आर्कटिक पर्माफ्रोस्ट गर्म होने पर सीओ2 अवशोषण बढ़ता है, लेकिन साथ ही मीथेन (सीएच4) उत्सर्जन भी तेज कर देता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

पिघलता पर्माफ्रॉस्ट: धरती के भविष्य पर मंडराता जलवायु संकट: अध्ययन

अध्ययन में कहा गया है कि तापमान वृद्धि से पर्माफ्रोस्ट का संतुलन बिगड़ सकता है और जलवायु परिवर्तन तेज हो सकता है।

Dayanidhi

  • पर्माफ्रोस्ट दुनिया भर की भूमि सतह का 17 फीसदी हिस्सा है और दुनिया का एक-तिहाई मिट्टी-कार्बन इसमें संग्रहित है।

  • आर्कटिक पर्माफ्रोस्ट गर्म होने पर सीओ2 अवशोषण बढ़ता है, लेकिन साथ ही मीथेन (सीएच4) उत्सर्जन भी तेज कर देता है।

  • अल्पाइन पर्माफ्रोस्ट में गर्मी से मिट्टी और सूखती है, पौधों का कार्बन अवशोषण घटता है और उत्सर्जन बढ़ता है।

  • नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) का उत्सर्जन दोनों क्षेत्रों में बढ़ता है, यह सीओ2 से 273 गुना ज्यादा शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।

  • तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना बेहद जरूरी है, वरना पर्माफ्रोस्ट जलवायु संकट को तेज कर देगा।

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि पर्माफ्रोस्ट एक विशाल "कार्बन भंडार" की तरह है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब जलवायु परिवर्तन और दुनिया भर में बढ़ती गर्मी के कारण यह पर्माफ्रोस्ट पिघलने लगता है।

धरती की सतह के नीचे का वह हिस्सा, जो कम से कम दो सालों तक पूरी तरह जमा रहता है, पर्माफ्रोस्ट कहलाता है। यह आर्कटिक और ऊंचाई वाले ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों (अल्पाइन) में पाया जाता है। वर्तमान में यह दुनिया भर में भूमि सतह का लगभग 17 फीसदी हिस्से को कवर करता है और इसमें दुनिया की मिट्टी में संग्रहित कार्बन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा जमा है।

पिघलते पर्माफ्रोस्ट का खतरा

पर्माफ्रोस्ट में जमी हुई मिट्टी और उसमें बंद जैविक पदार्थ जब पिघलते हैं, तो ये धीरे-धीरे सड़ने-गलने लगते हैं और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), मीथेन (सीएच4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) जैसी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें छोड़ते हैं। सीओ2 सामान्य लेकिन बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होती है। सीएच4 की गर्मी बढ़ाने की क्षमता सीओ2 से लगभग 28 गुना अधिक है। एन2ओ तो और भी खतरनाक है, जिसका प्रभाव 273 गुना ज्यादा है।

यदि इन गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ता है, तो यह “टिपिंग पॉइंट” साबित हो सकता है, यानी ऐसा मोड़ जहां से पृथ्वी की जलवायु में बदलाव अपरिवर्तनीय और तेज हो जाएगा।

आशा और चिंता दोनों

हाल ही में साइंस एडवांस में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस जटिल प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की कि क्या पर्माफ्रोस्ट का इलाका भविष्य में भी कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों को जमा करने वाले बने रहेंगे या नहीं।

चीन की इंस्टीट्यूट ऑफ एटमोस्फियरिक फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने उत्तरी गोलार्ध के पर्माफ्रोस्ट वाले इलाकों में किए गए 1,090 से अधिक प्रयोगों का विश्लेषण किया। इसमें सीओ2, सीएच4 और एन2ओ उत्सर्जन के आंकड़े शामिल थे।

अध्ययन में क्या मिला?

आर्कटिक पर्माफ्रोस्ट (उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र) यहां मिट्टी नम होती है और वनस्पति घनी होती है। तापमान लगभग दो डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर, पौधों द्वारा सीओ2 अवशोषण और बढ़ जाता है। लेकिन साथ ही, पानी से भरी मिट्टी में सीएच4 का उत्सर्जन भी तेज हो जाता है।

यानी यहां "कार्बन जमा" होने की क्षमता आंशिक रूप से बनी रहती है, लेकिन मीथेन का खतरा बड़ा है। पर्माफ्रोस्ट ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों की मिट्टी स्वाभाविक रूप से शुष्क होती है। तापमान बढ़ने पर मिट्टी और सूखती है, जिससे पौधों की प्रकाश-संश्लेषण क्षमता घट जाती है। जिसके कारण सीओ2 अवशोषण कम होता है और मिट्टी से कार्बन उत्सर्जन बढ़ जाता है। यह क्षेत्र तेजी से अपनी कार्बन जमा करने की क्षमता खो रहा है।

नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) उत्सर्जन

दोनों ही क्षेत्रों में तापमान वृद्धि से एन2ओ उत्सर्जन बढ़ता है। भले ही इसकी मात्रा कम हो, लेकिन इसकी क्षमता इतनी अधिक है कि यह जलवायु पर बड़ा असर डाल सकता है। पर्माफ्रोस्ट पिघलने से मिट्टी में नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ जाती है, जिससे एन2ओ उत्सर्जन और भी बढ़ सकता है।

जलवायु नीति और वैश्विक चेतावनी

अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाए, तो व्यापक स्तर पर पर्माफ्रोस्ट जलवायु में तेजी से बदलाव से बचा जा सकता है। लेकिन विशेष रूप से अल्पाइन पर्माफ्रोस्ट वाले इलाकों में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि ये क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील और असुरक्षित हैं।

यह खोज जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर - सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की उस चेतावनी को और मजबूत करती है, जिसमें कहा गया था कि पर्माफ्रोस्ट और जलवायु परिवर्तन का आपसी संबंध वैश्विक कार्बन बजट की सबसे बड़ी अनिश्चितताओं में से एक है।

अध्ययन के मुताबिक, आर्कटिक क्षेत्र अभी भी कार्बन सोखने की क्षमता बनाए रख सकता है, लेकिन मीथेन उत्सर्जन एक बड़ा खतरा है। अल्पाइन क्षेत्र अपनी कार्बन जमा करने की क्षमता खो रहा है और वहां तत्काल जलवायु-नीति की जरूरत है। नाइट्रस ऑक्साइड की थोड़ी भी वृद्धि जलवायु संकट को और गंभीर बना सकती है। तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखना जरूरी है, वरना पर्माफ्रोस्ट दुनिया भर में तापमान को और तेज कर देगा।

पर्माफ्रोस्ट धरती के लिए एक "सुप्त ज्वालामुखी" की तरह है। जब तक यह जमी हुई स्थिति में है, यह सुरक्षित है। लेकिन जैसे ही यह पिघलता है, इसमें जमा अरबों टन कार्बन और ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में फैल सकती हैं, जिससे जलवायु संकट और गहरा जाएगा

इसलिए वैज्ञानिकों की चेतावनी साफ है कि दुनिया भर में तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना ही होगा। विशेष रूप से अल्पाइन पर्माफ्रोस्ट वाले इलाकों की रक्षा करना बहुत जरूरी है। अन्यथा, जलवायु परिवर्तन की रफ्तार हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती है।