अल नीनो के प्रभाव से भारत में मानसून का चरित्र बदल रहा है। नए अध्ययन के अनुसार, अल नीनो के दौरान सूखे क्षेत्रों में बारिश की कमी होती है, जबकि नम क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश होती है।
अब तक की धारणा यह थी कि अल नीनो भारत में मानसून को कमजोर करता है और सूखा लाता है। अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित नए अध्ययन ने इस धारणा को चुनौती दी है।
इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि अल नीनो का असर पूरे देश में एक जैसा नहीं होता।
इस दौरान देश के दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी भारत जैसे सूखे इलाकों में कुल बारिश और भारी बारिश की घटनाएं कम हो जाती हैं। लेकिन दूसरी तरफ मध्य और दक्षिण-पश्चिमी भारत जैसे पहले से ही नम क्षेत्रों में भले ही बारिश कम दिनों में होती है, लेकिन जब बारिश होती है तो वह बहुत ज्यादा तेज और खतरनाक होती है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह बदलाव ‘कन्वेक्टिव बॉयेंसी’ यानी तूफानों को ताकत देने वाली वायुमंडलीय शक्ति की वजह से होता है।
भारत में 250 मिलीमीटर से अधिक बारिश की संभावना अल नीनो वर्षों में 43 फीसदी बढ़ जाती है, जबकि मध्य भारत के मानसूनी क्षेत्र में यह संभावना 59 फीसदी तक बढ़ जाती है।
भारत में मानसून पर अल नीनो के असर को अब तक सूखा और बारिश की कमी से जोड़ा जाता रहा है। आमतौर पर माना जाता है कि अल नीनो से बारिश घटती है और सूखे की स्थिति बनती है। लेकिन अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में इसको लेकर नए चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
इस अध्ययन के मुताबिक अल नीनो के दौरान देश के सबसे ज्यादा बरसात वाले इलाकों में बारिश की तीव्रता और बढ़ जाती है। देखा जाए तो यह अध्ययन अल नीनो और भारत में मानसून के बीच एक चौंकाने वाले संबंध को उजागर करता है।
पुरानी समझ, नई हकीकत
अल नीनो, जिसका स्पेनिश भाषा में मतलब होता है 'छोटा लड़का'। यह एक जटिल मौसमी प्रक्रिया है जिसमें प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से का समुद्र गर्म हो जाता है। इसकी वजह से हवाओं का दबाव, दिशा और ताकत बदलती है और इसका पूरी दुनिया में वातावरण पर असर पड़ता है।
अब तक यह माना जाता था कि अल नीनो की वजह से भारत में मानसून कमजोर पड़ जाता है। हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक के ज्यादातर अध्ययन पूरे सीजन की औसत बारिश पर केंद्रित रहे थे। लेकिन इस नई रिसर्च में खासतौर पर अल नीनो वर्षों के दौरान रोजाना होने वाली भारी बारिश का विश्लेषण किया है, जिसके नतीजे हैरान करने वाले हैं।
आंकड़ों में छिपी कहानी
भारत में अल नीनो और बारिश के संबंध को समझने के लिए इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सौ साल से भी ज्यादा पुराने आंकड़े खंगाले हैं। उन्होंने 1901 से 2020 तक भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के रोजाना होने वाले बारिश के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया है।
इसके साथ ही 1979 से 2020 तक के वायुमंडलीय आंकड़ों को भी मिलाकर देखा गया, ताकि चरम मौसमी घटनाओं के पीछे की स्थितियों को समझा जा सके।
नतीजा यह निकला कि अल नीनो का असर पुरे देश में एक जैसा नहीं होता। इस दौरान देश के दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी भारत जैसे सूखे इलाकों में कुल बारिश और भारी बारिश की घटनाएं कम हो जाती हैं। लेकिन दूसरी तरफ मध्य और दक्षिण-पश्चिमी भारत जैसे पहले से ही नम क्षेत्रों में भले ही बारिश कम दिनों में होती है, लेकिन जब बारिश होती है तो वह बहुत ज्यादा तेज और खतरनाक होती है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह बदलाव ‘कन्वेक्टिव बॉयेंसी’ यानी तूफानों को ताकत देने वाली वायुमंडलीय शक्ति की वजह से होता है।
कितनी खतरनाक हो सकती है यह बारिश?
वैज्ञानिकों के मुताबिक अल नीनो के दौरान नम क्षेत्रों में यह बॉयेंसी बढ़ जाती है, जिससे भारी से भारी बारिश की आशंका ज्यादा हो जाती है। अध्ययन के मुताबिक पूरे भारत में 250 मिलीमीटर से अधिक बारिश की संभावना अल नीनो वर्षों में 43 फीसदी बढ़ जाती है, जबकि मध्य भारत के मानसूनी क्षेत्र में यह संभावना 59 फीसदी तक बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, जितना ज्यादा मजबूत अल नीनो होता है, इस बात की उतनी ही अधिक संभावना होती है कि भारत के सबसे नम मानसूनी इलाकों में रोजाना होने वाली बारिश चरम पर पहुंचे।
भारी बारिश की यह घटनाएं तबाही ला सकती हैं। इसकी वजह से अचानक आई बाढ़ गांवों को डुबो देती है, घरों को बहा ले जाती है। इसकी वजह से किसानों की मेहनत चौपट हो सकती है। वहीं इनका सीधा असर लाखों लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है।
ऐसे में यह अध्ययन सिर्फ वैज्ञानिक एक खोज नहीं है, बल्कि लोगों की जिंदगी से सीधे जुड़ा मुद्दा है। बेहतर पूर्वानुमान मिलने से सरकार और किसान पहले से तैयारी कर पाएंगे और बड़े नुकसान से बचा जा सकेगा।
शोधकर्ताओं का अध्ययन में कहना है कि अब अल नीनो और ला नीना से जुड़े मौसमी पूर्वानुमानों को और अधिक सटीक बनाया जा सकता है। इसकी मदद से भारत में भारी बारिश के खतरों को पहले से भांपा जा सकता है। इस तरह लाखों लोगों की जिंदगी व जीविका को सुरक्षित रखा जा सकता है।