केंद्र शासित लद्दाख की राजधानी लेह से लगभग 215 किमी दूर स्थित कारगिल एक शुष्क एवं ठंडी जलवायु के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र हिमालय के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित होने के कारण ग्रीष्मकालीन मानसून बहुत कम या न के बराबर पहुंचता है। यह क्षेत्र गर्मियों के मौसम में अधिकतर सूखा ही रहता है, जबकि नवम्बर से मार्च के महीनों में पश्चिमी विक्षोभ के प्रभावी होने की वजह से बर्फ से ढका रहता है।
एक अध्ययन के अनुसार कारगिल सुरु घाटी में छोटे बड़े लगभग 252 ग्लेशियर्स (हिमनद) हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 2017 में 481 वर्ग किमी था। सुरु घाटी की लगभग 50 हजार की आबादी स्प्रिंग (झरनों) या बर्फ और ग्लेशियर से निकलने वाले पानी को पीने के लिए इस्तेमाल करती है, जबकि खेती प्रमुखता से बर्फ और ग्लेशियर से निकलने वाली नदियों पर निर्भर है।
लेकिन हिमालय के अन्य भागों की तरह यहां पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू हो गया है। सुरु घाटी के ग्लेशियरों में वर्ष 1971 से 2017 के बीच बर्फ के क्षेत्रफल में 32 वर्ग किमी की कमी मापी गई है। इसके इतर जैसे उत्तराखंड के धराली और थराली में जलवायु परिवर्तन के कारण हुए अतिवृष्टि से 5 और 21 अगस्त को क्रमशः भारी तबाही देखने को मिली थी, उसी प्रकार कारगिल के सुरु घाटी में दो विपरीत मौसम सम्बन्धी घटनाएं दर्ज की गई, जिसमे पहले अतिवृष्टि से बाढ़ और उसके दो हफ्ते के बाद भारी बर्फबारी।
12 अगस्त को आई खवोस-नमसुरु नाले में बाढ़
12 अगस्त 2025 की शाम लगभग 4.30 बजे खवोस-नमसुरु नाले में बाढ़ की घटना रिकार्ड की गयी। पानी के अपने साथ बहुत भारी मात्रा में बड़े बोल्डर गाद मलवा लाने से खवोस-नमसुरू को जोड़ने वाला पुल तबाह हो गया और यह मलवा सुरु नदी के ऊपर बने 2 मीटर ऊंचे लकड़ी के पैदल झूला पुल के एक बड़े हिस्से को अपने साथ बहा ले गया।
बाढ़ की घटना दिन में घटित होने के कारण जानमाल का नुकसान कोई नहीं हुआ, परन्तु दो पुल क्षतिग्रस्त होने के साथ-साथ कई कैनाल गेहूं आदि की फसल तबाह हो गई। सुरु नदी में मिलने से पहले नाले के दोनों ओर लगभग 3-4 मीटर ऊंचे बोल्डर मिट्टी रेता आदि जमा हो गया, जिसे स्थानीय प्रशासन द्वारा साफ करके नाले को सही निकास दिया जा रहा है।
खवोस-नमसुरु नाले मे आई बाढ़ की वजह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अतिवृष्टि को ही प्रमुख माना जा सकता है। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि नाला ग्लेश्यिर वैली से आता है और गूगल अर्थ के सैटलाइट चित्रों मे एक झील भी देखने को भी मिलती है।
घटना के समय नमसुरू से 3 किमी दूर, सुरु घाटी के पानीखर गांव से अंदर ग्लेशियर का सर्वेक्षण करने आए 5 शोधार्थी, अपने मोबाइल फोन में खवोस-नमसुरु नाले ऊपर दिख रहे बादलो को रिकार्ड कर रहे थे। उनमें से आईआईटी खड़गपुर के पीएचडी छात्र बी श्रवण कुमार ने बताया कि बादल काले और बारिश वाले थे और उनमें नमी रखने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।
