आर्कटिक में बर्फ का विस्तार इस साल के अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।
नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के अनुसार, 10 सितम्बर 2025 को आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार महज 46 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया।
रिकॉर्ड पर देखें तो यह दसवां मौका है जब आर्कटिक में जमा बर्फ इतनी कम दर्ज की गई है
आर्कटिक में बर्फ का सबसे छोटा विस्तार 2012 में रिकॉर्ड किया गया था।
अनुमान है कि आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में करीब चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है।
गर्मियों के अंत के साथ ही आर्कटिक में बर्फ का विस्तार इस साल के अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के अनुसार, 10 सितम्बर 2025 को आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार महज 46 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया।
रिकॉर्ड पर देखें तो यह दसवां मौका है जब आर्कटिक में जमा बर्फ इतनी कम दर्ज की गई है, जो करीब-करीब 2008 के बराबर है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि हर साल सर्दियों में यहां बर्फ जमती है और गर्मियों में पिघल जाती है। लेकिन पूरी तरह से कभी खत्म नहीं होती। यह चक्र लगातार चलता रहता है। आमतौर पर सितंबर में बर्फ का विस्तार सबसे कम होता है। हालांकि आंकड़ों के मुताबिक इस बार न्यूनतम रिकॉर्ड तो नहीं बना, लेकिन बर्फ में गिरावट का रुझान लगातार जारी है।
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के क्रायोस्फेरिक साइंसेज लैब के प्रमुख वैज्ञानिक नाथन कुर्ट्ज का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “इस साल का स्तर भले ही नया रिकॉर्ड न हो, लेकिन यह गिरावट की दिशा को ही दिखाता है।“
गौरतलब है कि नासा और अमेरिकी एजेंसी एनओएए के वैज्ञानिक 1978 से इस पर नजर रख रहे हैं। उनके अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से तब से अब तक समुद्री बर्फ का क्षेत्र लगातार घटता जा रहा है।
घटती बर्फ के लिए बढ़ता तापमान है जिम्मेवार
गौरतलब है कि आर्कटिक में बर्फ का सबसे छोटा विस्तार 2012 में रिकॉर्ड किया गया था। कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर स्थित नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर से जुड़े वैज्ञानिक वॉल्ट मेयर के अनुसार, यह गिरावट बढ़ते तापमान और असामान्य मौसम पैटर्न, दोनों के कारण हुई थी।
इस साल की स्थिति भी शुरूआत में 2012 जैसी ही लग रही थी। हालांकि अगस्त की शुरुआत में पिघलने की रफ्तार धीमी हो गई, लेकिन यह इतना नहीं था कि बर्फ घटने की साल दर साल जारी गिरावट को रोक सके।
वैज्ञानिक वॉल्ट मेयर के मुताबिक, “पिछले 19 सालों से आर्कटिक महासागर में बर्फ का न्यूनतम क्षेत्र 2007 से पहले के स्तर से कम ही रहा है। यह सिलसिला 2025 में भी जारी है।“
इस साल की शुरुआत में ही आर्कटिक में जमा बर्फ में भारी कमी देखी गई थी। 1981 से 2010 के औसत से तुलना करें तो जनवरी 2025 में समुद्री बर्फ का विस्तार 12.9 लाख वर्ग किलोमीटर कम था। यह दूसरा मौका था जब जनवरी में आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार इतना कम दर्ज किया गया है। इससे पहले जनवरी 2018 में समुद्री बर्फ का विस्तार इससे कम था। इस दौरान ग्रीनलैंड के आसपास के क्षेत्रों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक गर्म था।
उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों पर 19वीं सदी के उत्तरार्ध से तापमान करीब तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। देखा जाए तो तापमान में हो रही यह वृद्धि वैश्विक औसत की तुलना में कहीं अधिक है। अनुमान है कि आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में करीब चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है।
मानव गतिविधियों से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की वजह से ग्लोबल वार्मिंग का असर आर्कटिक में पहले ही दिखाई देने लगा था, लेकिन हाल के वर्षों में यहां की जलवायु में बदलाव कहीं ज्यादा तेज और स्पष्ट हो गया है।
2024 में दूसरी बार इतना गर्म रहा आर्कटिक
अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने पुष्टि की है कि पिछले साल आर्कटिक की सतह का तापमान अब तक का दूसरा सबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया था। दुनिया में बढ़ते तापमान के साथ-साथ ध्रुवों पर जमा बर्फ तेजी से पिघल रही है।
इसकी वजह से समुद्र कहीं ज्यादा गर्मी सोख रहे हैं। नतीजन हवा गर्म हो रही है, जो बर्फ को कहीं अधिक पिघलने में मदद कर रही है। नतीजन आर्कटिक क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहा है।
2023 में जारी एक अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में गर्मियों के दौरान जमा बर्फ की परत 2030 तक गायब हो सकती है। मतलब की यह अनुमान से एक दशक पहले ही गायब हो जाएगी। यह किसी त्रासदी से कम नहीं। वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि उत्सर्जन में गिरावट भी इसे बदल नहीं पाएगी।
वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि अगले एक दशक से भी कम वक्त में आर्कटिक क्षेत्र पहली बार 'बर्फ मुक्त' हो सकता है, इसका मतलब है कि हम आर्कटिक में नई बदलती जलवायु के गवाह बनने वाले हैं। अध्ययन के मुताबिक 2050 तक आर्कटिक में दिखने वाली बर्फ, गर्मियों के मौसम में पूरी तरह गायब हो जाएगी।
इस तेजी से पिघलती बर्फ का सीधा असर आर्कटिक में रहने वाली प्रजातियों पर पड़ रहा है। ध्रुवीय भालु भी इन्हीं प्रजातियों में से एक हैं, जिन्हें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए समुद्री बर्फ की आवश्यकता होती है। लेकिन जैसे-जैसे बर्फ घट रही है, इन जीवों के लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखना मुश्किल हो रहा है।
एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र गर्म हो रहा है, ध्रुवीय भालुओं के वायरस, बैक्टीरिया और परजीवियों से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ रहा है।