रे डेम विश्वविद्यालय के शोधकर्ता द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के ये निष्कर्ष संघर्ष और पर्यावरण के बीच संबंधों की पारंपरिक समझ को चुनौती देते हैं। यह ग्लोबल साउथ के देशों को असमान रूप से नुकसान पहुंचाने वाली असमानताओं को सामने लाते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि नए निष्कर्ष पर्यावरण और संघर्ष के इर्द-गिर्द बातचीत को फिर से परिभाषित करने की जरूरत को सामने लाते हैं। शोध का उद्देश्य उन देशों की मदद करना है जो जलवायु में होने वाले बदलाव के लिए सबसे कम जिम्मेवार हैं और फिर भी संसाधनों का दोहन, पर्यावरणीय खतरों और संघर्ष से सबसे अधिक पीड़ित हैं।

यह अध्ययन पारिस्थितिकी स्थिरता और शांति के बीच संबंध का मूल्यांकन करने वाले वर्तमान शोध में कमियों को सामने लाता है। यह साक्ष्य-आधारित नीतियों को डिजाइन करने के लिए महत्वपूर्ण है जो दुनिया भर में असमानताओं को हल करती हैं और मानव गरिमा का समर्थन करती हैं।

शोध के मुताबिक, पर्यावरणीय खतरों और संघर्ष के बीच संबंध अच्छी तरह से दर्ज किए गए है। संघर्ष अक्सर पर्यावरणीय गिरावट की ओर ले जाता है और संसाधनों को कम करता है। जलवायु परिवर्तन या संसाधनों की कमी जैसे पर्यावरणीय खतरे लोगों को विस्थापित करके या सीमित संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा पैदा करके संघर्षों को बढ़ाने का काम कर इन्हें और बदतर कर सकते हैं।

कुल मिलाकर पर्यावरणीय खतरे भारी संघर्ष से जुड़े हैं और सामाजिक मानदंड और संस्थाएं इस संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं।

पर्यावरणीय संवेदनशीलता और संघर्ष की घटनाएं आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं

पिछले शोधों ने सुझाव दिया था कि इसका उलटा भी सच हो सकता है कि पारिस्थितिक स्थिरता और शांति के उच्च स्तर समान रूप से आपस में जुड़े हुए हैं। लेकिन नए अध्ययन में इसके ठीक विपरीत पाया गया।

नए शोध में एक बड़ा अंतर यह है कि यह स्थिरता और शांति दोनों को कैसे मापता है। पिछले अध्ययनों में स्थिरता और शांति के पारंपरिक उपायों का इस्तेमाल किया गया है और ये उपाय अमीर देशों में दोनों विशेषताओं को अधिक आंकते हैं। लेकिन नए अध्ययन में अधिक समग्र उपायों का इस्तेमाल किया गया है जो कुल पारिस्थितिक पदचिह्न और अंतरराज्यीय संघर्षों में भागीदारी को ध्यान में रखते हैं जो अन्य देशों को नुकसान पहुंचाते हैं।

कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि परिणाम एक अधिक गहन और सटीक मूल्यांकन का था जिसने दुनिया भर की असमानताओं को उजागर किया।

यह मूल्यांकन करते हुए कि सबसे अधिक शांति कहां है, परिणाम इस सवाल को पूछने और जवाब देने की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं कि ग्रह की सीमाओं के भीतर सभी के लिए एक अच्छा जीवन कैसे हासिल किया जाए, या इस मामले में, सभी के लिए व्यापक रूप से स्थायी शांति हो।

हालांकि शोध के परिणाम बताते हैं कि पारिस्थितिक स्थिरता और शांति सकारात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़ें नहीं हैं, यह संबंध जरूरी नहीं है। पारिस्थितिक रूप से स्थायी शांति संभव है। अध्ययन के निष्कर्ष अतिरिक्त कार्य के लिए दिशा-निर्देशों का सुझाव देते हैं जो प्रभावी शांति और स्थिरता नीतियों के लिए और सबूत प्रदान कर सकते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि भविष्य के शोध को इस बात पर गौर करना चाहिए कि संघर्ष के खतरों को बाहर किए बिना सभी के लिए व्यापक रूप से स्थायी शांति कैसे हासिल की जा सकती है और उसका आनंद कैसे लिया जा सकता है। क्योंकि दुनिया भर में संघर्ष और पर्यावरणीय खतरों की दरें बढ़ती जा रही हैं, इसलिए इस विरोधाभास से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीके की खोज करना और इसे तय करना जरूरी है।