आईआईएसइआर पुणे के पीएचडी छात्र कृष्णानंद जे ने बाढ़ आने के बाद बताया कि यह उनके लिए आश्चर्यजनक और बेहद रोमांचित कर देनी वाली घटना है, जिन बादलों को रिकॉर्ड कर के वह वापस जाकर लैब में समझने वाले थे, वह बाढ़ का कारण बने और इतना नुकसान किया।
लेखक ने शाम 7 बजे के आसपास बाढ़ वाले नाले को देखने का प्रयास किया, परन्तु राहत बचाव कार्य के चलते नमसुरु गांव से आगे जाने मे असमर्थ रहे। नमसुरु गांव के बहुत से लोगो से बात करने से पता चला कि इस नाले मे बाढ़ की घटनाएं पूर्व में भी हो चुकी हैं।
गांव के प्राइमरी स्कूल के शिक्षक शौकत अली जिल्दार ने बताया कि खवोस-नमसुरु नाले में 26 जुलाई 2021 और 27 जुलाई 2022 मे बाढ़ आ चुकी है जिसमें 12 अगस्त 2025 की घटना से अधिक नुकसान पहुंचाया था।
उन्होंने बताया कि पिछली बाढ़ में खवोश गांव के 8 घर के साथ मवेशी भी बह गए थे। नमसुरु गांव के हाजी अली प्रशासन से मांग करते हुए कहते है कि ग्लेशियर से आने वाले इस नाले का सर्वेक्षण होना चाहिए, जिससे होने वाले खतरे से गांव के जनमानस अवगत रहे। उसके साथ-साथ उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रशासन को पूर्व में आयी बाढ़ के मलवे को चिन्हित करके किसी भी प्रकार का निर्माण न करने का आदेश जारी करना चाहिए।
26 अगस्त को हुई अभूतपूर्व घटना
अभी 12 अगस्त की आपदा को लोग भूले भी नहीं थे कि मात्र 14 दिन बाद एक अभूतपूर्व घटना घटी। वैसे तो कारगिल की सुरु वैली समेत आसपास के क्षेत्र ठण्ड के मौसम नवम्बर से मार्च के महीने में बर्फ से ढके रहते है। मेडिटेरेनियन समुद्र से उठने वाले पश्चिमी विक्षोभ इस क्षेत्र में बर्फबारी का मुख्य स्रोत है, लेकिन इस साल 26 अगस्त को ही सुरु वैली में भारी बर्फबारी देखने को मिल रही है जो असामान्य है।
घाटी के पानीखर गांव के आसपास 26 अगस्त की सुबह से बर्फबारी की शुरुआत होती है और यह देर रात तक रुक रुक कर होती रहती है। शाम 7 बजे तक पानीखर गांव मे लगभग 15 सेंटीमीटर से अधिक रिकार्ड की गई।
हालांकि सुरु घाटी से जांस्कर घाटी को जोड़ने वाले पेन्सीला मे 25 अगस्त की शाम को ही बर्फबारी की शुरुआत हो गयी थी। प्रकाशित शोध पत्र और सैटेलाइट चित्रों के माध्यम से यह देखने को मिलता है कि घाटी में बर्फबारी अक्टूबर के महीने मे देखने को मिलती है, लेकिन अगस्त के माह मे इतनी भारी बर्फ 2500 - 3000 मीटर की ऊंचाई पर आश्चर्यकजनक है इस बर्फबारी को हिमालयी क्षेत्र मे हो रहे जलवायु परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है।
पानीखर गांव के निवासी शमीम और गयासुद्दीन ने बताया कि 26 अगस्त को ही पहला सुरु समर फेस्टिवल पानीखर गांव के दूसरी तरफ थुलुस मे लद्दाख टूरिज्म विभाग द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें घाटी में साहसिक और विंटर स्पोर्ट्स और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर कवीन्द्र गुप्ता और केंद्रीय मंत्री किरण रिजुजू ने शिरकत की लेकिन सुबह से ही बर्फबारी के चलते कार्यक्रम को सूक्ष्म करना पड़ा और पैराग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग और क्यक जैसे साहसिक खेलों का प्रदर्शन नहीं हो सका।
लेखक डॉ. आदित्य मिश्रा आईआईटी मद्रास में , परियोजना वैज्ञानिक हैं और कारगिल में शोध कर रहे हैं