जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों और परमाणु ऊर्जा वाली तकनीकों को अपनाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सोलर जियो-इंजीनियरिंग या सौर भू-इंजीनियरिंग धरती को जल्दी से ठंडा कर सकती है। दुनिया को उत्सर्जन को सीमित करने और वातावरण से कार्बन को हटाने के प्रयासों को पूरी तरह से सफल बना सकती है।
लेकिन इसके कुछ खतरे भी हैं, जिसमें खराब वायु गुणवत्ता या कम वायुमंडलीय ओजोन शामिल हैं, ये दोनों ही अपने आप में गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
जॉर्जिया टेक स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी की अनुवाई में कि गए एक नए अध्ययन में कहा गया है कि उन खतरों पर और विचार किया जाना चाहिए, सौर भू-इंजीनियरिंग जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान की वजह से होने वाली मौतों में कमी ला सकती है, अर्थात हर साल चार लाख लोगों की जान बच सकती है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि एक अहम सवाल यह है कि सौर भू-इंजीनियरिंग से जलवायु संबंधी खतरों में कमी इसके उपयोग से होने वाले अतिरिक्त खतरों की तुलना में कितना है। यह अध्ययन सौर भू-इंजीनियरिंग के खतरों और फायदों को मापने का पहला कदम है। यह दिखाता है कि जिन खतरों पर विचार किया है, उनके लिए जीवन बचाने की क्षमता प्रत्यक्ष खतरों से अधिक है।
क्या होती है सोलर जियो-इंजीनियरिंग?
शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने स्ट्रेटोस्फेरिक एयरोसोल इंजेक्शन (एसएआई) नामक जलवायु परिवर्तन को कम करने या शमन रणनीति का अध्ययन किया, जो सौर भू-इंजीनियरिंग का एक प्रकार है, जिसमें ऊपरी वायुमंडल में छोटे परावर्तक कणों का छिड़काव किया जाता है। फिर वे कण सूर्य के कुछ प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में भेज देंगे और पृथ्वी को ठंडा करने में मदद करेंगे।
सौर भू-इंजीनियरिंग मृत्यु दर को कितना प्रभावित कर सकती है, यदि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से औसत तापमान में 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि और वर्तमान में दुनिया में होने वाले जलवायु परिवर्तन के समान नजरिए को मानते हुए, मृत्यु दर को कितना प्रभावित किया है, यह देखने के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल और ऐतिहासिक आंकड़ों का उपयोग किया।
उन्होंने पाया कि सौर भू-इंजीनियरिंग के साथ दुनिया भर में तापमान को एक डिग्री सेल्सियस तक कम करने से हर साल चार लाख लोगों की जान बच सकती है, जो वायु प्रदूषण और ओजोन क्षरण से सौर भू-इंजीनियरिंग के कारण स्वास्थ्य को होने वाले प्रत्यक्ष खतरों के कारण होने वाली मौतों से 13 गुना अधिक है। इसका मतलब है कि सौर भू-इंजीनियरिंग के कारण होने वाली ठंडक से बचाई गई जानों की संख्या सौर भू-इंजीनियरिंग के ज्ञात खतरों से होने वाली मौतों की संख्या से 13 गुना अधिक होगी।
अध्ययन में कहा गया है कि गर्म, गरीब क्षेत्रों में इनमें से कई मौतें टाली जा सकती हैं। ठंडे, समृद्ध क्षेत्रों में वास्तव में ठंड से संबंधित मौतों में वृद्धि हो सकती है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से चेतावनी देते हुए कहा गया है कि यह अध्ययन सौर भू-इंजीनियरिंग के वादे और खतरे को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक अहम शुरुआती कड़ी है, लेकिन यह तकनीकी खतरों और फायदों के व्यापक मूल्यांकन से अभी बहुत दूर है।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि उनके मॉडल एरोसोल वितरण, जनसंख्या और आय वृद्धि और अन्य कारणों के बारे में आदर्श मान्यताओं पर आधारित हैं। वे सौर भू-इंजीनियरिंग में शामिल सभी वास्तविक दुनिया की जटिलताओं को भी नहीं पकड़ सकते हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि उनका अध्ययन सौर भू-इंजीनियरिंग के सभी खतरों से नहीं निपट सकता है, जैसे कि पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाला प्रभाव, वैश्विक राजनीति, या संभावना है कि सरकारें राजनीतिक रूप से कठिन उत्सर्जन कटौती में देरी करने के लिए तकनीक पर निर्भर होंगी।
फिर भी शोधकर्ताओं का कहना है कि अध्ययन से पता चलता है कि कई क्षेत्रों के लिए, सौर भू-इंजीनियरिंग अकेले उत्सर्जन में कमी की तुलना में जीवन बचाने में अधिक प्रभावी हो सकती है और इसे मिश्रण में रखने लायक है क्योंकि दुनिया हमारे गर्म होते ग्रह को ठंडा करने के सबसे अच्छे तरीकों की लगातार खोज रही है।
शोध में कहा गया है कि जलवायु संकट का कोई सटीक समाधान नहीं है। सौर भू-इंजीनियरिंग में जोखिम तो है, लेकिन यह वास्तविक समस्या को कम भी कर सकता है, इसलिए इस तकनीक के बारे में किसी भी संभावित भविष्य के निर्णय संबंधी जानकारी के लिए खतरों की तुलना फायदों से कैसे की जाती है, इसे बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।