बाढ़ और अतिवृष्टि की मार झेलने वाले पंजाब की तीन प्रमुख नदियों के किनारे डाउन टू अर्थ ने छह जिले गुरुदासपुर, अमृतसर, तरनतारन, फिरोजपुर, फजिल्का, लुधियाना के गांवों की यात्रा की। इस यात्रा का वृत्तांत सात किस्तों में, पहली कड़ी यहां क्लिक करें, यह दूसरी कड़ी…
बाढ़ की पीड़ा शायद किसी गृहयुद्ध जैसी ही दुखद और त्रासद होती है। पंजाब जिसे देश का फूड बास्केट भी कहा जाता है, वहां बीते सात वर्षों में तीन बार आई बाढ़ ने किसानों को घुटनों के बल ला दिया है। इस बार महज 10-15 दिन के सैलाब ने तीन करोड़ की आबादी वाले इस राज्य के 2520 गांवों को डुबो दिया। खेती-किसानी से जुड़े करीब 400,000 लोग सीधा प्रभावित हुए। करीब 10 हजार कच्चे-पक्के घर क्षतिग्रस्त हो गए और 25,000 लोगों को अपना घर और खेत छोड़कर भागना पड़ा। 58 जानें गईं, 38 लोग घायल हुए और पांच लोग लापता हैं।
सबसे खतरनाक यह हुआ कि करीब सात लाख हेक्टेयर तक पानी फैला और 202094.701 हेक्टेयर खेती योग्य जमीनों पर लगभग तैयार खड़ी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। करीब 1000 बड़े जानवर व 35000 पोल्ट्री का नुकसान हो गया। अब जब पानी उतरना शुरू हुआ तो अब डूब क्षेत्रों के आस-पास मौजूद खेत गाद और रेत के टीले बन गए हैं।
गुरुदारपुर में शिकार गांव के जैविक खेती करने वाले किसान तेजप्रताप सिंह एक लाइन में इस वीभत्स स्थिति को समझाते हैं, “जलवायु परिवर्तन और सरकारी कुप्रबंधन दोनों के खामियाजे की इससे ज्यादा बड़ी मिसाल क्या हो सकती है।” वह आगे कहते हैं, “यह भी समझ लेना चाहिए कि इसकी सबसे बड़ी मार भी किसान और मजदूरों पर ही पड़नी है।”
रावी नदी के तट से करीब 12 किलोमीटर दूर गुरुदासपुर के हरदोवाल गांव में अपने बर्बाद हो चुके खेतों का जायजा ले रहे ज्योबनजीत सिंह कहते हैं,“घुटने भर मिट्टी की गाद से दलदल हो चुके खेतों में टैंक युक्त कंबाईन मशीन बढ़िया काम कर सकती है, ट्रैक्टर ऐसे खेतों में नहीं दौड़ाए जा सकते।”
सिंह, कंबाईन से निकलते अनाज को मुटठी में लेकर दिखाते हुए कहते हैं, “यह देखिए यह धान के दाने अब किस काम के रह गए हैं। दाने काले पड़ चुके हैं, इसका एक रूपए भी मिलना मुश्किल है।”
हरदोवाल गांव में ही अपने डूबे और कीचड़ से सने हुए खेतों को निहार रही 60 वर्षीय दरबीर कौर कहती हैं, “यह बाढ़ 1988 से काफी खतरनाक थी। वह, त्रासदी को याद करते हुए कहती हैं, 25 अगस्त को रात 12 बजे अचानक सैलाब आया। हमें घरों की छत पर भागना पड़ा। कोई अनाउसमेंट भी नहीं हुई थी। इतनी दूर तक पानी आ जाएगा, हम तो यकीन भी नहीं कर रहे थे। अब भी घरों में और इन खेतों में दो फुट तक की गाद भरी है।”
हरदोवाल गांव के एक तरफ रेलवे लाइन है दूसरी तरफ स्टेट हाईवे। इसके चलते आस-पास के सभी गांव भी जलमग्न हैं। गन्ने और धान की फसलें पानी में अब भी डूबी हुई हैं। बाढ़ ने पंजाब में बहुत कुछ बदल दिया है।
अमृतसर में किसान गुन्नुर सिंह कहते हैं, पहले पंजाब से कंबाईन मशीनें हरियाणा और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तक जाया करती थीं, यह पहली बार है जब उत्तर प्रदेश से टैंक युक्त कंबाईन मशीन पंजाब पहुंची हैं। इन दिनों यही हमारे बर्बाद हो चुके खेतों का सहारा बन रही है।
तीन एकड़ के खेतिहर ज्योबनजीत सिंह उंगलियों पर हिसाब जोड़ते हैं, “एक एकड़ खेत में करीब 22 हजार रुपए की लागत आई थी। अब छह हजार रुपए प्रति एकड़ यह टैंक वाली कंबाईन हार्वेस्टिंग मशीन ले रही है। एक एकड़ में सीधा-सीधा 28 हजार रुपए का खर्चा है। अभी तक कोई गिरदावरी नहीं हुई। 100 फीसदी नुकसान महज 20 हजार रुपए मुआवजे की घोषणा है। वह मिलेगा या नहीं, इसका भी कुछ पता नहीं है।”
ज्योबनजीत सिंह खेतों में मौजूद गाद की मिट्टी उठाकर कहते हैं कि यह कौन खरीदेगा? “जिसदा खेत, उसदा रेत” नारे में ही अच्छा है। यह शुद्ध रूप में रेत कहां है, यह मिट्टी है और यह दलदल रबी सीजन तक तो नहीं सूखेगा। हम गेहूं इस बार नहीं लगा पाएंगे।
सिंह बाढ़ की मार से पूरी तरह टूट चुके हैं। हमारे पशु भूखे हैं उनके पास चारा तक नहीं है। रिश्तेदारों से चारा लेकर पशुओं को जिंदा रख रहे हैं। कोई सरकारी सहायता नहीं है। मेरे पास आठ जानवर हैं। इनमें एक गाय दो बकरी शामिल हैं। यह पूरा गांव तबाह हो चुका है।
किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह उस गाद का क्या करें जहां सिर्फ 95 फीसदी मिट्टी और पांच फीसदी ही रेत है। ऐसे किसान पसोपेश में हैं। न ही उनके पास आर्थिक संसाधन है कि वह उसे हटा पाएंगे और न ही उनके पास कोई और दूसरा रास्ता।
इसने रबी सीजन पर संकट खड़ा कर दिया है। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर नाम न जाहिर करने के शर्त पर कहते हैं कि पंजाब में इस बार रबी सीजन में न सिर्फ गेहूं की बिजाई में देरी होगी बल्कि उपज में बड़ी कमी आएगी। साथ ही उन किसानों की भी कमर टूट गई है जो धान और गेहूं के बीच में सब्जी या कोई अन्य फसल ले रहे थे।
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